Sita Agni Pariksha Story: सीता के अग्नि में समाने का सूत्र नहीं जान पाये लक्ष्मण

Sita Agni Pariksha Story: लक्ष्मण से संवाद के पश्चात् उन्होंने श्रीराम के पराक्रम को परीक्षा लेने हेतु कहा कि अगर आप मेरे धनुष की प्रत्यञ्चा चढ़ा देंगे तो आपको मैं वीर मान लूँगा। किंतु उस समय परशुराम को अत्यंत विस्मय हुआ जब परशुराम का धनुष उनके हाथ से छूटकर स्वयं श्रीराम के हाथ में चला गया।

Update:2023-04-06 01:01 IST
(Pic: Social Media)

Sita Fire Test: भगवान् की गुप्त लीला का एक हल्का सा संकेत धनुषभंग प्रकरण में भी देखने को मिलता है। धनुषभंग के पश्चात् परशुरामजी अत्यन्त रोष वेशपूर्ण ही वहाँ पधारते हैं। लक्ष्मण से संवाद के पश्चात् उन्होंने श्रीराम के पराक्रम को परीक्षा लेने हेतु कहा कि अगर आप मेरे धनुष की प्रत्यञ्चा चढ़ा देंगे तो आपको मैं वीर मान लूँगा। किंतु उस समय परशुराम को अत्यंत विस्मय हुआ जब परशुराम का धनुष उनके हाथ से छूटकर स्वयं श्रीराम के हाथ में चला गया। अब उनको निश्चय हो गया कि पूर्ण ब्रह्म का अवतार हो गया।

देत चापु आपुहिं चलि गयऊ।

परसुराम मन बिसमय भयऊ ।।

जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात ।

जोरि पानि बोले बचन हृदयँ न प्रेमु अमात।।

( रा॰ च॰ मा॰ १/२८४/८, १/२८४ )

वनवास काल में भगवान् ने अनेक लीलाएँ कीं, उनमें एक अन्तरंग ( गुप्त )-लीला भी है। एक दिन जब लक्ष्मण जी फल-मूल लेने जंगल में गये तो एकान्त पाकर भगवान् ने सीताजी से कहा कि तुम अपनी प्रतिमूर्ति स्थापित कर अग्नि में प्रवेश कर जाओ; क्योंकि अब मैं कुछ नरलीला करने जा रहा हूँ। रावण आकर तुम्हारी प्रतिमूर्ति का अपहरण कर ले जायगा तथा मैं नारदजी के शाप को फलीभूत करने के लिये विरह-लीला करूँगा। इस गोपनीय लीला का वर्णन महा कवि ने अत्यन्त भावमय रूप में किया है –

लछिमन गए बनहिं जब लें मूल फल कंद ।

जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद ।।

सुनहु प्रिय ब्रत रुचिर सुसीला ।

मैं कछु करबि ललित नरलीला ।।

तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा ।

जौं लगि करौं निसाचर नासा ।।

जबहिं राम सब कहा बखानी।

प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी ।।

निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता ।

तैसइ सील रूप सुबिनीता ।।

लछिमनहूँ यह मरमु न जाना ।

जो कछु चरित रचा भगवाना ।।

( रा॰ च॰ मा॰ ३/२३, ३/२४/१-५ )

इस गुप्त लीला को भगवान् ने इतनी बारीकी के साथ किया कि रात दिन साथ रहने वाले प्रिय लक्ष्मण भी इस रहस्य को नहीं जान पाये। लंका-विजय के पश्चात् भगवान् लक्ष्मण के द्वारा ही सीता की अग्नि-परीक्षा कराते हैं तथा इस व्याज से नकली प्रतिबिम्ब को जलाकर असली सीता को प्राप्त कर लेते हैं। अरण्यकाण्ड से लेकर लंकाकाण्ड तक इस लीला का सूत्र फैला हुआ है; लेकिन आश्चर्य है कि सभी लीलाओं में साथ देने वाले श्री लक्ष्मण जी भी इस गुप्त लीला को नहीं जान पाये।

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