Janmashtami 2022 Puja Vidhi: जन्माष्टमी पर विधि पूर्वक करें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा, इस दिन का विशेष महत्व

Janmashtami 2022: इस वर्ष जन्माष्टमी शुक्रवार 19 अगस्त को मनाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि जन्माष्टमी के दिन रात 12 बजे कान्हा के जन्म होने पर विशेष पूजा की जाती है। साथ ही इस समय घंटे-घड़ियाल बजा कर उनके जन्म पर खुशियां आपस में बांटी जाती हैं।

Written By :  Preeti Mishra
Update: 2022-08-18 03:23 GMT

janmashtami (Image credit: social media)

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Janmastami 2022 : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को हुआ था। धार्मिक पुराणों की माने तो भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म असुरों के बढ़ रहे अत्याचार और कंस के विनाश के लिए ही लिया था। जन्माष्टमी के शुभ मौके पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव काफी धूम -धाम से मनाई जाती है।

इस पावन दिन भक्त भगवान कृष्ण की पूजा -अर्चना करने के साथ व्रत भी रखते हैं। इस वर्ष जन्माष्टमी शुक्रवार 19 अगस्त को मनाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि जन्माष्टमी के दिन रात 12 बजे कान्हा के जन्म होने पर विशेष पूजा की जाती है। साथ ही इस समय घंटे-घड़ियाल बजा कर उनके जन्म पर खुशियां आपस में बांटी जाती हैं।

झूला झुुलाने का विशेष है महत्व

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को झूला झुुलाने का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन अपने आराध्य भगवान कृष्ण की पूजा के साथ विशेष मंत्रों का उच्चारण भी बेहद फलदायी माना जाता है।

जन्माष्टमी पर व्रत और पूजा के नियम

हिन्दू धार्मिक पुराणों के अनुसार जो भी लोग जन्माष्टमी का व्रत और पूजा करते हैं उन्हें एक रात पहले से ही सात्विक भोजन लेने और ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठ कर पूजा और व्रत का संकल्प लें। इसके लिए हाथ में जल, फल, कुश और गंध लें।

साथ ही ये मंत्र का जप भी करें-

ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये,

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥

ज्योतिषचार्यों के अनुसार सुबह की पूजा के बाद दोपहर में माता देवी की पूजा करनी चाहिए । इसके लिए दोपहर में स्नान करते समय जल में काले तिल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद माता देवकी के लिए 'सूतिकागृह' भी बनाएं।

तत्पश्चात वहीं पर भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा भी स्थापित करें। यदि आपके पास बाल रूप में कृष्ण हो या देवी कृष्ण को दूध पिलाते हुए मुद्रा में हो तो वह बहुत ही उत्तम माना जाता है । साथ में वहां पर देवी लक्ष्मी को भी स्थापित करें। अब रात्रि पूजा में के लिए भगवान के समक्ष सारी पूजा की थाल सजा कर रख दीजिये। ध्यान रहे भगवान कृष्ण के जन्म से कुछ पूर्व ही पूजा की प्रक्रिया शुरू कर दें। इसके लिए धूप-दीप, नैवेद्य, पुष्प, अक्षत, चंदन, रोली आदि सारी पूजन सामग्री से प्रभु की पूजा शुरू करें। मध्यरात्रि जब भगवान जन्म लें तो उन्हें पालना में जरूर झुलाएं। जन्माष्टमी के प्रसाद में धनिया की पंजीरी और फल-मिठाई अवश्य चढ़ाएं।

पूजन के समय रहें स्मरण

याद रखें जब भी भगवान कृष्ण की पूजा करें उसमें माता देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः जरूर लें।

साथ ही इस मंत्र का भी उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि अर्पित करें :

'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।

वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।

सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'

अंत में सभी भक्तों के बीच प्रसाद वितरण करें। इस दिन भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण का भी विधान है।

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