फिजाँ बदल देती है अवतार की आँधी

कृष्ण भगवान् का रास्ता दूसरा था। रामावतार में जो अभाव रह गया था, जो कमी रह गई थी, जो अपूर्णता रह गई थी, वह उन्होंने पूरी की। इस बात से फायदा यह हुआ कि यदि शरीफों से वास्ता न पड़े, तब क्या करना चाहिए? खराब लोगों से वास्ता पड़े तब, खराब भाई हो तब, खराब मामा हो तब, खराब रिश्तेदार हो तब, क्या करना चाहिए? तब के लिए श्रीकृष्ण भगवान् ने नया रास्ता खोला।

Update: 2023-05-11 22:34 GMT
incarnation of Lord Krishna was to complete the incompleteness in Ramavatar (Photo-Social Media)

रामचंद्र जी ने कहा- ठीक है, ऐसे धर्मपरायण शालीन पिता यदि आज्ञा देते हैं और हमको वनवास जाने का मौका मिलता है, तो हमें चले जाना चाहिए। भरत जैसा भाई यदि राजपाट सँभाल लेता है, तो वह और अच्छी तरह से चलेगा। उसमें कोई कमी नहीं आने वाली है। प्रेमभाव भी बना रहेगा, मुझे भी शांति मिलेगी। अतः मैं वनवास चला जाता हूँ, तो हर्ज की क्या बात है। इस सिद्धांत को लेकर उन्होंने राजगद्दी भरत के हवाले कर दी और बाप का कहना मान लिया। अपूर्णता को पूरा किया मित्रो!

बात चल रही थी- श्रीकृष्ण भगवान् की। कृष्ण भगवान् का रास्ता दूसरा था। रामावतार में जो अभाव रह गया था, जो कमी रह गई थी, जो अपूर्णता रह गई थी, वह उन्होंने पूरी की। इस बात से फायदा यह हुआ कि यदि शरीफों से वास्ता न पड़े, तब क्या करना चाहिए? खराब लोगों से वास्ता पड़े तब, खराब भाई हो तब, खराब मामा हो तब, खराब रिश्तेदार हो तब, क्या करना चाहिए? तब के लिए श्रीकृष्ण भगवान् ने नया रास्ता खोला। इसमें विकल्प हैं। इसमें शरीफों के साथ शराफत से पेश आइए। जहाँ पर न्याय की बात कही जा रही है, उचित बात कही जा रही है, इनसाफ की बात कही जा रही है, वहाँ पर आप समता रखिए और उसको मानिए और आप नुकसान उठाइए। लेकिन अगर आपको गलत बात कही जा रही है, सिद्धांतों की विरोधी बात कही जा रही है, तो आप इनकार कीजिए और उससे लड़िए और यदि जरूरत पड़े, तो मुकाबला कीजिए और मारिए। कंस श्रीकृष्ण भगवान् के रिश्ते में मामा लगता था। लेकिन वह अत्याचारी और आततायी था, अतः उन्होंने यह नहीं देखा कि रिश्ते में कंस हमारा कौन होता है। उन्होंने न केवल स्वयं ऐसा किया, वरन् अर्जुन से भी कहा कि रिश्तेदार वो हैं, जो सही रास्ते पर चलते हैं।

सही रास्ते पर चलने वालों का सम्मान करना चाहिए, उनकी आज्ञा माननी चाहिए, उनका कहना मानना चाहिए। उनके साथ- साथ चलना चाहिए। लेकिन अगर हमको कोई गलत बात सिखाई जाती है, तो उसे मानने से इनकार कर देना चाहिए। यह परंपरा कितने युगों से चली आ रही है कि पिता का कहना मानना चाहिए। लेकिन अगर कोई गलत बात मानने के लिए कही जाती है तब? तब पिता का कहना प्रधान नहीं है। तब कहना चाहिए कि मैं गलत बात नहीं मानूँगा।

लेखिका-कंचन सिंह

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