Ganga Dussehra 2023 Kab Hai: 2023 में कब है गंगा दशहरा, जानिए शुभ-मुहूर्त योग और विधि-महत्व

Ganga Dussehra 2023 Kab Hai: शिव की प्रिय और मां पार्वती की बहन गंगा शिव भगवान की जटा में विराजमान है। उनका वेग इतना तीव्र है कि भगवान शिव के सिवा कोई रोक नहीं सकता है। गंगा दशहरा के दिन धरती के जीवों के उद्धार के लिए मां गंगा का अवतरण धरती लोग पर हुआ था, जानते हैं गंगा दशहरा से जुड़ी बातेंं

Update:2023-05-22 16:44 IST
सांकेतिक तस्वीर,सौ. से सोशल मीडिया

Ganga Dussehra 2023 : हिंदू धर्म में गंगा नदी को नदियों में पवित्र माना जाता है, जिन्हें पूजा जाता है और जिनके जल का उपयोग मांगलिक कार्य और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। गंगा दशहरा के दिन मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। गंगा दशहरा हर साल जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार गंगा दशहरा 30 मई को मनाया जाएग। इसकी शुरुआत 29 मई को होगी। इसलिए इस बार गंगा दशहरा पर्व दो दिन मनाये जायेंगे। इस दौरान सात्विक भोजन करें इस बार गंगा दशहरा 30 मई 2023 को मनाया जा रहा है। गंगा मां ने अपनी 7 संतानों को नदी में बहा दिया था से जुड़ी रोचक कहानी।


गंगा दशहरा तिथि व शुभ मुहूर्त 2023

  • गंगा दशहरा तिथि - मई 30, 2023
  • दशमी तिथि प्रारम्भ- मई 29, 2023 को 05:36 बजे शाम
  • दशमी तिथि समाप्त- मई 30, 2023 को 02:57 बजे शाम
  • सर्वार्थसिद्धि योग - May 31 05:45 AM - May 31 06:00 AM
  • सर्वार्थसिद्धि योग - May 29 02:20 AM - May 29 05:45 AM
    सिद्धि योग 08:54 PM तक, उसके बाद व्यातीपात योग


    गंगा दशहरा पूजा-विधि और महत्व

    दशहरा दस पापों को धोने की मां गंगा की क्षमता को बताता हैं। ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष, दसवां दिन, गुरुवार, हस्त नक्षत्र, सिद्ध योग, गर-आनंद योग और कन्या राशि में चंद्रमा और वृष राशि में सूर्य शामिल हैं। ऐसा माना जाता हैं कि अगर भक्त इस दिन पूजा करते हैं, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। कीमती सामान खरीदने, नए वाहन खरीदने या नए घर में प्रवेश करने के लिए दिन अनुकूल माना जाता हैं। जो भी इस दिन गंगा स्तोत्र का पाठ करते हैं, गंगा के जल में खड़े होकर सभी पापों से मुक्ति पाते हैं
    इस गंगा सहित पवित्र नदियाों में स्नान का विधान हैं। और मुक्ति के लिए अपने पूर्वजों के लिए पितृ पूजा करते हैं और पवित्र डुबकी लगाकर गंगा की पूजा करते हैं। गंगा के तट पर, आरती गोधूलि में पत्तों से लदी नौकाओं और नदी में बहाए जाने वाले फूलों से की जाती हैं। देवी गंगा की पूजा करते समय सभी पदार्थ दस की गिनती में होने चाहिए। उदाहरण के लिए, दस प्रकार के फूल, सुगंध, दीपक, दायित्व, बेताल के पत्ते और फल। दस अलग-अलग तरह की चीजों का दान करें। गंगा में स्नान करते समय, आपको दस डुबकी लेनी चाहिए।।


गंगा दशहरा की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा शांतनु मां गंगा से प्रेम करते थे और उनसे विवाह करना चाहते थे. यह बात जानकर मां गंगा उनसे विवाह करने के लिए राजी हो गईं, परंतु उन्होंने इसके लिए एक शर्त रखी की राजा शांतनु उन्हें किसी भी बात के लिए रोकेंगे-टोकेंगे नहीं। वे मां गंगा से प्रेम करते थे तो उन्होंने उनकी इस शर्त को मान लिया कभी ना रोकने टोकने का वचन दिया पर उनको दिया ये वचन राजा शांतनु के लिए बड़ी आफत बन गई।

विवाह के बाद जब देवी गंगा गर्भवती हुई. वे जन्म के बाद अपनी हर संतान को नदी में बहा देती थीं। इस क्रम में देवी गंगा ने अपने सात पुत्रों को नदी में बहा कर उनकी हत्या कर दी, क्योंकि राजा शांतनु ने देवी गंगा को वचन दिया था कि वे उनसे कभी कोई प्रश्न नहीं करेंगे।इस वचन के चलते वे अकेले में तड़पते, रोते और देवी गंगा से किसी तरह का कोई सवाल नहीं कर पाते।

जब देवी गंगा ने आठवें पुत्र को जन्म दिया और वे उसे नदी में बहाने जा ही रही थी कि पीछे से शांतनु ने आकर उन्हें रोक लिया और कहा कि मैं यह सहन नहीं कर पाऊंगा। तब देवी गंगा ने उन्हें कोई भी प्रश्न ना पूछने का वचन याद दिलाया। राजा ने कहा उस समय मैं राजा था, लेकिन अभी मैं एक पिता के हक से यह सवाल करता हूं कि तुम बार-बार मेरे पुत्रों की इस तरह हत्या क्यों कर रही हो?

देवी गंगा ने बताया कि मैं अपने पुत्रों की हत्या नहीं, बल्कि उन को श्राप मुक्त कर रही हूं. मैं स्वर्ग में रहने वाली ब्रह्मपुत्री आपके साथ धरती पर एक श्राप के साथ रह रही हूं. उन्होंने आगे बताया कि पिछले जन्म में महाराज महाभिषेक थे जो इंद्रलोक आए थे. तभी मैं पिता के साथ वहां पहुंची थी. महाराज महाभिषेक मेरी सुंदरता को देखकर मोहित हो गए थे और मैं भी उनमें खो गई थी. यह देखकर ब्रह्मदेव को क्रोध आ गया और उन्होंने हम दोनों को मनुष्य रूप में जन्म लेने के लिए श्राप दिया.

तो देवी गंगा ने कहा कि नहीं आपकी आठों संतान तो वसु हैं. वरिष्ठ ऋषि की गाय को चुराने पर ऋषि ने उन्हें धरती पर जन्म लेने के लिए श्राप दिया था. उस समय मैंने ऋषि को यह वचन दिया था कि मैं अपनी कोख से इन्हें जन्म दूंगी और उसके बाद मृत्यु लोक से उन्हें मोक्ष प्राप्त करवांउगी परंतु आज आपने आठवीं संतान को मृत्यु से बचाया है, जिसे अब पृथ्वी पर रह कर ही इस श्राप को भुगतना होगा. इस आठवीं संतान की उस चोरी में महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.

देवी गंगा राजा शांतनु के आठवें पुत्र देवव्रत थे, जो अपनी प्रतिज्ञा के कारण भीष्म पितामह के रूप में जाने गए. भीष्म पितामह को किसी भी तरह के सांसारिक सुख प्राप्त नहीं हुए. उन्हें अपने जीवन से लेकर मृत्यु तक अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा

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