Mahabharat Ki Kahani: पांडव-पक्ष की ओर से प्रधान सेनाध्यक्ष धृष्टद्युम्न द्वारा शंखनाद न कर श्रीकृष्ण द्वारा शंखनाद क्यों
Mahabharat Ki Kahani: पांडवों की ओर से महारथी अर्जुन के सारथी श्री कृष्ण द्वारा शंखनाद हुआ। आइए ! इस पर गंभीरता से विचार करें।
Mahabharat Ki Kahani in Hindi: हम सभी जानते हैं कि धृतराष्ट्र-पक्ष की ओर से उसके प्रधान सेनाध्यक्ष पितामह भीष्म ने सर्वप्रथम शंखनाद किया था, तो पांडव-पक्ष की ओर से भी उसके प्रधान सेनापति धृष्टद्युम्न द्वारा शंखनाद किया जाना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हुआ।
पांडवों की ओर से महारथी अर्जुन के सारथी श्री कृष्ण द्वारा शंखनाद हुआ। आइए ! इस पर गंभीरता से विचार करें।
धृतराष्ट्र पक्ष की ओर से भीष्म जैसे श्रेष्ठ व्यक्ति द्वारा शंखनाद किया गया था, अतः पांडव-पक्ष की ओर से भीष्म से भी श्रेष्ठ व्यक्ति द्वारा शंखनाद किया जाना चाहिए था। इस दृष्टि से श्रीकृष्ण उपयुक्त थे।
हम सभी जानते हैं कि हस्तिनापुर सभा में अग्रपूजा हेतु श्री कृष्ण का चयन स्वयं भीष्म ने ही किया था तथा उन्हें श्रेष्ठतम घोषित किया था।
महाभारत के सभा पर्व के अंतर्गत "किस की अग्रपूजा हो ?" इस पर भीष्म कहते हैं -
न हि केवलमस्माकयमर्च्यतमोऽच्युत:।
त्रयाणामपि लोकानामर्चनीयो महाभुज:।।
महाबाहु श्रीकृष्ण केवल हमारे लिए ही परम पूजनीय हों, ऐसी बात नहीं है। ये तो तीनों लोकों के पूजनीय हैं ।
गुणैवृद्धानतिक्रम्य हरिर्श्च्यतमो मत:।।
श्री कृष्ण के गुणों को ही दृष्टि में रखते हुए हमने वयोवृद्ध पुरुषों का उल्लंघन करके इनको ही परम पूजनीय माना है।
दानं साक्ष्यं श्रुतं शौर्यं ह्री: कीर्तिर्बुद्धिरुत्तमा।
सन्नति: श्रीर्धृतिस्तुष्टि पुष्टिश्च नियताच्युते।।
दान, दक्षता, शास्त्रज्ञान, शौर्य, लज्जा, कीर्ति, उत्तम बुद्धि, विनय, श्री, धृति, तुष्टि और पुष्टि - ये सभी सद्गुण भगवान श्रीकृष्ण में नित्य विद्यमान हैं। भगवान अच्युत ही सबसे बढ़कर पूजनीय हैं।
इस दृष्टि से श्री कृष्ण भीष्म से श्रेष्ठ थे।
युद्ध क्षेत्र में उपस्थित रहने के कारण पांडवों की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम शंखनाद किया। भगवान श्री कृष्ण स्वयं पांडव-पक्ष में सबसे आगे रहकर सारे पांडवों की रक्षा का भार अपने ऊपर ले कर धृतराष्ट्र- पक्ष को यह संदेश दे रहे हैं कि वास्तव में युद्ध तो मेरे साथ ही करना होगा। पांडव तो निमित्त मात्र हैं, युद्ध में उन ( श्रीकृष्ण ) के जीवित रहते कोई पांडवों का बाल बांका भी नहीं कर सकता।
अतः भीष्म के आह्वान को, चुनौती को श्रीकृष्ण सहर्ष स्वीकार करते हैं। यदि धृतराष्ट्र-पक्ष पांडवों से हाथ मिलाने को अब भी तैयार हैं, तो पांडव भी तैयार हैं। यदि धृतराष्ट्र-पक्ष पांडवों से एक-एक हाथ करना चाहते हैं, तो वे इसके लिए भी प्रस्तुत हैं - यह संकेत श्री कृष्ण शंखनाद कर प्रकट करते हैं।