घर में होगा सकारात्मकता का वास, तो फिर डरने की क्या बात, जानिए कैसे?

वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के अधिक से अधिक हिस्से में सूर्य की किरणें का पहुंचना आवश्यक होता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है। आमतौर पर सूर्य को ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है और जब घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है तो घर सुख-समृद्धि से भर जाता है।

Update:2019-06-01 11:24 IST

नई दिल्ली: वास्तुशास्त्र के अनुसार घर के अधिक से अधिक हिस्से में सूर्य की किरणें का पहुंचना आवश्यक होता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है। आमतौर पर सूर्य को ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है और जब घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है तो घर सुख-समृद्धि से भर जाता है।

वास्तव में सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है और सूर्य की किरणें धरती पर जीवन के लिए आवश्यक होती हैं। सूर्य को पंचतत्वों में से एक माना जाता है और इसका वास्तुशास्त्र में भी बहुत अधिक महत्व है।

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जब घर के अंदर सूर्य की रोशनी पहुंचती है तो घर से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है और सभी तरह के दोष भी खत्म हो जाते हैं। आइये जानते हैं कि वास्तुशास्त्र के अनुसार सूर्य की किरणों का क्या महत्व है।

घर के अंदर सूर्य की किरणों का महत्व

ज्यादातर घरों में कोई न कोई कमरा ऐसा जरूर होता है जहां सूर्य की किरणें कभी नहीं पहुंच पाती हैं। इस स्थिति में उस कमरे में अधिक सीलन हो जाती है और वहां कीड़े मकोड़े जमा होने लगते हैं। इससे घर में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

सूर्य की किरणें जब घर में आती हैं तो घर के अंदर की नकारात्मकता दूर होती है और घर का प्रत्येक सदस्य खुद को ऊर्जावान महसूस करता है। सूर्य को आत्मा कारक ग्रह माना जाता है।

जिस घर के प्रत्येक हिस्से में सूर्य की रोशनी पड़ती है उस घर में रहने वाले लोगों का आत्म-विश्वास बढ़ जाता है।

खिड़की या द्वार के माध्यम से घर के जिन कमरों में सूरज की किरणें पहुंचती हैं, वहां ऊर्जा अधिक होती है और वहां रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होता है और इच्छाशक्ति बढ़ती है।

जिन घरों में अंधेरा या छाया रहता है और जहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती, उस घर में रहने वाले लोग अक्सर बीमार एवं अधिक परेशान रहते हैं।

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रसोईघर और स्नानागार में भी सूर्य की किरणें पहुंचना आवश्यक है। इससे शरीर को पर्याप्त एनर्जी मिलती है। और सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता हैं।

विद्यार्थियों को पढ़ाई कृत्रिम रोशनी की बजाय सूर्य के प्रकाश में करनी चाहिए। इसके अलावा शयनकक्ष या आरामकक्ष में भी सीधे आंखों पर ट्यूबलाइट की रोशनी नहीं पड़नी चाहिए। कमरे की खिड़की खोलकर रखना चाहिए ताकि सूर्य का प्रकाश कमरे के अंदर आ सके।

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