Hal Shashthi 2022: आज हल षष्ठी या ललही छठ, जानें मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Hal Shashthi 2022: आमतौर पर लोग इसे हरछठ, ललई छठ के नाम से भी कहते है। इस बार षष्ठी तिथि 17 अगस्त 2022 शाम 6:50 से शुरू होगी, जो 18 अगस्त को रात्रि 8:55 बजे तक रहेगी। ऐसे में इस बार आज 17 अगस्त को लोग हल षष्ठी या ललही छठ का व्रत मना रहे है।

Written By :  Preeti Mishra
Update: 2022-08-17 10:55 GMT

Hal Shashthi (Image credit: social media) 

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Hal Shashthi 2022: आज यानी बुधवार 17 अगस्त को हल षष्ठी या ललही छठ का त्यौहार मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में हल षष्ठी या ललही छठ का विशेष महत्त्व माना गया है। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पष्ठी तिथि को हल षष्ठी (Hal Shashthi) या ललही छठ मनाया जाता है। आमतौर पर लोग इसे हरछठ, ललई छठ के नाम से भी कहते है। इस बार षष्ठी तिथि 17 अगस्त 2022 शाम 6:50 से शुरू होगी, जो 18 अगस्त को रात्रि 8:55 बजे तक रहेगी। ऐसे में इस बार आज 17 अगस्त को लोग हल षष्ठी या ललही छठ का व्रत मना रहे है।

जाने क्यों मनाई जाती है हल षष्ठी ?

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मोत्सव के रूप में हल षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। मान्यताओं के मुताबिक़ बलराम को शेषनाग का अवतार ​माना जाता है क्योंकि श्री कृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में अवतार ले लिया था।

मान्यता है कि हल षष्ठी पर संतान के सुख, समृद्धि और उसके स्वास्थ्य के लिए व्रत माताएं व्रत रखती है। ख़ास कर पुत्रवती महिलाएं हल षष्ठी पर व्रत और पूजन करती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हल षष्ठी व्रत रखने से संतान पर आने वाले सभी प्रकार के संकट दूर होने के साथ पुत्रों को दीर्घ आयु होने का आशीर्वाद भी मिलता है।

हल षष्ठी की पूजन -विधि

धार्मिक रूप से ललही छठ पर महिलाएं अपने पुत्रों की संख्या के हिसाब से छह मिट्टी के बर्तनों में 6,7 भुने हुए अनाज या मेवा रखती हैं। इसके बाद विधि- विधान के साथ हल षष्ठी व्रत पर पूजा - पाठ करती हैं। इस दिन महिलाएं महिलाएं एक गड्ढा बनाती हैं और उसे गोबर से लीप कर तालाब का रूप देती हैं।

इसके बाद झरबेरी और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर हरछठ को गाड़ा जाता है। इसके पूजा के समय भुना हुआ चना और जौ की बालियां भी चढ़ाई जाती हैं। मान्यता है कि व्रत के दौरान हल जोत कर उगाए अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही इसमें सिर्फ भैस के दूध का उपभोग करना मान्य है। चाहे वो दूध हो या दही या फिर घी। सब कुछ भैस के दूध से ही निर्मित होना चाहिए। इसप्रकार विधि -विधान के साथ पूजा - पाठ करके रात्रि में चांद देख कर इस व्रत को खोला जाता है। किन्तु हल जोत कर उगाए अन्न का सेवन नहीं किया जाता है। 

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