Budha Purnima Special: बुद्ध ने खुद गृहस्थ जीवन त्याग दिया था, फिर क्यों कहा कि चौथी पत्नी ही रहती है हरदम साथ, जानिए

Budha Purnima Special: महात्मा बुद्ध का जीवन प्रेरणादायक है। गौतम बुद्ध ने ज्ञान की तलाश में घर छोड़ा था। और जब ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होंने जीवन में 4 पत्नियों के महत्व का जिक्र और तुलना करते हुए ज्ञान दिया था। महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म में अंधविश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं था। यह धर्म कर्मकांड, सूक्ष्मदर्शीका, और पौराणिक मान्यताएं पर आधारित नहीं था। यह धर्म बुद्धि वादी और मानव कल्याण के धर्म का आधार था। जानते हैं उनके सुक्ष्म ज्ञान की बातें...

Update:2023-05-04 16:07 IST
सांकेतिक तस्वीर,सौ. से सोशल मीडिया

Budha Purnima Special

बुद्ध पूर्णिमा स्पेशल

5 मई को बुद्ध पूर्णिमा है। मतलब की भगवान बुद्ध की जयंती। इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था इस #पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। देश भर में बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म में अंधविश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं था। यह धर्म कर्मकांड, सूक्ष्मदर्शीका, और पौराणिक मान्यताएं पर आधारित नहीं था। यह धर्म बुद्धि वादी और मानव कल्याण के धर्म का आधार था।

बुद्ध जयंती वैशाख पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है और इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था.बुद्ध दुनिया को अहिंसा, करुणा और सम्पूर्ण विश्व को शांति का संदेश देने के लिए जाने जाते हैं। बुद्ध के दिन ज्ञान लोगों को जीवन की राह दिखाते हैं। वहीं भगवान बुद्ध ने पूरी दुनिया को करुणा और सहिष्णुता के मार्ग के लिए प्रेरित किया है

  • दुःख- सभी संसार में दुःख भरा हुआ है, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और रोग सभी दुःख हैं, इच्छा वस्तु प्राप्त ना होना भी दुःख है।
  • दुःख समुदाय- संसार में प्रत्येक दुःख का कोई ना कोई कारण अवश्य होता है, बुद्ध के अनुसार दु:खों का मुख्य कारण तृष्णा है।
  • दुःख निरोध- महात्मा बुद्ध के अनुसार रूप वेदना संज्ञा संस्कार और विज्ञान ही दुःख का नरोध है। उन्होंने बताया कि तृष्णा के बिना से प्रत्येक दुःख का विनाश संभव है।
  • दुःख निरोध गामिनीप्रतिपदा- यह वह मार्ग है, जिसके द्वारा दु:खों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। बुद्ध ने अपने इस सिद्धांत के अंतर्गत 8 मार्गों का प्रतिपादन किया, इसे बुद्ध के अष्टांग मार्ग भी कहते हैं_ 1. सम्यक् दृष्टि, 2. सम्यक् संकल्प 3. सम्यक् वाणी 4. सम्यक् कर्मान्त 5. सम्यक् अजीव 6. सम्यक् प्रयत्न 7. सम्यक् स्मृति 8. सम्यक् समाधि।

गौतम बुद्ध के विचार- हर पुरुष की 4 पत्नियां होनी चाहिए

पति-पत्नी के रिश्ते को एक पवित्र रिश्ता माना गया है। ये एक ऐसा रिश्ता है जिसमें दोनों ही एक-दूसरे से जिदंगी-भर साथ निभाने का वादा करते हैं। वहीं इस इस रिश्ते के बीच कोई आ जाए तो इस रिश्ते की बुनियाद टूट जाती है। जिसके कारण लड़ाई-झगड़े होते हैं और अलग होने की बात तक आ जाती है. लेकिन गौतम बुद्ध का कहना था कि हर पुरुष की 4 पत्नियां होनी चाहिए।

