Kartik Mahatmya Adhyay 22,23: विष्णु का तुलसी से रिश्ता, कार्तिक माहात्म्य व अध्याय - 22, 23

Kartik Mahatmya Adhyay 22,23: जब देवता स्तुति कर मौन हो गये तब शंकर जी ने सब देवताओ से कहा – हे ब्रह्मादिक देवताओं! जलन्धर तो मेरा ही अंश था। उसे मैंने तुम्हारे लिए नहीं मारा है, यह मेरी सांसारिक लीला थी, फिर भी आप लोग सत्य कहिए कि इससे आप सुखी हुए या नहीँ?

Update:2023-04-13 00:32 IST
Kartik Mahatmya Adhyay 22,23 (Pic: Newstrack)

Kartik Mahatmya Adhyay 22,23: राजा पृथु ने नारद जी से पूछा – हे देवर्षि! कृपया आप अब मुझे यह बताइए कि वृन्दा को मोहित करके विष्णु जी ने क्या किया और फिर वह कहाँ गये? जब देवता स्तुति कर मौन हो गये तब शंकर जी ने सब देवताओ से कहा – हे ब्रह्मादिक देवताओं! जलन्धर तो मेरा ही अंश था। उसे मैंने तुम्हारे लिए नहीं मारा है, यह मेरी सांसारिक लीला थी, फिर भी आप लोग सत्य कहिए कि इससे आप सुखी हुए या नहीँ? तब ब्रह्मादिक देवताओं के नेत्र हर्ष से खिल गये और उन्होंने शिवजी को प्रणाम कर विष्णु जी का वह सब वृत्तान्त कह सुनाया जो उन्होंने बड़े प्रयत्न से वृन्दा को मोहित किया था तथा वह अग्नि में प्रवेश कर परमगति को प्राप्त हुई थी। देवताओं ने यह भी कहा कि तभी से वृन्दा की सुन्दरता पर मोहित हुए विष्णु उनकी चिता की राख लपेट इधर-उधर घूमते हैं। अतएव आप उन्हें समझाइए क्योंकि यह सारा चराचर आपके आधीन है।

देवताओं से यह सारा वृत्तान्त सुन शंकर जी ने उन्हें अपनी माया समझाई और कहा कि उसी से मोहित विष्णु भी काम के वश में हो गये हैं। परन्तु महादेवी उमा, त्रिदेवों की जननी सबसे परे वह मूल प्रकृति, परम मनोहर और वही गिरिजा भी कहलाती है। अतएव विष्णु का मोह दूर करने के लिए आप सब उनकी शरण में जाइए। शंकर जी की आज्ञा से सब देवता मूल-प्रकृति को प्रसन्न करने चले। उनके स्थान पर पहुंचकर उनकी बड़ी स्तुति की तब यह आकाशवाणी हुई कि हे देवताओं! मैं ही तीन प्रकार से तीनों गुणों से पृथक होकर स्थित सत्य गुण से गौरा, रजोगुण से लक्ष्मी और तमोगुण से ज्योति रूप हूँ। अतएव अब आप लोग मेरी रक्षा के लिए उन देवियों के पास जाओ तो वे तुम्हारे मनोरथों को पूर्ण कर देगीं।

यह सब सुनकर देवता भगवती के वाक्यों का आदर करते हुए गौरी, लक्ष्मी और सरस्वती को प्रणाम करने लगे। सब देवताओं ने भक्ति पूर्वक उन सब देवियों की प्रार्थना की। उस स्तुक्रमशःति से तीनों देवियाँ प्रकट हो गई। सभी देवताओं ने खुश होकर निवेदन किया तब उन देवियों ने कुछ बीज देकर कहा -इसे ले जाकर बो दो तो तुम्हारे सब कार्य सिद्ध हो जाएंगे। ब्रह्मादिक देवता उन बीजों को लेकर विष्णु जी के पास गये। वृन्दा की चिता-भूमि में डाल दिया। उससे धात्री, मालती और तुलसी प्रकट हुई।

विधात्री के बीज से धात्री, लक्ष्मी के बीज से मालती और गौरी के बीज से तुलसी प्रकट हुई। विष्णु जी ने ज्योंही उन स्त्री रूपवाली वनस्पतियों को देखा तो वे उठ बैठे। कामासक्त चित्त से मोहित हो उनसे याचना करने लगे। धात्री और तुलसी ने उनसे प्रीति की। विष्णु जी सारा दुख भूल देवताओं से नमस्कृत हो अपने लोक बैकुण्ठ में चले। वह पहले की तरह सुखी होकर शंकर जी का स्मरण करने लगे। यह आख्यात शिवजी की भक्ति देने वाला है।

