Guru ki Mahima:बलिहारी गुरू आपने, गोविंद दियों बताय...इन वेद मंत्रों में गुरु की महिमा का बखान है, गुरु और भगवान एक समान है....

Guru ki Mahima : गुरु और भगवान में अंतर नहीं है। , गुरु विष्णु के समान दिए हुए ज्ञान की रक्षा करता है और शंकर के समान अज्ञान का संहार करता है ! गुरु साक्षात् पर ब्रम्ह ही है जो सत्य से परिचय करवाकर सत्यता में लय कर देता है इसीलिए ऐसे गुरु का वंदन है !

Newstrack :  suman
Update:2024-07-19 10:00 IST

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

                                                                       Guru ki Mahima

                                                             गुरु की महिमा

"गुं रौतितिः गुरु:" : अर्थात गुरु वह है जो गुं ( अज्ञान ) का नाश और मर्दन करके प्रकाश प्रदान करे !

गुरु का अर्थ है, जो अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले चले। सिर्फ ज्ञान देना ही गुरु का काम नहीं है, गुरु ही सत्य-असत्य का बोध जगाकर हमारे भीतर विवेक पैदा करता है। देखा जाए, तो गुरु कोई व्यक्ति नहीं होता, बल्कि यह एक तत्व है, जो समस्त सृष्टि में चेतना के रूप में विद्यमान है।

"गिरति अज्ञानान्धकारम् इति गुरु:।"

अर्थात जो अपने सदुपदेशों के प्रकाश से अज्ञानरूपी अंधकार को दूर कर देता है, वह गुरु है।

"गारयते विज्ञापयति शास्त्र रहस्यम् इति गुरु:"

अर्थात जो शास्त्रों के रहस्य को समझा देता है, वह गुरु है।

" गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः !

गुरुर्साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः !!

अर्थात गुरु ब्रम्हा के समान ज्ञान की उत्पत्ति करता है , गुरु विष्णु के समान दिए हुए ज्ञान की रक्षा करता है और शंकर के समान अज्ञान का संहार करता है ! गुरु साक्षात् पर ब्रम्ह ही है जो सत्य से परिचय करवाकर सत्यता में लय कर देता है इसीलिए ऐसे गुरु का वंदन है !

जो समझा दे श्रुति सार !

उर भरा प्रेम रिझवार !!

अर्थात जो theoretical ज्ञान भी रखता हो और भगवतप्रेम प्राप्य महापुरुष भी हो , उसी को गुरु बनाना चाहिए !

ज्ञान दे अज्ञान नासै , सोई गुरुवर प्यारे !

वो करावे ज्ञान हरि को , श्रुति पुरानन प्यारे !

वो करावे हरि मिलन की , साधना भी प्यारे !

मतलब सिर्फ ज्ञान देकर ही नहीं छोड़ देता , उसको पाने के लिए साधना भी करवाता है !

योगशिखोपनिषत् कहता है—

यथा गुरुस्तथैवेशः यथैवेशस्तथा गुरुः।

ये भगवान् जैसे हैं न, वैसा ही गुरु है।

पॉइंट वन परसेंट भी कम माना

कि नामापराध हुआ, गए,

योगशिखोपनिषत् (५-५८)।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवः सदाशिवः।

न गुरोरधिकः कश्चित् त्रिषुलोकेषु विद्यते॥

(योगशिखोपनिषत्, ५-५६)

फिर वेद कहता है—

गु शब्दस्त्वन्धकारः स्याद् रु शब्दस्तन्निरोधकः।

गुरु शब्द का अर्थ बता रहा है वेद—

अन्धकार निरोधित्वाद् गुरुरित्यभिधीयते॥

द्वयोपनिषत् का चौथा मन्त्र और ये अद्वयतारकोपनिषत् में भी ये मन्त्र है, सोलहवाँ मन्त्र।

अर्थात्, गुरु से बड़ा कोई तत्त्व नहीं होता।

भगवान् वगैरह नहीं।

क्यों? बताएँगे, बताएँगे, धैर्य रखो!

