क्या है होलाष्टक, किस दिन से हो रहा शुरू, जानिए क्यों नहीं करते शुभ काम

होलिका दहन की रात को सरसों का उबटन बनाकर शरीर पर मालिश करनी चाहिए। फिर निकले मैल को होलिका दहन में डालना चाहिए।

Update: 2021-03-19 04:25 GMT
नामकरण, विवाह की चर्चाएं, मुंडन, हवन, विवाह, गृह शांति, गर्भाधान, गृहप्रवेश, गृह निर्माण, विद्यारंभ सहित अनेक शुभ कर्म

जयपुर : ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्त तय कर उस हिसाब से ही उसे करने की अनुमति देता है। कोई भी कार्य यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है। शुभ मुहूर्त का मतलब ऐसे समय से है जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो। साल 2021 में होलाष्टक का आरंभ 22 मार्च से हो जाएगा। इस दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि रहेगी। ज्योतिष के मुताबिक चंद्रमा मिथुन राशि में विराजमान होंगे और इस दिन आद्रा नक्षत्र भी रहेगा।

 

अन्य ग्रहों व राशियों की बात की जाए तो वृष राशि में राहु और मंगल, वृश्चिक राशि में केतु, मकर राशि में गुरू और शनि, कुंभ राशि में बुध और मीन राशि में सूर्य व शुक्र विराजमान रहेंगे। ज्योतिष के अनुसार होलाष्टक का समापन होलिका दहन के दिन हो जाता है। पंचाग के मुताबिक होलिका दहन 28 व 29 मार्च को होली खेली जाएगी।

होलाष्टक का समापन

ज्योतिशास्त्र के अनुसार होलाष्टक के दौरान किया गया कार्य विपरीत परिणाम लेकर आ सकता है और ये पीड़ादायी एवं कष्टकारी बन सकता है। होलाष्टक के आठ दिन किसी भी ऐसे कार्य करने के लिए पूर्णत अशुभ माने जाते हैं, जो आपके जीवन में मंगलकारी माने गए हैं।

 

 

होलाष्टक पर क्या न करें

होलाष्टक के दौरान विवाह का मुहूर्त नहीं होता इसलिए इन दिनों में विवाह जैसा मांगलिक कार्य संपन्न नहीं करना चाहिए।

नए घर में प्रवेश भी इन दिनों में नहीं करना चाहिए।

भूमि पूजन भी इन दिनों में न ही किया जाए तो बेहतर रहता है।

विवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है।

हिंदू धर्म में 16 प्रकार के संस्कार बताए जाते हैं, इनमें से किसी भी संस्कार को संपन्न नहीं करना चाहिए। हालांकि दुर्भाग्यवश इन दिनों किसी की मौत होती है तो उसके अंत्येष्टि संस्कार के लिए भी शांति पूजन कराया जाता है।

महादेव ने किया था कामदेव को भस्म

मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई। जब कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमा याचना की गई, तब भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई। होलाष्टक का अंत दुल्हेंदी के साथ होने के पीछे एक पौराणिक कारण यह माना जाता है।

नामकरण, विवाह की चर्चाएं, मुंडन, हवन, विवाह, गृह शांति, गर्भाधान, गृहप्रवेश, गृह निर्माण, विद्यारंभ सहित अनेक शुभ कर्म। फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाएगा और इसके अगले दिन 29 मार्च को धुलेण्डी (होली) पर रंग-गुलाल खेलकर खुशियां मनाई जाएंगी।

यह पढ़ें...रंगभरी एकादशीः विष्णु के साथ करें शिव का ध्यान, होगा कल्याण, कैसे जानें यहां

होलाष्टक लगने से होली

शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन के आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाता है। इसके अनुसार होलाष्टक लगने से होली तक कोई भी शुभ संस्कार संपन्न नहीं किए जाते। यह भी मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक प्रहलाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई। हिन्दू धर्म में किसी भी घर में होली के पहले के आठ दिनों में शुभ कार्य नहीं किए जाते। होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद व उनके पिता अत्याचारी हिरण्यकश्यप की कथा से है।

स्कंद पुराण के अनुसार राक्षसी प्रवृत्ति का राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से ईष्र्या व जलन की भावना रखता था। उसके राज्य में जो कोई भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता था उसे मौत की सजा सुनाई जाती थी। कथा के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु भक्ति के बारे में जब राजा को पता चला तो उसने प्रहलाद को समझाया मगर प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। इससे क्रोधित होकर राजा ने अपने पुत्र को मृत्युदंड की सजा सुनाई।

 

बीच छोड़ा, नदी में डुबो

राजा के आदेश पर सैनिकों ने भक्त प्रहलाद को अनेक यातनाएं दीं। उसे मरने के लिए जंगली जानवरों के बीच छोड़ा, नदी में डुबो दिया, ऊंचे पर्वत से भी फेंका गया। हर सजा देने पर भी भक्त प्रहलाद भगवान की कृपा से बच गया। अंत में राजा ने अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाकर प्रहलाद को जिंदा जला डालने का हुक्म दिया। राजा की बहन होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में भी भस्म नहीं होगी। प्रभु कृपा से प्रहलाद तो बच गया मगर होलिका जल गई। उस दिन से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई।

घर के चारों तरफ छिडक़ें राख

होलिका दहन की रात को भाग्य को जगाने वाली रात भी कहते है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस रात को साधना करने से जल्दी ही शुभ फल मिल जाता है। होलिका दहन के बाद इसकी राख को घर के चारों तरफ और दरवाजे पर छिडक़ना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर पाती है। होलिका दहन की रात को सरसों का उबटन बनाकर शरीर पर मालिश करनी चाहिए। फिर निकले मैल को होलिका दहन में डालना चाहिए।

यह पढ़ें...19 मार्च: कृत्तिका नक्षत्र किस राशि के लिए होगा शुभ, किसके लिए अशुभ, जानें राशिफल

ऐसा करने से आपके शरीर से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है। अगर आपके ऊपर किसी ने टोने-टोटके कर रखे हैं तो गाय के गोबर में जौ,अरसी मिलाकर उपला बनाएं। इसे घर के मुख्य दरवाजे पर लटका देने से सारी नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है। होलिका दहन के बाद अगली सुबह उसकी राख का माथे पर टीका जरूर लगाना चाहिए। इससे 27 देवता प्रसन्न होते हैं।

Tags:    

Similar News