Mahabharat Ki Kahani: दुर्योधन अपने सेनाध्यक्ष भीष्म के निकट न जाकर सेनापति द्रोणाचार्य के पास क्यों गए संकटा प्रसाद द्विवेदी

Mahabharat Me Duryodhan ki Kahani: दुर्योधन ने सेनाध्यक्ष भीष्म के निकट जाने से इंकार कर दिया था क्योंकि भीष्म ने अपने वचन के अनुसार कुरुक्षेत्र के रणभूमि पर केवल अपने प्राणों को ही समर्पित करने का वचन दिया था।

Update:2023-05-03 16:09 IST
Mahabharat Me Duryodhan ki Kahani:(SOCIAL MEDIA)

Mahabharat Me Duryodhan ki Kahani: भगवद्गीता के प्रथम अध्याय के दूसरे श्लोक में सञ्जय कहते हैं कि दुर्योधन द्रोणाचार्य के निकट गए। धृतराष्ट्र - पक्ष के प्रधान सेनाध्यक्ष तो पितामह भीष्म थे। दुर्योधन को तो पितामह भीष्म के निकट जाना चाहिए था। लेकिन वे वहां न जाकर द्रोणाचार्य के पास गए।
इसका कारण जानने का प्रयास करते हैं।

1- महाभारत युद्ध के प्रथम दिन पांडव सेना की वज्र-व्यूह के अनुसार रचना हुई थी। पांडवों के युद्ध की प्रस्तुति को देखकर दुर्योधन तनिक विचलित हुआ तथा विचार किया कि ऐसे समय मुझे तत्काल क्या करना चाहिए ? दुर्योधन को तुरंत ध्यान आया कि जब पांडव जुए में अपना इंद्रप्रस्थ राज्य गंवा चुके थे तथा वनवास हेतु प्रस्थान कर चुके थे, तब इंद्रप्रस्थ राज्य को दुर्योधन ने आचार्य द्रोण को सौंप दिया था। आचार्य द्रोण दुर्योधन की बदौलत इंद्रप्रस्थ राज्य के सर्वाधिकारी बने हुए थे।
दुर्योधन ने एक ही पत्थर से दो शिकार किया।
पहला, उसने आम प्रजा के बीच अपनी छवि बनाने की कोशिश की कि मैंने पांडवों का राज नहीं लिया । दूसरा, उसने आचार्य द्रोण को अपना कृतज्ञ बना लिया। आचार्य द्रोण को यह एहसास दिलाने के लिए गया कि यदि पांडव युद्ध में जीत जाएंगे, तो इंद्रप्रस्थ राज्य आपके हाथ से निकलकर पांडवों के पास चला जाएगा। इस बात को ध्यान में रखकर दुर्योधन आचार्य द्रोण के निकट गया था।

2-अर्जुन ने धनुष - विद्या द्रोणाचार्य से ही सीखी थी। अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनाने के लिए द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उसका अंगूठा तक कटवा दिया था। अर्जुन के प्रति द्रोण का स्नेह पुनः जाग न उठे और वे युद्ध के दौरान अर्जुन के प्रति नरमी न बरतें। - इस नाते दुर्योधन द्रोणाचार्य के निकट गया।

3-युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व जब दुर्योधन ने द्रोणाचार्य तथा पितामह भीष्म दोनों से यह पूछा था कि आप कितने दिनों में पांडव सेना का संहार कर देंगे ? तो द्रोणाचार्य ने कहा था कि मैं 1 महीने में पांडव सेना का संहार कर दूंगा। भीष्म ने भी कहा था कि मैं भी समस्त पांडव सेना का संहार 1 महीने में कर दूंगा, लेकिन मैं पांडु-पुत्रों को नहीं मार सकता क्योंकि जैसे तुम हो, वैसे ही मेरे लिए पांडव भी हैं। यही कारण था कि दुर्योधन द्वारा भीष्म को प्रधान सेनापति के पद पर अभिषिक्त किए जाने के बाद भी दुर्योधन सर्वप्रथम द्रोणाचार्य के निकट जाना उचित समझा।

4-कुरूक्षेत्र के रणक्षेत्र में द्रोणाचार्य एक सेनापति की भूमिका में हैं। लेकिन पहले से ही वे दुर्योधन के आचार्य यानी गुरु भी हैं। दुर्योधन एक शिष्य के रूप में रहा है। अतः गुरु का शिष्य के निकट जाना उचित नहीं है । वरन् शिष्य का कर्तव्य है कि वह गुरु के निकट जाए। इस दृष्टि से राजा होते हुए भी दुर्योधन सर्वप्रथम अपने गुरु द्रोणाचार्य की ओर अग्रसर हुआ।

5-भीष्म पितामह के पश्चात् द्रोणाचार्य को सेनाध्यक्ष के पद पर अभिषिक्त करने की मंशा दुर्योधन को थी। इसका संकेत देने के लिए वह द्रोणाचार्य के निकट गया था। यह हम पीछे जान पाते हैं, जब भीष्म पितामह के घायल हो जाने के पश्चात् द्रोणाचार्य धृतराष्ट्र पक्ष के सेनाध्यक्ष बने थे।
सञ्जय उपर्युक्त सभी तथ्यों की ओर संकेत करते हैं।

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