रविवार 22 SEPT को है जिवितपुत्रिका व्रत, निराहार रहकर करती है मांएं दीर्घायु संंतान की कामना
संतान की लंबी आयु व समृद्धि के लिए अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत रखा जाता है। इस साल यह जिवितपुत्रिका व्रत 22 सितंबर दिन रविवार को रखा जाएगा। सप्तमी तिथि शनिवार 21 सितबंर को नहाई खाई होगा।
जयपुर: संतान की लंबी आयु व समृद्धि के लिए अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत रखा जाता है। इस साल यह जिवितपुत्रिका व्रत 22 सितंबर दिन रविवार को रखा जाएगा। सप्तमी तिथि शनिवार 21 सितबंर को नहाई खाई होगा। जिउतिया व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता। यह निर्जला व्रत होता है। व्रत का पारण अगले दिन सुबह होगा।
नियम
अष्टमी तिथि शनिवार 21 सितम्बर को दिन में 3:30 बजे लग जायेगी जो रविवार को 2:29 बजे तक रहेगी। सुबह 08:08 बजे तक मृगशिरा नक्षत्र,उसके बाद आर्द्रा नक्षत्र ,व्यतिपात योग ,सौम्य योगा ,एवं अष्टमी का श्राद्ध इस दिन होगा। पारण 23 सितम्बर 2019 दिन सोमवार को सूर्योदय के बाद कभी भी।
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व्रत दो कथा
एक समय की बात है एक जंगल में चील और सियारिन दो सखी रहती थी एक दिन उन्होंने ने कुछ स्त्रियों को पूजा करते देखा तो चिल ने सियारिन से पूछा बहन ये किस चीज की पूजा कर रही हैं तो सियारिन ने कहा बहन ये अपने संतान की लम्बी आयु के लिए जीवित पुत्रिका व्रत कर रही हैं।तब चिल ने कहा बहन हम भी ये व्रत करेंगे फिर दोनों ने एक साथ व्रत बहुत नियम के साथ किया । लेकिन सियारिन को भूख सहन नहीं हुआ और उसने चुपके भोजन ग्रहण कर लिया। जबकि चील ने बहुत ही बहुत ही नियम के साथ व्रत किया । कुछ दिन बाद सियारिन के सभी बच्चे मर गए जबकि चील के सभी बच्चे दीर्घायु हुए।
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प्राचीन काल में गन्धर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन हुए। वे बहुत ही दयालु तथा परोपकारी थे जब उन्हें रजा बनाया गया तो उन्हें राज पाट में बिलकुल मन नही लगा तो उन्होंने राज पाट अपने भाइयों को देकर स्वयं वन में चले गए एक दिन वन में घूमते- घूमते उन्हें एक वृद्धा रोती हुई दिखाई दी जब उन्होंने उसके रोने का कारन पूछा तो उसने बताया मैं नागवंश की स्त्री हूँ मेरा एक ही पुत्र है पक्षी राज गरूर मुझसे हर दिन एक नाग की बलि मांगते हैं और आज मेरे पुत्र की ही बारी है उसकी व्यथा सुन कर जीमूतवाहन ने कहा ऐसा कीजिये आज में आपके पुत्र की जगह पक्षी राज की बलि बन जाता हूँ. ऐसा ही हुआ गरुड़ राज आये और लाल कपडे में बांधे हुए जीमूतवाहन को लेकर चले गए जब वो उसे लेकर पहाड़ पर पहुचे देखा ये तो मानव है तो उन्होंने इस प्रकार बलि बनाने का कारन पूछ तो जीमूतवाहन ने सारी कहानी सुना दी। तब पक्षी राज गरुड़ को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने आगे से नाग बलि नहीं लेने का वरदान दिया । इस प्रकार जीमूत वहां ने नाग स्त्री के पुत्र को बचाया कहा जाता है तब से जीवित पुत्रिका व्रत शुरु हुआ।