कामिका एकादशी कथा (Kamika Ekadshi Vrat Katha): सुनने मात्र से मिलेगा उत्तम फल, एकादशी के दिन चावल के परहेज से होगा समस्त पाप नष्ट

Kamika Ekadshi Vrat Katha- सावन माह की पवित्र एकादशी की कथा जो सुनता हूँ, सुनाता है,उससे उत्तम फल मिलता है। एक बार इस एकादशी की पावन कथा को भीष्म पितामह ने लोकहित के लिये कहा था।

Update: 2022-07-24 02:30 GMT

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Kamika Ekadshi Vrat Katha

कामिका एकादशी व्रत कथा

सावन मास की पहली एकादशी जिसमें भगवान विष्णु के साथ   शिव जी को भी प्रसन्न किया जाता है।इस पूजा में दोनों देवों की पूजा का विधान है।  इस मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को  कामिका एकादशी कहते हैं। जो 24 जुलाई को रविवार के दिन पड़ रही है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना कर उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। पुराणों के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

इस दिन शुभ चौघड़िया देखकर व्रत पूजा आराधना का संकल्प लेना चाहिए  सावन की कामिका एकादशी के दिन श्रीविष्णु की पूजा के साथ श्रीगणेश और शिव और गंधर्व-नागों की पूजा भी विधि-विधान से करने से घर परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती हैं। कामिका एकादशी की तिथि- 23 जुलाई दिन शनिवार को सुबह 11.27 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन 24 जुलाई को दोपहर 01.45 मिनट पर होगा।

कामिका एकादशी की कथा

 अर्जुन ने भगवान से  सावन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाने की कृपा करें। इस एकादशी का नाम क्या है? इसकी विधि क्या है? इसमें किस देवता का पूजन होता है? इसका उपवास करने से मनुष्य को किस फल की प्राप्ति होती है?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे श्रेष्ठ धनुर्धर! मैं सावन माह की पवित्र एकादशी की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो। एक बार इस एकादशी की पावन कथा को भीष्म पितामह ने लोकहित के लिये नारदजी से कहा था।

एक समय नारदजी ने कहा: हे पितामह! आज मेरी श्रावण के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की इच्छा है, अतः आप इस एकादशी की व्रत कथा विधान सहित सुनाइये।

नारदजी की इच्छा को सुन पितामह भीष्म ने कहा: हे नारदजी! आपने बहुत ही सुन्दर प्रस्ताव किया है। अब आप बहुत ध्यानपूर्वक इसे श्रवण कीजिए- श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका एकादशी है। इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है। कामिका एकादशी के उपवास में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु का पूजन होता है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन्हें गंगा स्नान के फल से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है।

सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण में केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, वह पुण्य कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करने से प्राप्त हो जाता है।

भगवान विष्णु की श्रावण माह में भक्तिपूर्वक पूजा करने का फल समुद्र और वन सहित पृथ्वी दान करने के फल से भी ज्यादा होता है।

व्यतिपात में गंडकी नदी में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल भगवान की पूजा करने से मिल जाता है।

संसार में भगवान की पूजा का फल सबसे ज्यादा है, अतः भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा न बन सके तो श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का उपवास करना चाहिये।

आभूषणों से युक्त बछड़ा सहित गौदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल कामिका एकादशी के उपवास से मिल जाता है।

जो उत्तम द्विज श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का उपवास करते हैं तथा भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, उनसे सभी देव, नाग, किन्नर, पितृ आदि की पूजा हो जाती है, इसलिये पाप से डरने वाले व्यक्तियों को विधि-विधान सहित इस उपवास को करना चाहिये।

संसार सागर तथा पापों में फँसे हुए मनुष्यों को इनसे मुक्ति के लिये कामिका एकादशी का व्रत करना चाहिये।

कामिका एकादशी के उपवास से भी पाप नष्ट हो जाते हैं, संसार में इससे अधिक पापों को नष्ट करने वाला कोई और उपाय नहीं है।

हे नारदजी! स्वयं भगवान ने अपने मुख से कहा है कि मनुष्यों को अध्यात्म विद्या से जो फल प्राप्त होता है, उससे अधिक फल कामिका एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। इस उपवास के करने से मनुष्य को न यमराज के दर्शन होते हैं और न ही नरक के कष्ट भोगने पड़ते हैं। वह स्वर्ग का अधिकारी बन जाता है।