तीर्थ है तुलसी, आँवला अमृत, कार्तिक महात्म्य/ अध्याय - 23

नारद जी बोले – हे राजन! यही कारण है कि कार्तिक मास के व्रत उद्यापन में तुलसी की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तुलसी भगवान विष्णु को अधिक प्रीति प्रदान करने वाली मानी गई है। राजन! जिसके घर में तुलसीवन है वह घर तीर्थ स्वरुप है । वहाँ यमराज के दूत नहीं आते। तुलसी का पौधा सदैव सभी पापों का नाश करने वाला तथा अभीष्ट कामनाओं को देने वाला है। जो श्रेष्ठ मनुष्य तुलसी का पौधा लगाते हैं वे यमराज को नहीं देखते। नर्मदा का दर्शन, गंगा का स्नान और तुलसी वन का संसर्ग – ये तीनों एक समान कहे गये हैं। जो तुलसी की मंजरी से संयुक्त होकर प्राण त्याग करता है । वह सैकड़ो पापों से युक्त ही क्यों न हो तो भी यमराज उसकी ओर नहीं देख सकते। तुलसी को छूने से कामिक, वाचिक, मानसिक आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो मनुष्य तुलसी दल से भगवान का पूजन करते हैं वह पुन: गर्भ में नहीं आते । अर्थात जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाते हैं। तुलसी दल में पुष्कर आदि समस्त तीर्थ, गंगा आदि नदियाँ और विष्णु प्रभृति सभी देवता निवास करते हैं। हे राजन! जो मनुष्य तुलसी के काष्ठ का चन्दन लगाते हैं । उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है और उन द्वारा किये गये पाप उनके शरीर को छू भी नहीं पाते। जहाँ तुलसी के पौधे की छाया होती है, वहीं पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके मुख में, कान में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है उसके ऊपर यमराज भी दृष्टि नहीं डाल सकते । फिर दूतों की तो बात ही क्या है। जो प्रतिदिन आदर पूर्वक तुलसी की महिमा सुनता है वह सब पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक को जाता है।

इसी प्रकार आंवले का महान वृक्ष सभी पापों का नाश करने वाला है। आँवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य गोदान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य कार्तिक में आंवले के वन में भगवान विष्णु की पूजा करते हुए आँवले की छाया में भोजन करता है । उसके भी पाप नष्ट हो जाते हैं। आंवले की छाया में मनुष्य जो भी पुण्य करता है वह कोटि गुना हो जाता है। जो मनुष्य आंवले की छाया के नीचे कार्तिक में ब्राह्मण दम्पत्ति को एक बार भी भोजन देकर स्वयं भोजन करता है । वह अन्न दोष से मुक्त हो जाता है। लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को सदैव आंवले से स्नान करना चाहिए। नवमी, अमावस्या, सप्तमी, संक्रान्ति, रविवार, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण के दिन आंवले से स्नान नही करना चाहिए।

जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर पिण्डदान करता है । उसके पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य आंवले के फल और तुलसी दल को पानी में मिलाकर स्नान करता है । उसे गंगा स्नान का फल मिलता है। जो मनुष्य आंवले के पत्तों और फलों से देवताओं का पूजन करता है उसे स्वर्ण मणि और मोतियों द्वारा पूजन का फल प्राप्त होता है। कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि में होता है तब सभी तीर्थ, ऋषि, देवता और सभी यज्ञ आंवले के वृक्ष में वास करते हैं। जो मनुष्य द्वादशी तिथि को तुलसी दल और कार्तिक में आंवले की छाया में बैठकर भोजन करता है । उसके एक वर्ष तक अन्न-संसर्ग से उत्पन्न हुए पापों का नाश हो जाता है।

जो मनुष्य कार्तिक में आंवले की जड़ में विष्णु जी का पूजन करता है उसे श्री विष्णु क्षेत्रों के पूजन का फल प्राप्त होता है। आंवले और तुलसी की महत्ता का वर्णन करने में श्री ब्रह्मा जी भी समर्थ नही है इसलिए धात्री और तुलसी जी की जन्म कथा सुनने से मनुष्य अपने वंश सहित भक्ति को पाता है।

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