रामायण में वनवास के दौरान कहां-कहां रुके थे श्रीराम, जिसका आज भी मिलता है प्रमाण

दूरदर्शन पर रामायण में  रावण का वध हो चुका है, और उत्तर रामायण शुरू हो गया है। जिसमे राजा राम व लव-कुश के जन्म की कथा का वर्णन हैं। सीता समेत श्रीराम चंद्र जी वनवास पूरा करके वापस अयोध्या आ गए हैं।  कहने का मतलब ये है कि प्रभु श्रीराम के जीवनकाल में एक समय ऐसा भी आया जब जिसने उन्हें राजगद्दी से हटाकर 14 साल का वनवास दे दिया।

Update: 2020-04-22 15:53 GMT

लखनऊ : दूरदर्शन पर रामायण में रावण का वध हो चुका है, और उत्तर रामायण शुरू हो गया है। जिसमे राजा राम व लव-कुश के जन्म की कथा का वर्णन हैं। सीता समेत श्रीराम चंद्र जी वनवास पूरा करके वापस अयोध्या आ गए हैं। कहने का मतलब ये है कि प्रभु श्रीराम के जीवनकाल में एक समय ऐसा भी आया जब जिसने उन्हें राजगद्दी से हटाकर 14 साल का वनवास दे दिया। लेकिन श्रीराम ने इस आदेश को मानकर 14 साल जंगलों में बिताएं। देवी सीता और भाई लक्ष्मण भी उनके इस परीक्षा में उनके साथ रहे। माता कैकेयी ने महाराज दशरथ से भगवान राम के लिए 14 वर्षों के लिए वनवास मांगा था, जिसकी वजह से रावण का अंत हो सका। वनवास के दौरान श्रीराम चंद्र जी जिन जिन जगहों पर गए क्या अब उनके बारें में जानते हैं आज किस नाम से जाने जाते हैं। और वहां कौन से तीर्थ है अगर अब इस बारें में कन्फ्यूज तो जानिए यहां ....प्रभु राम के जहां-जहां चरण पड़े वो जगह आज तीर्थस्थल बन गई।

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कहां-कहां रूके थे प्रभु राम....

श्रीरामचरितमानस के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से शुरू की और श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटना हुई, उनमें से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।

सिंगरौर, राम जब सीता और लक्ष्मण अयोध्या से वनवास के लिए निकले तो उनका पहला पड़ाव था सिंगरौर था जो इलाहाबाद से 35 कि.मी. दूर है और गंगा के तट पर ही स्थित है। यही पर केवट प्रसंग का वर्णन भी आता है।कुरई, सिंगरौर से गंगा नदी पार करने के बाद श्रीराम कुरई नामक स्थान पर उतरे। यहां उन्होंने विश्राम किया और ऋषि भरद्वाज के आश्रम में जाकर उनसे आर्शीवाद लिया और आगे का रास्ता पूछा। प्रयाग, बांस की नाव बनाकर राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ प्रयाग पहुंचे। प्रयाग को ही इलाहाबाद कहा जाने लगा ।

चित्रकूट, वनवास के दौरान श्रीराम यमुना नदी को पार कर चित्रकूट आए। 14 साल के वनवास के दौरान उनका दूसरा पड़ाव चित्रकूट था। यही वो जगह है जहां भरत अपनी सेना के साथ राम को वापस अयोध्या ले जाने के लिए आये थे और यहां से राम की चरण पादुका ले गए।सतना, अत्रि ऋषि का आश्रम सतना के पास था। श्रीराम की वनवास यात्रा का तीसरा पड़ाव यही था महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। रामायण के अयोध्याकांड के अनुसार, यहां पर ही प्रभु श्रीराम ने आश्रम के आस-पास राक्षसों का वध किया था।दंडकारण्य, मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम ने घने जंगलों दंडकारण्य में पहुंचे। ये उनकी यात्रा का चौथा पड़ाव था। यहां उन्होंने लगभग 10 वर्ष से भी अधिक वनवास काटा। यहां पर ही रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। मान्यताओं के अनुसार दंडकारण्य में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग इन्हीं जंगलों में आ गिरे थे।

 

पंचवटी, नासिक में गोदावरी तट पर स्थित 5 वृक्षों का स्थान पंचवटी था। इसी जगह लक्ष्मण ने सूर्पणखा की नाक काटी थी। माना जाता है कि पंचवटी के वृक्ष खुद राम-सीता और लक्ष्मण ने ही लगाए थे। सर्वतीर्थ, नासिक से 56 कि.मी. दूर स्थित सर्वतीर्थ, भगवान राम की वनवास यात्रा का छठा पड़ाव था। इस जगह ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था।सर्वतीर्थ व कावेरी नदी तट व शबरी आश्रम, श्रीराम अपनी वनवास यात्रा में सर्वतीर्थ से तुंगभद्रा और फिर कावेरी नदी के कई क्षेत्रों से होकर सीता की खोज में गए थे। इसी दौरान शबरी का आश्रम गए थे जो पम्पा नदी (केरल) के पास स्थित है। यहां राम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है। तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे 'पम्बा' नाम से भी जाना जाता है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है।

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इसके बाद यहां ऋष्यमूक पर्वत (कर्नाटक पर सीता की खोज में जटायु और कबंध से मिलने बाद मलयपर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए पहुंचे थे। ये उनकी यात्रा का नवां पड़ाव था। इसी जगह उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की और सीता के आभूषणों को देखा और बाली का वध किया।कोडीकरई, अपनी वनवास यात्रा के दसवें पड़ाव में श्रीराम कोडीकरई गए थे। यहां राम ने पहले अपनी सेना बनाई। जब देखा कि समुद्र को पार नहीं कर सकते तो सेना सहित रामेश्वरम की ओर कूच किया।

 

रामेश्वरम में रामायण के अनुसार, यहां भगवान राम ने लंका पर कूच करने से पहले भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वर का ज्योर्तिलिंग स्वयं भगवान श्रीराम द्वारा ही स्थापित किया शिवलिंग है।धनुषकोडी (तमिल नाडु),राम की यात्रा बारहवां पड़ाव रहा धनुषकोडी। इस जगह को भगवान राम ने ढूंढा था, क्योंकि यहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता था। इसी स्थान पर नल-नील की मदद से सेतू बनाने का काम किया। बता दें धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका देश के बीच एकमात्र सीमा है।

 

 

उसके बाद श्रीलंका में स्थित नुवारा एलिया की पहाड़ियों पर पहुंचे, रावण का महल श्रीलंका के मध्य में स्थित था। इसी कारण राम और उनकी सेना नुवारा एलिया की पहाड़ियां के बीचो-बीच सुरंगों और गुफाओं से होकर गुजरी थी। लंका (श्रीलंका), रामचंद्र जी की यात्रा का आखिरी पड़ाव लंका था। इसी जगह भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया और विभीषण को लंका का राजा बना उसका पग प्रदर्शित किया और सीता जी के मुक्त कराया था। फिर वनवास पूरा करके यहां से वापस अयोध्या आए थे

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