जो मनुष्य इस दिन तुलसीदल से भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे इस संसार सागर में रहते हुए भी इस प्रकार अलग रहते हैं, जिस प्रकार कमल पुष्प जल में रहता हुआ भी जल से अलग रहता है।

तुलसीदल से भगवान श्रीहरि का पूजन करने का फल एक बार स्वर्ण और चार बार चाँदी के दान के फल के बराबर है। भगवान विष्णु रत्न, मोती, मणि आदि आभूषणों की अपेक्षा तुलसीदल से अधिक प्रसन्न होते हैं।

जो मनुष्य प्रभु का तुलसीदल से पूजन करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। हे नारदजी! मैं भगवान की अति प्रिय श्री तुलसीजी को प्रणाम करता हूँ।

तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है। तुलसीजी को जल से स्नान कराने से मनुष्य की सभी यम यातनाएं नष्ट हो जाती हैं। जो मनुष्य तुलसीजी को भक्तिपूर्वक भगवान के श्रीचरण कमलों में अर्पित करता है, उसे मुक्ति मिलती है।

इस कामिका एकादशी की रात्रि को जो मनुष्य जागरण करते हैं और दीप-दान करते हैं, उनके पुण्यों को लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान के सामने दीपक जलाते हैं, उनके पितर स्वर्गलोक में अमृत का पान करते हैं।

भगवान के सामने जो मनुष्य घी या तिल के तेल का दीपक जलाते हैं, उनको सूर्य लोक में भी सहस्रों दीपकों का प्रकाश मिलता है।

कामिका एकादशी व्रत कथा

एक गाँव में एक वीर क्षत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राह्मण से हाथापाई हो गई और ब्राह्मण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राह्मण की क्रिया उस क्षत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राह्मणों ने बताया कि तुम पर ब्रह्म-हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।

इस पर क्षत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राह्मणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने क्षत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।

इस व्रत के करने से ब्रह्म-हत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।

कामिका एकादशी पूजा का शुभ मुहूर्त

कामिका एकादशी का आरंभ: 23 जुलाई दिन शनिवार को सुबह 11.27 मिनट

कामिका एकादशी का समापन: 24 जुलाई को दोपहर 01.45 मिनट पर होगा

24 जुलाई को सुबह- वृद्धि योग, दोपहर 02.02 मिनट तक फिर ध्रुव योग

द्विपुष्कर योग- रात 10 बजे से अगली सुबह 05.38 मिनट तक

रोहिणी नक्षत्र- रात 10 बजे तक है और उसके बाद से मृगशिरा नक्षत्र होगा।

ब्रह्म मुहूर्त : 04:21 AM से 05:09 AM

अमृत काल : 06:25 PM से 08:12 PM

अभिजित मुहूर्त: 12:00 से 12:54 तक

पारण करने का समय - सुबह 05 . 38 मिनट से सुबह 08 . 22 मिनट

कामिका एकादशी में पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और शक्कर गंध (अबीर, गुलाल, इत्र आदि सुगंधित वस्तु), चावल, जौ तथा फूल से भगवान की पूजा करें, आरती उतारें। इसके बाद भगवान विष्णु को मक्खन-मिश्री का भोग लगाएं, साथ में तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं और अंत में क्षमा याचना करते हुए भगवान को नमस्कार करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

एकादशी के दिन चावल क्यों नहीं खाते?

एकादशी के दिन चावल वर्जित करने के पीछे की वजह है कि चावल का संबंध जल से हैं और जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं।

एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है। चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं।

ऐसे हुई चावल की उत्पति

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी पर व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन चावल खाना अशुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता शक्ति, महर्षि मेधा पर बहुत क्रोधित हो गई थीं। महर्षि मेधा ने माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए अपना शरीर त्याग दिया था। इसके बाद उनका शरीर धरती में समा गया था। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर महर्षि मेधा का शरीर धरती में समाया था, उसी जगह पर चावल और जौ की उत्पत्ति हुई थी। इसी वजह से एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन नहीं किया जाता है। धर्मानुसार, एकादशी के दिन जो व्यक्ति चावल या जौ का सेवन करता है, वह महर्षि मेधा के रक्त और मांस का सेवन करता है।

एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे विज्ञान कहता है। कि चावल में जल की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजे खाना वर्जित कहा गया है।

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