Brahma hatya Dosha: गुरू ब्रहस्पति देव द्वारा, ब्रह्म हत्या को चार जगह स्थान दिया गया

Brahma hatya Dosha: स्कन्द पुराण’ के माहेश्वर -केदारखण्ड के पन्द्रहवें अध्याय में एक प्राचीन आख्यान दिया हुआ है। तदनुसार देवासुर -संग्राम के पश्चात् जबकि ‘देवगुरु’ बृहस्पतिजी इन्द्र की अवहेलना से दुखी होकर उन्हें छोड़कर अन्यत्र चले गये थे

Update:2023-06-28 19:01 IST
Brahma Hatya Dosha (social media)

Brahma Hatya Dosha: स्कन्द पुराण’ के माहेश्वर -केदारखण्ड के पन्द्रहवें अध्याय में एक प्राचीन आख्यान दिया हुआ है। तदनुसार देवासुर -संग्राम के पश्चात् जबकि ‘देवगुरु’ बृहस्पतिजी इन्द्र की अवहेलना से दुखी होकर उन्हें छोड़कर अन्यत्र चले गये थे, इन्द्र का पौरोहित्य विश्वरूप नामक महर्षि करते थे। विश्वरूप ‘त्रिशिरा’ थे, जब कोई यज्ञ या अनुष्ठान करते तब अपने एक मुख से देवताओं का, दूसरे से दैत्यों का और तीसरे से मनुष्यों का आवाहन करके, उन्हें उनका भाग अर्पित करते थे।

विश्वरूप देवताओं के लिए उच्च स्वर में, मनुष्यों के लिए मध्यम स्वर में और दैत्यों के लिए मौन स्वर में, मन्त्र पढ़ते थे। इससे देवराज इन्द्र के मन में संदेह हो गया कि विश्वरूप मौन होकर जो मंत्र पढ़ते हैं, हो न हो चुपचाप दैत्यों की सहायता करते हैं।

अतः रुष्ट होकर इन्द्र ने विश्वरूप की हत्या कर दी। चूँकि विश्वरूप ऋषि थे, इस कारण इन्द्र को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इन्द्र ब्रह्म हत्या से बचने के लिए पहले तो इधर- उधर भागे, फिर जब कहीं भी सुरक्षा न मिली तो ‘जल’ में जाकर छुप गये।

इस घटना से तीनों लोकों में अव्यवस्था फैल गई। आखिर देवताओं ने अराजकता रोकने के उद्देश्य से राजा नहुष को ‘इन्द्रासन’ पर बैठा दिया। किन्तु नहुष अपने अहंकार पूर्ण व्यवहार के कारण अधिक दिन तक ‘इन्द्र’ न बने रह पाये और इन्द्रासन से अपदस्थ कर दिये गये। इससे पुनः अराजकता फैल गई।

तब सभी देवताओं को चिंता हुई वे बृहस्पतिजी के पास गये। उनसे प्रार्थना की कि वे इन्द्र को बचाने का कोई उपाय करें।बृहस्पतिजी ने इन्द्र को ब्रह्महत्या से मुक्त कराने के लिए एक उपाय सोचा। उन्होंने ब्रह्महत्या को प्रेरित किया कि वह इन्द्र का पीछा छोड़ दे तो वे ब्रह्महत्या के निवास के लिए कोई अन्य स्थान निश्चित कर देंगे। ब्रह्महत्या मान गई।

तब बृहस्पतिजी ने इन्द्र को ब्रह्महत्या के चार बराबर भाग किए और उन चारों को क्रमशः- स्त्रियों, वृक्षों, पृथ्वी तथा जल को सौंप दिया।

जब बृहस्पति जी ब्रह्महत्या का चतुर्थांश स्त्रियों को देने लगे तब स्त्रियों ने कहा, भगवन्! सम्पूर्ण स्त्रियाँ धर्म,अर्थ और काम की सिद्धि के लिए उत्पन्न हुई हैं। यदि नारी ब्रह्महत्या ग्रहण करेगी तो वह पापिनी मानी जायेगी और एक नारी के कारण कई कुल बर्बाद हो जायेंगे’।

बृहस्पति ने कहा- देवियों! तुम इस पाप से भय न करो। तुम्हारे द्वारा स्वीकृत ब्रह्महत्या का यह अंश भावी पीढ़ियों के लिए तथा दूसरों के लिए भी शुभ फल देने वाला होगा। तुम सबको इच्छानुसार ‘कामसुख’ प्राप्त होगा। स्त्रियाँ मान गईं। उन्होंने ब्रह्महत्या का चतुर्थांश ग्रहण कर लिया। परिणामतः उस दिन से स्त्रियों को ‘रजोदर्शन’ होने लगा। किन्तु उन्हें वरदान यह मिला कि वे चाहे जब अपनी इच्छानुसार पुरुष से सहवास कर सकती हैं।दूसरे रजो दर्शन के बाद उन्हें पवित्र माना जायेगा।

ब्रह्महत्या का दूसरा चतुर्थांश पृथ्वी ने लिया, जिससे वह कहीं- कहीं ‘ऊसर’ (अनुर्वरा) हो गई।
तीसरा चतुर्थांश वृक्षों ने ग्रहण किया तो वृक्षों से गोंद निकलने लगी। किन्तु वृक्षों को वरदान मिला, जिसके कारण काटे जाने पर भी वृक्ष दुबारा उगने-हरियाने लग गये।

चौथा चतुर्थांश ‘जल’ ने ग्रहण किया, जिसके कारण जल में फेन और बुदबुदे उठने लगे। किन्तु जलों को वरदान मिला जिसके कारण जल में वस्तुओं को शुद्ध और पवित्र करने की शक्ति आ गई।

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