चौथी पत्नी देती है साथ

गौतम बुद्ध कहते हैं कि एक पुरुष की 4 पत्नियां होनी चहिए इसको लेकर उन्होंने एक कहानी सुनाई। वहीं इस कहानी के अनुसार, एक पुरुष कई पत्नियां 4 पत्नियाँ थी। वहीं जब ये व्यक्ति का अचानक से बीमार पड़ गया और उसे उसे इस बात का आभास हो गया था कि अब किसी भी वक़्त उसकी मौत हो जाएगी। वहीं इस दौरान उसने अपनी पहली पत्नी को बुलाया और उसे अपने साथ दूसरी दुनिया में चलने के लिए कहा। लेकिन अलविदा प्रिये कहा। इसी के साथ उसने अपनी दूसरी और तीसरी पत्नी से भी यही सवाल किया। तो दूसरी पत्नी ने जवाब दिया, ‘प्रिय पति, आपकी पहली पत्नी ने आपकी मृत्यु के बाद आपका साथ देने से इनकार कर दिया तो फिर मैं भला आपके साथ कैसे जा सकती हूं? क्योंकि आपने मुझे केवल अपने स्वार्थ के लिए प्यार किया है। वहीं तीसरी पत्नी ने जवाब दिया तीसरी पत्नी ने आंखों में आंसू भरकर कहा ‘मेरे प्रिय, मुझे आप पर दया आ रही है और अपने लिए दुख हो रहा है। इसलिए मैं अंतिम संस्कार तक आपके साथ रहूंगी।’ ऐसा कहकर उसकी दूसरी और तीसरी पत्नी ने भी उसके साथ चलने के लिए मना कर दिया।

इसी के साथ जब उसने ये सोचा जब मेरी 3 पत्नियों ने मना कर दिया है तो चौथी पत्नी मेरे साथ अंतिम सफर पर चलने के लिए मना ही कर देगी लेकिन इस आखिर समय कि वो खुद को अकेला महसूस कर रहा था इसलिए उसने अपनी चौथी पत्नी से भी यही सवाल किया और चौथी पत्नी ने अपने पति के इस सवाल का जवाब हां में दिया।

चौथी पत्नी ने कहा कि ‘मेरे प्यारे पति, मैं तुम्हारे साथ जाऊंगी। कुछ भी हो, मैं हमेशा आपके साथ रहने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं। मैं आपसे कभी अलग नहीं हो सकती।

कौन है 4 पत्नी क्यों जरूरी है हर पुरुष के लिए

गौतम बुद्ध द्वारा बताई गयी इस कहानी खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि ‘प्रत्येक पुरुष और महिला की चार पत्नियां या पति होते हैं और हर एक का खास मतलब होता है। पहली पत्नी हमारा शरीर है, दूसरी पत्नी हमारा भाग्य, भौतिक चीजों, धन, संपत्ति, प्रसिद्धि, पद और नौकरी है। वहीं तीसरी पत्नी हमारे रिश्ते-नाते हमारे माता-पिता, बहन और भाई, सभी रिश्तेदारों, दोस्तों और समाज है और चौथी ‘पत्नी’ हमारा मन या चेतना है।

पहली पत्नी शरीर जिसे हम दिन-रात प्यार करते हैं लेकिन पहली पत्नी की तरह उसका ख्याल रखते हैं लेकिन जीवन के अंत में शरीर यानी पहली ‘पत्नी’ हमारे साथ अगली दुनिया में नहीं जाती है।
दूसरी ‘पत्नी’ हमारे भाग्य, भौतिक चीजों, धन, संपत्ति, प्रसिद्धि, पद और नौकरी है। जिसे पाने के लिए हम ज़िन्दगी भर मेहनत करते हैं लेकिन आखिरी समय ये सब हमारे साथ नहीं रहती है।

तीसरी पत्नी हमारे रिश्ते-नाते जो कि सिर्फ अंतिम संस्कार तक ही हमारे पास होते हैं मृत्यु के बाद रिश्तेदार शरीर को शमशान घाट पर लाते हैं और शरीर को अंतिम विदाई देकर वो लोग अपने-अपने रास्ते चले जाते हैं।