गुरुरेव परं ब्रह्म।

अरे! वही ब्रह्म है, भगवान् है गुरु ही।

द्वयोपनिषत् का पाँचवाँ मन्त्र।

और ये अद्वयतारकोपनिषत् में भी ये मन्त्र है,

सत्रहवाँ मन्त्र। पहले वाला सोलहवाँ मन्त्र। उधर से फिर आये—

गुरुरेव परो धर्मो गुरुरेव परा गतिः।

शाट्यायनी उपनिषद्, छत्तीसवाँ मन्त्र।

और इससे बड़ा कोई धारण करने वाला तत्त्व नहीं होता।

जिसने गुरु को धारण कर लिया,

उसको भगवान् की भी आवश्यकता नहीं।

भगवान् तो पागल हो जाते हैं,

जो गुरु का भक्त होता है उसके प्रति।

बिना उपासना के।

हम बताएँगे आगे।

गुरु भक्तिं सदा कुर्यात्।

(ब्रह्मविद्योपनिषत्, तीसवाँ मन्त्र)

गुरुरेव हरिः साक्षात्

(ब्रह्मविद्योपनिषत्, इकत्तीसवाँ मन्त्र)

ये सब वेदमंत्र कह रहे हैं

कि भगवान् या गुरु दो हैं ही नहीं।

छोटे-बड़े का सवाल ही नहीं है।

इसीलिए, गुरु को हम उसी प्रकार समझें, जैसे भगवान्।

तो, चूँकि भगवान् बुद्धि से परे है।

ब्रह्मा, शंकर की बुद्धि से परे है।

ऐसे ही, गुरु भी बुद्धि से परे है, क्योंकि दोनों एक हैं।

आचार्यं माम विजानीया, न ये मन्येत कर्हिचित !

न मर्त्य बुद्ध्या सूयेत, सर्व देव मयो गुरु !!

- भगवान श्री कृष्ण

अर्थात,प्रभु श्री कृष्ण बता रहे हैं कि यदि कोई शास्त्रों वेदों का आचार्य मिले तो जान लेना कि मै ही हूँ. इस बात पर संदेह मत करना. आचार्य के रूप में मै मिलूँ तो मुझे मनुष्य मत समझ लेना और समस्त देवताओं को छोड़कर मुझ आचार्य को गुरु मानकर पकड़ लेना !

परन्तु ....................................................

गुरु करो जान के , पानी पीयो छान के !

आजकल के गुरु और कथावाचक नहीं जो सार ही न बता पाएं कि सत्य क्या है ! ऐसे गुरु खुद तो डूबते ही हैं साथ में उनके followers भी अंधकूप में डूब मरते हैं !

गुरु बिनु भवनिधि तरहिं न कोई !

जोइ विरंचि शंकर सम होई !!

भगवान् शंकर के समान सरीखा कोई क्यूँ न हो , वह भी बिना गुरु के इस अज्ञान रुपी संसार से पार नहीं पा सकता !

अरे क ख ग अक्षर तक का ज्ञान बिना एक साधारण शिक्षक के द्वारा नहीं हो पाता तो आत्मा सम्बन्धी तत्वज्ञान बिना किसी गुणातीत भगवत्प्राप्त महापुरुष के कैसे हो सकता है !

आज कलयुग में असंख्य गुरु बन बैठे हैं , बस दाढ़ी बढ़ा ली , थोड़ा रूप अलग कर लिया , गेरुवा कपड़े पहन लिए और अपने साथ गाजा बाजा ले लिया उससे लगे जनता को बहलाने !

अपनी अपनी तरह से अर्थ का अनर्थ करके और वाणी विलास का साथ लेकर आज लोगों ने अपनी दुकान चला ली है जिससे गुरु का वास्तविक अर्थ पूर्णतः खो सा गया है !




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