हरतालिका व्रत: इस दिन है तीज, जानिए किस मुहूर्त में करें व्रत और किसमें पारण

भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरितालिका तीज का त्यौहार शिव और पार्वती के पुर्नमिलन की खुशी में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने 107 जन्म लिए। उनके 108वें जन्म में भोले बाबा ने उनके कठोर तप से प्रसन्न हो अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।

Update:2019-08-28 22:17 IST

जयपुर: भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरितालिका तीज का त्यौहार शिव और पार्वती के पुर्नमिलन की खुशी में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने 107 जन्म लिए। उनके 108वें जन्म में भोले बाबा ने उनके कठोर तप से प्रसन्न हो अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद से ही ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां पार्वती पतियों को दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं।

क्यों पड़ा हरितालिका तीज नाम

ये शब्द दो शब्दों से बना है, हरित और तालिका। हरित का अर्थ है हरण करना और तालिका का अर्थ है सखी(सहेली)। यह त्यौहार भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, इसी लिए इसे तीज कहा जाता है। इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है, क्योकि पार्वती की सखी उन्हें पिता के घर से हरण कर वन ले गई थी।

पूजन सामग्री

गीली मिट्टी या बालू, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल, अकांव का फूल, मंजरी, जनैव, वस्त्र व सभी प्रकार के फल एंव फूल।

माता पार्वती के लिए

सुहाग सामग्री, मेंहदी, चूड़ी, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर। इसके साथ ही श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध, शहद व गंगाजल पंचामृत के लिए।

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हरितालिका तीज की विधि

इस दिन महिलायें निर्जल व्रत रखती है। घर को धो-पोंछ के सजाया जाता है। एक चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिव-पार्वती सहित रिद्धि-सिद्धि, गणेश व देवी पार्वती की सखी की आकृति बनाई जाती है। तत्पश्चात षोडशेपचार पूजन होता है। पूजन पूरी रात्रि होता है। प्रत्येक पहर में शिव की आरती होती है।

मां पार्वती को प्रसन्न करने के मन्त्र

ऊं उमाये नमः। ऊं पार्वत्यै नमः। ऊं जगद्धात्रयै नमः। ऊं जगत्प्रतिष्ठायै नमः। ऊं शांतिरूपिण्यै नमः।

भगवान शिव को प्रसन्न करने के मन्त्र

ऊं शिवाये नमः। ऊं हराय नमः। ऊं महेश्वराय नमः। ऊं शम्भवे नमः। ऊं शूलपाणये नमः। ऊं पिनाकवृषे नमः। ऊं पिनाकवृषे नमः। ऊं पशुपतये नमः।

सर्वप्रथम 'उमामहेश्वरायसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये' मन्त्र का संकल्प कर पूजन सामग्री एकत्रित करें। हरतिालिका पूजन प्रदोष काल में संपन्न होता है क्योंकि इस काल में दिन व रात्रि का मिलन होता है।

संध्याकाल में स्नान कर शुद्ध व धवल वस्त्र धारण किये जाते हैं। इसके बाद शिव -पार्वती की मिट्टी से मूर्ति बना विधिवत पूजन होता है। पूजन के बाद देवी पार्वती को सुहाग सामग्री अर्पित की जाती है। भगवान भोलेनाथ को धवल धोती व अंगवस्त्र अर्पित किया जाता है इसके बाद समस्त सामग्री ब्राहम्ण दंपत्ति को दान की जाती है। इस प्रकार पूजन के बाद हरितालिका व्रत कथा सुनी जाती है।

कथा सुनने के बाद शिव परिक्रमा होती है और सर्वप्रथम गणेश वंदना के बाद शिव-पार्वती की आरती। इसके बाद एक बार फिर शिव की परिक्रमा होती हैं। रात्रि जागरण कर भोर में माता पार्वती को सिंदूर चढ़ा ककड़ी-हलवे का भोग लगा व्रत तोडा जाता है। अन्त में समस्त सामग्री को एकत्रित कर विसर्जित किया जाता है।

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हरतालिका व्रत कथा

शिव नें पार्वती को बताया कि वो अपनें पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती के रूप में भी वे शंकर की प्रिय पत्नी थीं। एक बार सती के पिता ने एक यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें अपने जमाता भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब इस बारे में सटी को पता चला तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा, लेकिन बिना आमंत्रण के शिव ने जाने से इंकार कर दिया।

तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं औऱ पिता से पूछा कि मेरे पति को क्यों नहीं बुलाया इस पर दक्ष नें शिव का अपमान किया जो सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी।

अगले जन्म में सती ने हिमालय राजा और उनकी पत्नी मैना के यहां जन्म लिया। बाल्यावस्था से ही पार्वती भगवान भोले की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए कठिन तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा, लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी।पार्वती ने यह बात अपनी सखी को बताई। वह सखी पार्वती को एक घने जंगल में ले गई। पार्वती ने जंगल में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर कठोर तप किया, जिससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर पार्वती से वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी धर्मपत्नी बनाने का वरदान मांगा, जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार किया। इस तरह माता पार्वती को भगवान शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए।

इस दिन रखें व्रत

इस साल पंचांग की गणना के अनुसार तृतीया तिथि का क्षय है यानी कि पंचांग में तृतीया तिथि का मान नहीं है। इस हिसाब से 1 सितंबर को जब सूर्योदय होगा तब द्वितीया तिथि होगी, जो कि 08 बजकर 27 मिनट पर खत्‍म हो जाएगी। इसके बाद तृतीया तिथि लग जाएगी। ज्‍योतिषियों के मुताबिक तृतीया तिथि अगले दिन यानी कि दो सितंबर को सूर्योदय से पहले ही सुबह 04 बजकर 57 मिनट पर समाप्‍त हो जाएगी. ऐसे में असमंजस इस बात का है कि जब तृतीया तिथि को सूर्य उदय ही नहीं हुआ तो व्रत किस आधार पर रखा जा।पंचांग के अनुसार 2 सितंबर को सूर्योदय के बाद सुबह 8 बजकर 58 मिनट तक तृतीया तिथि रहेगी और फिर चतुर्थी लग जाएगी. यानी कि तृतीया तिथि में सूर्योदय होगा।इसके अलावा कुछ विद्वानों को यह भी मानना है कि चतुर्थी युक्‍त तृतीया को बेहद सौभाग्‍यवर्द्धक माना जाता है। हस्‍त नक्षत्र में तीज का पारण नहीं करना चाहिए। जो महिलाएं 1 सितंबर को व्रत रखेंगी उन्‍हें 2 सितंबर को तड़के सुबह हस्‍त नक्षत्र में ही व्रत का पारण करना पड़ेगा, जो कि गलत है। वहीं अगर महिलाएं 2 सितंबर को व्रत करें तो वे 3 सितंबर को चित्रा नक्षत्र में व्रत का पारण करेंगी. पुराणों में चित्रा नक्षत्र में व्रत का पारण करना शुभ और सौभाग्‍यवर्द्धक माना गया है।

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