Chaturmas 2022: 10 जुलाई से शुरू हो रहा है चातुर्मास, जानें किन कार्यों से होगी विशेष फल की प्राप्ति और क्या है वर्जित ?

Chaturmas 2022: पूरे 4 महीने तक भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास में किये गए तप, साधना और उपवास रखने से व्यक्ति को मनचाहा वरदान और लाभ प्राप्त होता है।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2022-07-06 20:28 IST

chaturmas 2022 (image credit: Social Media)

Chaturmas 2022: हिन्दू धर्म में चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से हो जाता है।बता दें कि इस वर्ष यह तिथि 10 जुलाई दिन रविवार को पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि आषाढ़ मास की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से पूरे 4 महीने तक भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास में किये गए तप, साधना और उपवास रखने से व्यक्ति को मनचाहा वरदान और लाभ प्राप्त होता है। गौरतलब है कि आषाढ़ शुक्ल की एकादशी से प्रारंभ होकर चातुर्मास कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है। आपको बता दें कि चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी से शुरू होकर देवोत्थान एकादशी पर ख़तम होता है। इसी 4 महीने की अवधि में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास भी लगते हैं। मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास में कुछ कार्यों को करने की मनाही होती है जबकि कुछ ऐसे कार्य भी है जिन्हें करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है।

तो आइए जानते हैं कि चातुर्मास में किन कार्यों को करने से होती है शुभ फल की प्राप्ति और साथ ही ऐसे कौन से कार्य हैं जिन्हें

चातुर्मास में करना वर्जित माना जाता हैं:

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार, विवाह, गृह प्रवेश और नामकरण आदि का करना वर्जित माना गया हैं। चुँकि ये सभी कार्य बेहद शुभ मुहूर्त और तिथि पर किए जाते हैं। लेकिन इस दौरान भगवान विष्णु के शयन मुद्रा में जाने के कारण किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों को नहीं किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार हिन्दू धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है। गौरतलब है कि चातुर्मास के इन महीनों में सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का भी तेजस कम हो जाता है। आपको बता दें कि चातुर्मास के दौरान संतजन यात्रा तक नहीं करते हैं जबकि वह अपने आश्रम या मंदिर में ही रहकर व्रत और साधना का पालन करते हैं।

चातुर्मास में इन कार्यों को करने से मिलते हैं शुभ फल :

- हिन्दू मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास के दौरान व्रत, साधना, जप-तप, ध्यान, पवित्र नदियों में स्नान, दान, पत्तल पर भोजन करना विशेष लाभकर माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक इस मास में किये गए धार्मिक कार्यों से र्विशेष फल की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं भक्तों पर इस समय भगवान नारायण की विशेष अनुकम्पा बनी रहती है।

- चातुर्मास के दौरान कुछ लोग अपनी श्रद्धानुसार पूरे चार महीने तक राजसिक व तामसिक भोजन का त्याग कर एक समय ही भोजन ग्रहण करते हैं। साथ ही इन दिनों ब्रह्मचर्य का पालन करना बेहद अनिवार्य माना गया है जिससे व्यक्ति के अंदर शक्ति का संचय होता है।

- चातुर्मास के पवित्र समय में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी, भगवान शिव और माता पार्वती, श्रीकृष्ण, राधा और रुक्मिणी जी, पितृदेव, भगवान गणेश की पूजा- आराधना सुबह-शाम अवश्य ही करनी चाहिए। इसके अलावा इस समय साधु-संतों के साथ सत्संग करना भी विशेष फल की प्राप्ति देता है।

- चातुर्मास के दौरान इन 4 महीनों में दान करने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है। इन दिनों में दान करने से व्यक्ति को आयु, रक्षा, धन -ऐश्वर्य और स्वास्थ्य की प्राप्ति है। साथ ही यह अवधि पितरों के निमित्त पिंडदान या तर्पण करने के लिए विशेष रूप से उत्तम रहता है। माना जाता है कि इस अवधि में किये गए इन उपायों से उनकी आत्मा को शांति की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं इस माह में की गई पूजा व साधना बहुत ही जल्द ही फलीभूत होती है।

चातुर्मास में इन कार्यों का करना है वर्जित :

- मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास में किसी भी मांगलिक कार्य को करना वर्जित माना गया है। धार्मिक मान्यता तो यह भी है कि इन चार महीनों में लोगों को बाल और दाढ़ी भी नहीं कटवानी चाहिए और ना ही काले व नीले वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए। धर्म शास्त्रों की मानें तो इन महीनों में नीले वस्त्र देखने से दोष लगता है और यह दोष भगवान सूर्यनारायण के दर्शन करने से ही दूर होता है।

- चातुर्मास के दौरान का विशेष रूप से परनिंदा का नहीं करनी चाहिए। बता दें कि ना सिर्फ परनिंदा करने वाला बल्कि परनिंदा को सुनने वाला व्यक्ति भी समान पापी माना जाता है। गौरतलब है कि इन चार महीनों में यात्रा करने से भी बचना चाहिए और अनैतिक कृत्यों से भी दूर रहने का प्रयास करना चाहिए।

- चातुर्मास में ज्यादा तले हुए खाद्य पदार्थों या फिर ज्यादा तेल वाली चीजों को नहीं खाना चाहिए। मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास के दौरान दूध, शक्कर, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन, मिठाई, सुपारी, तामसिक भोजन, दही, तेल, नींबू, मिर्च अनार, नारियल, उड़द और चने की दाल का भी त्याग कर देना ही उचित है।

- हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में ये साफ़ तौर पर लिखा गया है कि चातुर्मास के इन चार महीनों कुछ विशेष चीज़ों को पूरी तरह से त्याग देना चाहिए।

. श्रावण में पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक व साग आदि,

. भाद्रपद में दही,

. आश्विन में दूध और

. कार्तिक मास में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि चीजों का त्याग कर देना विशेष फलदायी होता है।



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