यहां से खुलता है स्वर्ग का दरवाजा, जानिए केदारनाथ-बद्रीनाथ के पौराणिक रहस्य

केदारनाथ –बद्रीनाथ को स्वर्ग का रास्ता कहा जाता है। एक बार हर मनुष्य को अपने जीवन में इनका दर्शन करना चाहिए।

Newstrack Network :  Network
Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update:2021-05-17 13:46 IST

लखनऊ :  हिन्दुओं के सबसे पवित्र स्थानों में से एक केदारनाथ और बद्रीनाथ है। हर साल चारधाम यात्रा के साथ श्रद्धालु इनके दर्शन करते हैं। इस बार भी 14 मई से चारधाम यात्रा यमनोत्री के कपाट खुलने के साथ शुरू हो गई। आज केदारनाथ के कपाट खुले और कल 18 मई को बद्रीनाथ के कपाट पुष्य नक्षत्र में खुलेंगे। लेकिन कोरोना के कारण श्रद्धालु वर्चुआल दर्शन ही कर पाएंगे।

बद्रीनाथ और केदारनाथ इन दोनों तीर्थ स्थानों का हिंदू धर्म में खास स्थान है। इन दोनों ही मंदिरों के बीच क्या अंतर है जानते हैं...

मोक्ष धाम

केदारनाथ –बद्रीनाथ को स्वर्ग का रास्ता कहा जाता है। एक बार हर मनुष्य को अपने जीवन में इनका दर्शन करना चाहिए। ये दोनों मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र के दुर्गम इलाकों में स्थित हैं। लेकिन दोनों मंदिरों में पहले केदारनाथ फिर बद्रीनाथ के दर्शन करने चाहिए।  केदारनाथ में दर्शन से हर इच्छा पूरी होती है और बद्रीनाथ में दर्शन से  मुक्ति मिलती है। जब 6 माह के  लिए कपाट बंद होते हैं तो बद्रीनाथ के विग्रह को उखीमठ लाया जाता है, जबकि केदारनाथ में विग्रह नहीं हटाया जाता है और पूजा की जाती है। दोनों धामों में पहले केदारनाथ के दर्शन कर के ही बद्रीनाथ के दर्शन करने चाहिए तो मनुष्य को सदगति मिल जाती है। लेकिन ऐसा बहुत लोगों को ही मिल पाता है।

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

ऐसे  बना भगवान शिव का निवास

केदारनाथ मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। यह शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह तीन विशाल पर्वतों से घिरा और मंदाकनी नदी के किनारे स्थित है। केदारनाथ मंदिर में शिव के अलावा ऋद्धि सिद्धि, भगवान् गणेश, पार्वती, विष्णु, लक्ष्मी, कृष्ण, कुंती, पांचों पांडव, द्रौपदी आदि की भी पूजा की जाती है।

केदारनाथ भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है।  ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के उपरांत पांडव भातृहत्या के पाप से मुक्त होने के लिए शिव भगवान की तपस्या करने इस स्थान पर आये थे। शिव पांडवों को क्षमा नहीं करना चाहते थे। अतः वे एक बैल का रूप धारण करके वही छिप गए। आखिरकार पांडवों ने उन्हें ढूढ़ लिया और उनकी आराधना की। अंततः शिव प्रसन्न हुए और उन्हें क्षमा किये।लेकिन एक कथा के अनुसार भगवान शिव नर और नारायण की तपस्या और आग्रह पर यहाँ पर निवास करने लगे थे। केदारनाथ का पहला वर्णन संभवतः स्कंदपुराण में मिलता है जहाँ गंगा के धरती पर शिव द्वारा मुक्त किये जाने की कथा है।

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

भगवान विष्णु का धाम

अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा है। ऋषिकेश से 294 किमी दूर हिन्दुओं के चार धाम में एक धाम है। बद्रीनाथ धाम चार धामों में से एक है। इस धाम के बारे में यह कहावत है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता। शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करने चाहिए।

कहते है कि सतयुग तक यहां मनुष्य को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे। त्रेता में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के दर्शन मिलते थे। द्वापर में जब भगवान श्री कृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह नियम बनाया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे।

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

नहीं मिलता फिर जन्म

बद्रीनाथ दूसरा बैकुण्ठ है। यहां भी भगवान विष्णु का निवास हैं। लेकिन विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया था। चार धाम यात्रा में सबसे पहले गंगोत्री के दर्शन होते हैं यह है गोमुख जहां से मां गंगा की धारा निकलती है। इस यात्रा में सबसे अंत में बद्रीनाथ के दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इसे नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए थे।

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

दीपक दर्शन का महत्व

बद्रीनाथ की यात्रा में दूसरा पड़ाव यमुनोत्री है। यह है देवी यमुना का मंदिर। यहां के बाद केदारनाथ के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि जब केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में एक दीपक जलता रहता है। इस दीपक के दर्शन का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर इस दीप को देवता जलाए रखते हैं।

कांसेप्ट फोटो( सौ. से सोशल मीडिया)

इस तरह पड़ा बद्रीनाथ नाम

बद्रीनाथ तीर्थ का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा यह अपने आप में एक रोचक कथा है। कहते हैं एक बार देवी लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठ कर मायके चली गई तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय यहां बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था। बदरी के वन में बैठकर भगवान ने तपस्या की थी इसलिए देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया।

मान्यता है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। इस घटना की याद दिलाता है वह स्थान जिसे आज ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मकपाल एक ऊंची शिला है जहां पितरों का तर्पण श्राद्ध किया जाता है। माना जाता है कि यहां श्राद्घ करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

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