चौथी पत्नी का हमारा मन है। जब हम गहराई से यह पहचान जाते हैं कि हमारा मन क्रोध, लालच और असंतोष से भरा हुआ है तो हम अपने जीवन को अच्छे नजरिए से देख पाते हैं। क्रोध, लोभ और असंतोष कर्म के नियम हैं। हम अपने कर्म से कभी पीछा नहीं छुड़ा सकते हैं। जैसा कि चौथी पत्नी ने आखिर सफ़र पर उनेक साथ चलेगी, ‘तुम जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे पीछे चलूंगी। यही है कर्म जो साथ जाते हैं।

भगवान बुद्ध के विचार
भगवान बुद्ध ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों व विसंगतियों का निदान करते हुए कहा कि यदि बुद्धि को शुद्ध न किया गया तो परिणाम भयावह होंगे। उन्होंने चेताया कि बुद्धि के दो ही रूप संभव हैं- कुटिल और करुण। बुद्धि यदि कुसंस्कारों में लिपटी है, स्वार्थ के मोहपाश और अहं के उन्माद से पीड़ित है तो उससे केवल कुटिलता ही निकलेगी, परन्तु यदि इसे शुद्ध कर लिया गया तो उसमें करुणा के फूल खिल सकते हैं। बुद्धि अपनी अशुद्ध दशा में इंसान को शैतान बनाती है तो इसकी परम शुद्ध दशा में व्यक्ति "बुद्ध" बन सकता है, उसमें भगवत सत्ता अवतरित हो सकती है।

मानव बुद्धि को शुद्ध करने के लिए भगवान बुद्ध ने इसका विज्ञान विकसित किया। इसके लिए उन्होंने आठ बिंदु सुझाए। जो बौद्ध धर्म के अष्टांग मार्ग के नाम से जाने जाते हैं। आठ चरणों वाली इस यात्रा का पहला चरण है- सम्यक दृष्टि अर्थात सबसे पहली जरूरत है कि व्यक्ति का दृष्टिकोण सुधरे। हम समझें कि जीवन सृजन के लिए है न कि विनाश के लिए। दूसरा चरण है- सम्यक संकल्प। ऐसा होने पर ही निश्चय करने के योग्य बनते हैं। इसके बाद तीसरा चरण है- सम्यक वाणी यानी हम जो भी बोलें, उससे पूर्व विचार करें। मुंह से निकले शब्द अपने साथ दूसरे या सामने वाले के हितसाधक हों, उनके मन को शांति पहुंचाने वाले हों। चौथा चरण है- सम्यक कर्म। यदि मानव कुछ करने से पूर्व उसके आगे पीछे के परिणाम के बारे में भली-भांति विचार कर ले तो वह दुष्कर्मों के बंधन से सदैव मुक्त रहेगा। इसका अगला चरण है- सम्यक आजीविका, यानी कमाई जो भी हो, जिस माध्यम से अर्जित की जाय, उसके रास्ते ईमानदारी के हों, किसी का अहित करके कमाया गया पैसा सदैव व्यक्ति व समाज के लिए कष्टकारी ही होता है। सम्यक व्यायाम- यह छठा चरण है। इसके तहत इस बात की शिक्षा दी गई है कि शारीरिक श्रम व उचित आहार-विहार से शरीर को स्वस्थ रखा जाय क्योंकि अस्वस्थ शरीर से मनुष्य किसी भी लक्ष्य को सही ढंग से पूरा नहीं कर सकता। इसके आगे सातवां चरण है- सम्यक स्मृति। यानी बुद्धि की परिशुद्धि। व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक विकास का यह महत्वपूर्ण सोपान है। इसके पश्चात आठवां व अंतिम चरण है- सम्यक समाधि। इस अंतिम सोपान पर पहुंचकर व्यक्ति बुद्धत्व की अवस्था प्राप्त कर सकता है।

सार रूप में कहें तो ये आठ चरण मनुष्य के बौद्धिक विकास के अत्यंत महत्वपूर्ण उपादान हैं। मानवी बुद्धि अशुद्धताओं से जितनी मुक्त होती जाएगी, उतनी ही उसमें संवेदना पनपेगी और तभी मनुष्य के हृदय में चेतना के पुष्प खिलेंगे। यहीं संवेदना संजीवनी आज की महा औषधि है, जो मनुष्य के मुरझाए प्राणों में नवचेतना का संचार कर सकती है।

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