इस दिन स्नान से होता है जन्म-जन्मांतर के पाप का नाश, खुलता मोक्ष का द्वार
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक गंगा को त्रिलोक पथ गामिनी कहा गया है। गंगा मां तीनों लोक में मौजूद हैं। स्वर्ग में गंगा को मंदाकिनी और पाताल में भागीरथी कहा गया है। राजा भगीरथ के कठोर तप से गंगा मां, धरती पर आईं।
जयपुर: पतितपावनी मां गंगा, मनुष्यों के पापों को धोने वाली हैं। विष्णु पुराण में कहा गया है कि गंगा मां का नाम लेने, सुनने, देखने, जल ग्रहण करने, स्पर्श करने और गंगा में स्नान करने से मनुष्य के जन्म-जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। भगवान कृष्ण ने स्वयं को नदियों में गंगा कहा है। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है।
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पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक गंगा को त्रिलोक पथ गामिनी कहा गया है। गंगा मां तीनों लोक में मौजूद हैं। स्वर्ग में गंगा को मंदाकिनी और पाताल में भागीरथी कहा गया है। राजा भगीरथ के कठोर तप से गंगा मां, धरती पर आईं। गंगा के किनारे ही महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की। दुनिया में केवल गंगा ही एकमात्र नदी हैं, जिन्हें माता कहकर पुकारा जाता है।
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मान्यता है कि यदि किसी को मृत्यु के समय गंगाजल पिलाया जाए तो मरने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। हर शुभ कार्य में गंगा जल का प्रयोग किया जाता है। गंगा मां का जन्म भगवान विष्णु के चरणों से हुआ। मान्यता है कि भगवान विष्णु के पैर गुलाबी कमल रूप में हैं। यही वजह है कि गंगा का रंग गुलाबी माना गया है। गंगा मां का जिक्र सबसे पवित्र और पुरातन ग्रंथ ऋगवेद में है। इस ग्रंथ में गंगा मां को जाह्नवी कहा गया है।