Chaturmas 2021 Ki Shuruaat : जानिए चातुर्मास कब से हो रहा शुरू, 4 माह तक इन कामों से बना लें दूरी

Chaturmas 2021 Ki Shuruaat : चातुर्मास में 4 मास पहला सावन, दूसरा भाद्र मास त्योहारों का मास, तीसरा आश्विन मास देवी दुर्गा की आराधना और चौथ कार्तिक मास मां लक्ष्मी की पूजन, तुलसी विवाह के साथ देवउठनी एकादशी और भगवान विष्णु का निद्राकाल से जगने के साथ चातुर्मास का समापन होता है।;

Published By :  Suman Mishra
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Update:2021-07-15 21:22 IST
चातुर्मास कब से हो रहा शुरू

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

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चातुर्मास कब से हो रहा शुरू 

आषाढ़ में देवशयनी एकादशी और चतुर्मास दोनों को हिंदू धर्म में शुभ माना गया है। इस अवधि में खासकर व्रत, देव दर्शन और धार्मिक नियमों के पालन का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इन चार माह में सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु शयन अवस्था में रहते हैं।।  आषाढ़ के देवशयनी एकादशी 20 जुलाई, 2021 से कार्तिक माह के एकादशी और द्वादशी 14- 15 नवंबर तक चातुर्मास माना जाता है । इस चातुर्मास के चार माह की अवधि में सभी शुभ कार्य निषेध होते हैं। इस बार 20 जुलाई को एकादशी तिथि है। इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं ।  इस दिन भगवान विष्णु पाताल लोक चलें जाएंगे यहां पर भगवान विष्णु चार माह तक विश्राम करें। भगवान का अपने शयन में जाने के कारण ही इस तिथि को देवशयनी एकादशी कहते हैं और इसी दिन से चातुर्मास के नियमों का भी पालन शुरू करते हैं।

चातुर्मास में शुरू से करें  ये काम

  •  इस दिन करें ये काम मधुर स्वर के लिए गुड़, लंबी आयु के लिए सरसों का तेल, शत्रु बाधा से मुक्ति पाने के लिए सरसों तेल और मीठा तेल, संतान प्रापि क लिए दूध, पाप मुक्ति के लिए उपवास।
  •  देवशयनी एकादशी के दिन अगर आप निर्जला व्रत ना रख सकें तो कोशिश करें कि एक वक्त फलाहार कर सकें। घर में धन-धान्य तथा लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का केसर मिले जल से अभिषेक करें। इसके अतिरिक्त निम्न में कोई भी एक उपाय करें, आपके घर को हर प्रकार की परेशानी से मुक्ति मिलेगी और स्थायी लक्ष्मी का वास होगा।
  •  सुबह-सुबह घर की साफ-सफाई के पश्चात मुख्य द्वार पर हल्दी का जल या गंगाजल का चिड़काव करें। "ॐ नमो नारायणाय" या "ॐ नमो भगवते वसुदेवाय नम:" का 108 बार या एक तुलसी की माला जाप करें। *एकादशी की शाम में तुलसी के सामने गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं और "ॐ नमो भगवते वसुदेवाय नम:" का जाप करते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें। इससे घर के सभी संकट और आने वाली परेशानियां टल जाती हैं।इस दिन भगवान विष्णु की पीले फूलों से पूजा करें और खीर में तुलसी मिलाकर भोग लगाएं। पीले रंग के फल, कपड़े और अनाज भी चढ़ाएं और बाद में गरीबों को दान कर दें।
  •  इस दिन पीपल में जल अवश्य दें। इससे आपको हर प्रकार के कर्ज से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना गया है कि देवशयनी एकादशी के दिन पीपल में जल देने से कर्जों से छुटकारा मिलता है।इस दिन सुहागन स्त्रियों को फलाहार कराकर सुहाग की समग्री भेंट करना धन-समृद्धि तथा खुशियां लाता है। ऐसा ना कर पाने पर कम से कम अपने घर की स्त्री को कोई भी सुहाग का चिह्न भेंट करें।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

  • चार्तुमास ये काम 4 माह तक वर्जित

किसी भी शुभ कार्य को करना अच्छा नहीं मानते है। इन चार महीनों में शादी विवाह, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीद और नामकरण संस्कार जैसे धार्मिक कार्य वर्जित हैं। चार्तुमास का हिन्दू धर्म विशेष महत्व है। इस दौरान चार्तुमास में ध्यान, तप और साधना करनी चाहिए। इस मास में दूर की यात्राओं से भी बचना चाहिए। घर से बाहर तभी निकलना चाहिए जब जरूरी हो। वर्षा ऋतु के कारण कुछ ऐसे जीव-जंतु सक्रिय हो जाते हैं जो हानि पहुंचा सकते हैं। इस मास में व्यक्ति को खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए और अनुशासित जीवनशैली को अपनाना चाहिए। चार्तुमास में सावन के महीना विशेष महत्व है.।सावन चातुर्मास का पहला महीना है. इस माह में हरी सब्जी़, इसके दूसरे माह भादौ में दही,तीसरे माह आश्विन में दूध और चौथे माह में कार्तिक में दाल विशेषकर उड़द की दाल नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाना चाहिए।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

  • चार्तुमास का महत्व

पंचांग के अनुसार 20 जुलाई रविवार से लेकर 14 नवंबर रविवार तक चार्तुमास रहेगा। चार्तुमास की समाप्ति 14 नवंबर को देवउठानी एकादशी को होगी। देवउठानी का अर्थ है देव का उठना यानि इस दिन भगवान विष्णु अपने शयन से बाहर आ जाएंगे। इसके बाद पुन: शुभ कार्य आरंभ हो जाएंगे।चार महीने का चातुर्मास हर प्रकार से शुभ माना गया है।

चातुर्मास में व्रत, पूजा और अनुष्ठान आदि कार्य किए जाते है। इस  दौरान सात्विक जीवन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। जहां तक संभव हो भोजन में नमक के प्रयोग से बचना व्रत की शुभता को बढ़ाता है। साधक  को गेहूं, मूंग दाल और जई जैसे खाद्य पदार्थों को खाने से बचना चाहिए। ईमानदारी के रास्ते पर चलना चाहिए और बुरे वचन कहने से बचना चाहिए। ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचें।

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