चर्म व कुष्ठ रोग का है इस सरोवर में इलाज, रामायण व महाभारत से जुड़ा है इतिहास

पूरे देश में केवल दो ही मूर्तियां इस पत्थर की बनी हैं। एक मां काली की और एक डासना देवी की। ये पत्थर कसौटी पत्थर कहलाता है। स्वामी जगदगिरि महाराज ने सरोवर से प्रतिमाओं को निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित करवाया था।

Update:2019-06-15 07:21 IST

लखनऊ:लगभग 5 हजार साल पुराना डासना देवी का मंदिर पुशराम जी ने बनाया था। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। यहां पर पांडवों का आना और विदेशियों के आतंक से मंदिर को बचाने की लोगों की तरकीब तक इस इतिहास में शामिल है। यही नहीं, यहां मां की मूर्ति का विशेष पत्थर भी बहुत मायने रखता है। इतना ही नहीं , यहां का सरोवर भी मंदिर की तरह ही अपने चमत्कारिक गुणों के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि इस सरोवर में औषधीय गुण भरे हैं और यहां आने वाले अगर यहां मां के दर्शन के बाद स्नान करते हैं तो उनकी कई समस्याएं दूर हो जाती हैं।

*महाभारत काल में जब पांडव लाक्षागृह से बचकर निकले थे तो गाजियाबाद के डासना स्थित डासनादेवी मंदिर में ही आकर रुके थे। पांडवों ने मां के शरण में कुछ वक्त काटा था। हालांकि ये मंदिर रामायण काल में ही बन चुका था और यहां भगवान की प्राणप्रतिष्ठा स्वयं पुशराम जी ने की थी।

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*विदेशियों के आतंक से मंदिर को बचाने और भगवान को सुरक्षित रखने के लिए भक्तों ने उन्हें पास के सरोवर में छुपा दिया था। सालों साल मूर्तियां सरोवर में ही दबी रहीं। इस मंदिर में शिवजी, हनुमानजी, नवदुर्गा, सरस्वती माता की मूर्ति स्थापित थी। यह स्थान प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में पौराणिक इतिहास में जाना जाता है।

* डासना देवी की मूर्ति जिस पत्थर से बनी है वह बहुत ही खास पत्थर माना जाता है। ऐसा बताया जाता है कि पूरे देश में केवल दो ही मूर्तियां इस पत्थर की बनी हैं। एक मां काली की और एक डासना देवी की। ये पत्थर कसौटी पत्थर कहलाता है। स्वामी जगदगिरि महाराज ने सरोवर से प्रतिमाओं को निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित करवाया था। कहते हैं माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दे कर खुद को तालाब से निकालने की आज्ञा दी थी।

*कहते हैं मंदिर के पास में जिस सरोवर में सालों भगवान की प्रतिमाओं को छुपा कर रखा गया था वह सरोवर चमत्कार से भरा हुआ है। इसमें स्नान करने वालों को चर्म रोग ही नहीं कुष्ठ रोग तक ठीक हो जाते हैं।मंदिर में नवरात्रि के समय विशेष पूजन किया जाता है और यहां आने वाले भक्तों पर माता कि विशेष कृपा होती है। अष्टमी और नवमी को यहां जरूर आना चाहिए।

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