Safala-Ekadashi: साल की आखिरी एकादशी व्रत कब है, जानिए सही तिथि,मुहूर्त और महत्व

Decemeber 2022 Last Safala-Ekadashi: जो व्यक्ति सफला एकादशी का व्रत करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जीवन में किसी भी कार्य को करने सफल रहता है। हर तरफ से लाभ और प्रगति के संकेत मिलते है...

Update: 2022-12-15 05:05 GMT

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Safala Ekadashi 2022 Date Kab Hai:

सफला एकादशी 2022 डेट कब है

सफला एकादशी के दिन रखे गए व्रत से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। पौष मास में कृष्ण पक्ष एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। यह साल की आखिरी एकादशी होती है। इस साल सफला एकादशी 19 दिसंबर को है। इस एकादशी का नाम सफला एकादशी इसलिए है क्योंकि इस एकादशी पर व्रत करने से हर कार्य सफल होता हैइस बार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी इस बार 19 दिसंबर के दिन पड़ रही है

पौष माह के कृषण पक्ष की एकादशी तिथि को सफल एकादशी कहते है। ये एकादशी मोक्ष की प्रार्थना के लिए मनाई जाती है। सफला एकादशी से आशय मोह को नाश करने वाली एकादशी से है। शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि जो व्यक्ति सफला एकादशी का व्रत करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला दूसरा कोई भी व्रत नहीं है। सफला  एकादशी के दिन व्रत कर श्री हरि विष्णु का पूजन करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। साथ ही जातक को कर्मों के बंधन से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद वह मोक्ष को प्राप्त होता है।

जानते हैं इस सालसफला एकादशी की तिथि, व्रत पारण समय और महत्व...

सफला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त-विधि

पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 19 दिसंबर 2022 सुबह 3.32 मिनट पर शुरू हो रही है और समापन 20 दिसंबर 2022 सुबह 2.32 मिनट पर होगा। बता दें कि व्रत का पारण 20 दिसंबर सुबह 08. 05 मिनट से लेकर 09.13 मिनट के बीच में किया जा सकता है ऐसे में उदयातिथि के आधार पर पौष एकादशी का व्रत19 दिसंबर को रखा जाएगा।

सफला एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

सफला एकादशी तिथि प्रारम्भ : 19 दिसंबर 2022, 3.32 मिनट पर शुरू

सफला एकादशी तिथि समाप्त : 20 दिसंबर सुबह 2.32 मिनट

अभिजीत मुहूर्त -11:55 AM – 12:37 PM

अमृत काल – 03:49 AM – 05:27 AM

ब्रह्म मुहूर्त – 05:20 AM – 06:08 AM

विजय मुहूर्त-01:34 PM से 02:17 PM

गोधूलि बेला- 04:57 PM से 05:21 PM

रवि योग – 07:04 AM से 06:16 AM, Dec 04

सफला एकादशी व्रत पारण समय: 20 दिसंबर को दोपहर 01.20 मिनट से दोपहर 03 .27 मिनट तक

इस दिन सुबह व शाम को विष्णु भगवान का पूजन करें। श्रीविष्णु को पंचामृत, पुष्प और ऋतु फल अर्पित करें। शाम को आहार ग्रहण करने के पहले दीपदान करें। भगवान को अर्पित किए फल को किसी रोगी व्यक्ति को दें, इसे ग्रहण करने से रोगी को स्वास्थ्य लाभ होता है। रेशम का पीला धागा अर्पित करें। जाप के बाद धागे को दाहिने हाथ में बांध लें। महिलाएं इस धागे को बाएं हाथ में बांधें। इस व्रत में रात में संकीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से आचरण में सात्विकता आती है। एकादशी का माहात्म्य सुनने से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इस व्रत में जरूरतमंदों को दान करना चाहिए। गर्म वस्त्र और अन्न का दान करना शुभ माना जाता है। इस व्रत से सेहत व उम्र की रक्षा होती है।

सफला एकादशी का महत्व

सफला एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जो भी जातक पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है।इस एकादशी में भगवान श्री विष्णु को पूजा जाता है, इसलिए हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है। यह दिन पितरों के पूजन के लिए भी उत्तम माना जाता है। कहा जाता है इस दिन विधि विधान से किए कर्मकांड से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है और उनका आर्शीवाद मिलता है। इसी दिन जब अर्जुन अपने कर्तव्य पथ से विचलित हो रहे थे तब विष्णु अवतार श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में 45 मिनट तक गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। मोक्षदा एकादशी के दिन गीता को पढ़ा जाता है और उसमें दिए गए उपदेशों को जीवन में धारण किया जाता है।

सफला एकादशी व्रत में इन नियमों का रखें ध्यान

  • जो लोग सफल एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, उन्हें इस दिन चावल का सेवन भूलकर भी न करें. साथ ही, इस दिन व्यक्ति को सादा भोजन करना चाहिए. खाने में प्याज, लहसुन का प्रयोग भूलकर भी न करें। सफल एकादशी को पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि जागरण करते हुए श्री हरि विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी व्रत को कभी हरि वासर समाप्त होने से पहले पारण नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में द्वादशी समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करना पाप के समान माना जाता है।
  • यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो रही हो तो इस स्थिति में सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।द्वादशी तिथि के दिन प्रातः पूजन व ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए। सफला एकादशी के दिन भोजन का खास ख्याल रखा जाता है। कहते हैं कि दिन मांसाहारी भोजन करना पाप की श्रेणी में आता है।
  • - इस दिन ब्रह्मचार्य व्रत का पालन किया जाता है।  एकादशी के दिन व्रत शांत रखना चाहिए। अपने मुख से इस दिन किसी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल न करें। विवादों से दूरी बनाकर रखें। अपना दिन पूजा-पाठ में लगाएं और इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप भी करते रहें।

सफल एकादशी  व्रत कथा

युधिष्ठिर ने पूछा : स्वामिन् ! पौष मास के कृष्णपक्षकी एकादशी का क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है ? यह बताइये ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजेन्द्र ! बड़ी बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है । पौष मास के कृष्णपक्ष में 'सफला' नाम की एकादशी होती है । उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए । जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है ।

राजन् ! 'सफला एकादशी' को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे । 'सफला एकादशी' को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता ।

नृपश्रेष्ठ ! अब 'सफला एकादशी' की शुभकारिणी कथा सुनो । चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक गहन वन में चला गया । वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया । किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।

एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया । पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । 'सफला एकादशी' के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: 'इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।' यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया । उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: 'राजकुमार ! तुम 'सफला एकादशी' के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।' 'बहुत अच्छा' कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।

राजन् ! इस प्रकार जो 'सफला एकादशी' का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो 'सफला एकादशी' के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है । महाराज ! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है ।

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