Bhagavad Gita: भगवान श्रीकृष्ण भगवद्गीता में मुनिवर वेदव्यास जी का उल्लेख अपनी विभूति के रूप में करते हैं - क्यों ?
Bhagwan Krishna Ki Kahani: भगवद्गीता के दशम अध्याय "विभूति योग" के 37 वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं :-
Bhagavad Gita Story Bhagwan Krishna: भगवद्गीता के दशम अध्याय "विभूति योग" के 37 वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं :-
"मुनीनामप्यहं व्यास:" अर्थात् मुनियों में मैं व्यास हूं।
कहा गया है - मननात् मुनि:। मननशील व्यक्ति को मुनि कहा जाता है। ऐसे मननशील व्यक्तियों में वेदव्यास जी श्रेष्ठ थे।
श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार भगवान के 24 अवतारों में 17 वें अवतार के रूप में व्यास जी की गणना होती है।
तत: सप्तदशे जात: सत्यवत्यां पराशरात्।
चक्रे वेदतरो: शाखा दृष्ट्वा पुंसोऽल्पमेधस:।।
16 बार अवतार लेने के पश्चात् प्रभु 17 वें अवतार में सत्यवती के गर्भ से पराशर जी के द्वारा व्यास के रूप में अवतीर्ण हुए। उस समय लोगों की समझ और धारणा - शक्ति कम देखकर व्यास जी ने वेदरूप वृक्ष की कई शाखाएं बना दीं।
वेद के विस्तार करने के कारण व्यास जी " वेदव्यास " के नाम से प्रसिद्ध हुए। पहले वेद एक ही था, उसे चार भागों में व्यास जी ने विभाजित कर दिया :-
ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
वेदव्यास जी महर्षि वशिष्ठ के प्रपौत्र, महामुनि शक्ति के पुत्र, आचार्यश्रेष्ठ पराशर के पुत्र तथा महायोगी शुकदेव जी के पिता थे।
व्यास जी का रंग श्यामल ( कृष्ण ) था। उनका जन्म यमुना जी के द्वीप में हुआ था, अतः वे "कृष्णद्वैपायन" के नाम से भी जाने जाते हैं।
व्यास जी ने भगवान नर-नारायण की तपोभूमि बदरी ( बेर ) वन के शम्याप्राश नामक स्थल में अपना आश्रम बनाकर साधना की थी, अतः वे "बादरायण" के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
भगवान व्यास जी ने विश्व प्रसिद्ध महाभारत की रचना की। 18 पर्वों में विभाजित यह ऐतिहासिक महाकाव्य
"पंचम वेद" के नाम से भी विख्यात है।
महाभारत को ज्ञान का विश्वकोश कहा जाता है।भगवद्गीता महाभारत का एक अंश है।
भगवान व्यास जी बोलते जाते थे और भगवान गणेश जी उसे लिपिबद्ध करते जाते थे। इस प्रकार महाभारत के रचनाकार भगवान वेदव्यास और लिपिकार भगवान श्री गणेश थे।
सर्वसाधारण की सुविधा के लिए व्यास जी ने 18 पुराणों की रचना की, जिसमें श्रीमद्भागवत पुराण भक्तियोग का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है।
उपनिषदों में ब्रह्म के जिस निर्गुण रूप का प्रतिपादन हुआ है, व्यास जी ने उसके सिद्धांतों को सूत्ररूप में ग्रथित किया। यह सूत्र ब्रह्मसूत्र या वेदांत दर्शन कहलाता है।
व्यास जी लोगों को पुराण सुनाया करते थे। उसी समय से "व्यासपीठ" की परंपरा भी प्रचलित है।
महाभारत युद्ध के पश्चात वेदव्यास जी अपने शिष्यों के साथ वाराणसी पधारे थे। कूर्म पुराण में उनकी वाराणसी यात्रा का वर्णन है। समस्त विद्वतजनों ने उनकी पूजा - अभ्यर्थना की थी। उस दिन आषाढ़ महीने की पूर्णिमा थी। तभी से आषाढ़ पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।
वेदव्यास जी साक्षात विष्णु भगवान के अंश थे :-
कृष्ण द्वैपायन: साक्षात् विष्णुरेव सनातन:।
अतः भगवान श्रीकृष्ण ने भगवान वेदव्यास जी की गणना अपनी विभूति के रूप में की।