Dev Diwali: जानिए कार्तिक पूर्णिमा को क्यों मनाया जाता है, देव दीपावली दीपोत्सव

Dev Diwali: अलग-अलग दिशा में महल बनाने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने वरदान में मांगा कि उनकी मृत्यु तभी हो सकती है जब अभिजीत नक्षत्र में तीनों भाईयों के महल एक साथ, एक साथ स्थान पर आ जाएं। उस समय कोई शांत पुरुष, असंभव रथ और असंभव अस्त्र से उन पर वार करे तभी उनकी मृत्यु हो।

Update:2023-04-13 23:45 IST
Dev Diwali (Pic: Social Media)

Dev Diwali: ऐसी कथा है कि तारकासुर के वध के बाद उसके तीन पुत्रों ताराक्ष, विदुमनाली और कमलक्ष ने ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और उनसे तीनों भाइयों के लिए तैरता हुआ। अलग-अलग दिशा में महल बनाने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने वरदान में मांगा कि उनकी मृत्यु तभी हो सकती है जब अभिजीत नक्षत्र में तीनों भाईयों के महल एक साथ, एक साथ स्थान पर आ जाएं। उस समय कोई शांत पुरुष, असंभव रथ और असंभव अस्त्र से उन पर वार करे तभी उनकी मृत्यु हो।

इस वरदान के कारण त्रिपुरासुर अजेय हो गया था। इन्होंने स्वर्ग से देवताओं को भगा दिया था। इनके अत्याचार से पृथ्वी के प्राणी भयभीत हो रहे थे। ऐसे में सभी देवी-देवताओं ने महादेव को त्रिपुरासुर का वध करने के लिए आग्रह किया। भगवान शिव के लिए एक अद्भुत रथ बना जिसके पहिये सूर्य और चंद्रमा बने। फिर भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अभिजीत नक्षत्र में त्रिपुरासुर का अंत कर दिया। देवताओं ने प्रसन्न होकर महादेव को त्रिपुरारी और त्रिपुरांतक नाम दिया। इसके बाद देवलोक में उत्सव मनाया गया और दीपमाला की गई। इस तरह शुरू हुई देव दिवाली मनाने की परंपरा।

इस खुशी में सभी देवी-देवता धरती पर आकर काशी में दीप जलाते हैं। इसलिए वाराणसी में इस दिन विशेष आरती का महाआयोजन किया जाता है, जो पूरे देश में प्रसिद्ध है। काशी एवं प्रयागराज अत्यंत निकट होने और माँ गंगा के विराजमान होने के कारण यहाँ भी देव दीपावली मनाई जाती है।

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