Devshayani Ekadashi Katha: देवशयनी एकादशी की कथा सुनने से मिलेगा मुक्ति का मार्ग, जानिए कैसे बरसेगी श्रीविष्णु की कृपा
Devshayani Ekadashi Ki Katha: 29 जून को जगत पालन हर्ता भगवान विष्णु 4 माह के लिए चिरनिद्रा में जायेंगे। इस दिन हरिशयनी एकादशी पड़ेगी। इसे देवशयनी भी कहते हैं, इस दिन से चातुर्मास शुरू होगा। जानते हैहरिशयनी एकादशी की कथा
Devshayani Ekadashi Ki Katha देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा : 29 जून को हरिशयनी एकादशी ( Hari shayani Ekadashi) है। इस दिन से चातुर्मास की शुरूआत के साथ ही भारत के विभिन्न हिस्सों में मानसून सक्रिय हो जाता है।मान्यता के अनुसार इन महीनों में वातावरण में नमी के कारण कई तरह के सूक्ष्म जीव-जंतुओं का जन्म होता है और वे शरीर को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए धर्माधीशों ने इन चार महीनों के लिए कुछ धार्मिक नियम बनाये और उनका अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया।
इस एकादशी की पौराणिक कथा के अनुसार सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ है, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धन-धान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।
एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजा! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो।
राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया।
मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं। कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए।
इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।
इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा या हरिशयनी नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो।
व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला तथा समस्त पापों का नाश करने वाला हैं।
देवशयनी एकादशी के दिन करें ये काम
एकादशी के दिन पीपल में श्रीविष्णु का वास होता है इसलिए पीपल में जल अर्पित करें।
भगवान विष्णु को शयन कराने के पूर्व खीर, पीले फल और पीले रंगी मिठाई का भोग लगाएं।
यदि धनलाभ की इच्छा है तो श्रीहरि विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा करें।
इस दिन शाम को तुलसी माता के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं और उन्हें प्रणाम करें। ध्यान रखें कि माता तुलसी को जल अर्पित नहीं करना है।
दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु का अभिषेक करें।
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
इस साल 2023 में देवशयनी या हरिशयनी एकादशी 29 जून को पड़ेगी।
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देवशयनी एकादशी तिथि प्रारम्भ - 29 जून, 2023 को 09:59 Pm बजे
देवशयनी एकादशी तिथि प्रारम्भ- 30 जून को, शुक्रवार को 02.42 30 जून को, शुक्रवार को 02.42 ए एम पर समापन होगा ए एम पर समापन होगा
एकादशी व्रत पारण- 5:36 AM से 8:21 AM
शाम 06.32 मिनट तक है।
इस दिन का शुभ समय या अभिजित मुहूर्त 11. 54 मिनट से दोपहर 12.49 मिनट तक है
ब्रह्म मुहूर्त : 04:10 AM से 04:58 AM
अमृत काल : 12:19 AM से 02:02 AM
अभिजित मुहूर्त: 12:02 PM से 12:55 PM