कब और कैसे शुरू हुआ दीपावली का त्योहार? यहां जानें सबकुछ

दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना है। दीप और आवली यानि दीप की पंक्ति या कतार। यहीं वजह है कि इस दिन दीप जलाने और घरों के आस पास जगमग करने का खास महत्व है।

Update: 2019-10-26 10:26 GMT

लखनऊ: दीपावली यानी साफ सफाई, खुशियां, पकवान और रोशनी का त्यौहार। क्या आपको मालूम है कि इस पावन पर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई थी? तो आइये आज हम आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं।

दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना है। दीप और आवली यानि दीप की पंक्ति या कतार। यहीं वजह है कि इस दिन दीप जलाने और घरों के आस पास जगमग करने का खास महत्व है।

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पांडवों के वनवास से जुड़ी है ये कहानी-

दीवावली की एक कथा पांडवों से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार पांडवों को वनवास की सजा हुई थी। वनवास की अवधि पूरी होने के बाद पांडव वापस अपने घर लौट आये थे।

लोग उनके वापस लौटने से काफी खुश थे और उन्होंने अपने घरों के बाहर दीपक से रोशनी करके पांडवों के घर वापस लौटने का स्वागत किया था। कथा के अनुसार तब से दीपावली से मनाने की शुरुआत हुई थी।

श्रीकृष्ण और नरकासुर से जुड़ी है ये कहानी

नरका सुर को नारी के हाथों मृत्यु का श्राप मिला था। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से असुर राजा नरकासुर का वध किया था। वो दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।

जब प्रजा को नरकासुर के मारे जाने की खबर मिली तो उन्होंने घरों के बाहर दीपक जलाए और जश्न मनाया। उसके अगले दिन लोगों ने दीपावली मनाई।

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ये कथा धनवन्तरि से जुड़ी हुई है-

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी कि धनतेरस को समुद्र मंथन से देवताओं के वैद्य धनवन्तरि अमृत कलश के साथ अवतरित हुए थे।

धनवन्तरि के अवतरित होने के कारण धनतेरस मनाया जाने लगा। कथा में उल्लेख है कि उसके बाद धन की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिनके स्वागत में दीपक जलाकर दीपोत्सव मनाया गया। ऐसा कहा जाता है कि सतयुग में ही पहली दीपावली मनाई गई थी।

लक्ष्मी गणेश पूजा से जुड़ा हुआ है ये प्रसंग

हम सब जानते हैं कि धन के बिना विद्या और विद्या के बिन धन। हमारे जीवन को नीरस बना देता है। वैसे दीपावली पर हम भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा करते हैं और कुशल मंगल की कामना भी करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं और माता लक्ष्मी धन की देवी हैं।

ये कथा भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ी हुई है

भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दीपावली मनाई गई थी, हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे। तब से दीपावली का यह पर्व अंधकार पर विजय का पर्व बन गया और हर वर्ष मनाया जाने लगा।

रामायण में बताया गया है कि भगवान श्रीराम जब लंका के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी।

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