Kamada Ekadashi 2022 Date: कामदा एकादशी पर बन रहा महासंयोग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि और महत्व

Kamada Ekadashi 2022 Date: सनातन धर्म में परमपद की प्राप्ति और ईश्वर की परम भक्ति का सरल माध्यम है एकादशी व्रत। इसे करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। 24 एकादशियों में फलदायी है कामदा एकादशी।

Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update:2022-04-11 08:30 IST

सांकेतिक तस्वीर, सौ.से सोशल मीडिया

Kamada Ekadashi 2022 Vrat Kab hai

कामदा एकादशी व्रत (2022) कब है?

एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।हर महीने दो एकादशी दो पक्ष में पड़ती है। हर एकादशी की अपनी महिमा है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। इस साल 2022 हिंदू नए साल की पहली एकादशी कामदा है, जो 12 अप्रैल मंगलवार को मनाया जाएगा।  कामदा एकादशी को फलदा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिनुसार व्रत रखने और ऋषिकेष की पूजा करने से परमपद की प्राप्ति होती है।

सनातन धर्म में एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) का विशेष महत्व होता हैं। चैत्र मास( Chaitra Month) के शुक्ल पक्ष में आने वाली  साल की पहली एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। जो सभी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करने वाला है।  इस  एकादशी इस व्रत में श्री विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा विधि विधान के साथ कि जाती हैं और कथा भी सुनी जाती हैं।इस  एकादशी व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के बराबर फल मिलता है।

कामदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

  • चैत्र की कामदा एकादशी
  • कामदा एकादशी तिथि प्रारम्भ : एकादशी03:16 AM  से
  • कामदा एकादशी तिथि समाप्त :  05:02 AM तक
  • अभिजीत मुहूर्त - 12:02 PM से 12:52 PM
  • अमृत काल – 06:52 AM से 08:35 AM
  • ब्रह्म मुहूर्त – 04:36 AM से 05:24 AM
  • विजय मुहूर्त- 02:06 PM से 02:56 PM
  • गोधूलि बेला- 06:07 PM से 06:30 PM
  • सर्वार्थसिद्धि योग – 05:39 AM से 08:35 AM
  • रवि योग- 05:39 AM से 08:35 AM
  • कामदा एकादशी पारणा मुहूर्त : 13, अप्रैल 2022 : 01:38 PM से 04:12 PM तक

कामदा एकादशी व्रत विधि

इस दिन सुबह उठकर मिटटी के लेप और कुशा से स्नान करना चाहिए। उसके बाद अजा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा, व्रत, कथा महात्मय सुनने के साथ दान-पुण्य का भी महत्व है। इस दिन पूरे समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र ,चन्दन ,जनेऊ ,गंध, अक्षत ,पुष्प , धूप-दीप नैवेध,पान-सुपारी चढ़ाकर करनी चाहिए। इससे श्रीहरि की कृपा बरसती है। विष्णु पुराण, व गीता के अनुसार अजा एकादशी करने समस्त भय और पापों से मुक्ति और मधुसुधन की कृपा बरसती है।

यह एकादशी बहुत ही फलदायी मानी जाती हैं। कामदा एकादशी को सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद व्रत और दान का संकल्प किया जाता हैं । वही पूजा करने के बाद कथा सुनकर श्रद्धा अनुसार दान करना शुभ माना जाता हैं। इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता हैं। सात्विक दिनचर्या के साथ नियमों का पालन कर के व्रत पूरा किया जाता हैं। इसके बाद ही रात में भजन कीर्तन के साथ जागरण किया जाता हैं। 

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कामदा एकादशी व्रत कथा

कामदा एकादशी व्रत की कथा सबसे पहले श्रीकृष्ण भगवान ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी । एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कामदा एकादशी के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। तब राजा की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उन्हें विधिवत कथा सुनायी। प्राचीन काल में एक नगर था उसका नाम रत्नपुर था। वहां के राजा बहुत प्रतापी और दयालु थे जो पुण्डरीक के नाम से जाने जाते थे। पुण्डरीक के राज्य में कई अप्सराएं और गंधर्व निवास करते थे। इन्हीं गंधर्वों में एक जोड़ा ललित और ललिता का भी था। ललित तथा ललिता में अपार स्नेह था। एक बार राजा पुण्डरीक की सभा में नृत्य का आयोजन किया गया जिसमें अप्सराएं नृत्य कर रही थीं और गंधर्व गीत गा रहे थे। उन्हीं गंधर्वों में ललित भी था जो अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था। गाना गाते समय वह अपनी पत्नी को याद करने लगा जिससे उसका एक पद खराब गया। कर्कोट नाम का नाग भी उस समय सभा में ही बैठा था। उसने ललित की इस गलती को पकड़ लिया और राजा पुण्डरीक को बता दिया।

कर्कोट की शिकायत पर राजा ललित पर बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया। राक्षस बनकर ललित जंगल में घूमने लगा। इस पर ललिता बहुत दुखी हुयी और वह ललित के पीछ जंगलों में विचरण करने लगी। जंगल में भटकते हुए ललिता श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुंची। तब ऋषि ने उससे पूछा तुम इस वीरान जंगल में क्यों परेशान हो रही हो। इस पर ललिता ने अपने अपनी व्यथा सुनायी। श्रंगी ऋषि ने उसे कामदा एकादशी का व्रत करने को कहा। कामदा एकादशी के व्रत से ललिता का पति ललित वापस गंधर्व रूप में आ गया। इस तरह दोनों पति-पत्नी स्वर्ग लोक जाकर वहां खुशी-खुशी रहने लगे।

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