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Mahabharat me Shakuni Kahani: महाभारत में शकुनि को इतने पाप के बाद भी क्यों मिला स्वर्ग, जानिए शकुनि के पासे का रहस्य

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 3 May 2023 8:00 PM IST (Updated on: 3 May 2023 8:52 PM IST)
Mahabharat me Shakuni Kahani: महाभारत में शकुनि को इतने पाप के बाद भी क्यों मिला स्वर्ग, जानिए शकुनि के पासे का रहस्य
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सांकेतिक तस्वीर,सौ. से सोशल मीडिया

Mahabharat me Shakuni Kahani: गांधार देश के राजा सुबल के 100 पुत्र और एक पुत्री थी। सबसे छोटे पुत्र का नाम शकुनि और पुत्री का नाम गांधारी था। शकुनि की पत्नी का नाम आरशी था। शकुनि के 3 पुत्र थे जिनके नाम उलूक, वृकासुर, विप्रचित्ती था। धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार राजा सुबल ने गांधार में एक बड़ा यज्ञ रखवाया जिसमें कई बड़े बड़े ऋषि मुनि पधारे। तभी यज्ञ में मौजूद एक ऋषि ने राजा सुबल को गांधारी के बारे में एक ऐसी बात बताई जिसे सुनकर राजा सुबल अपनी पुत्रि को लेकर चिंतित हो उठे। ऋषि मुनि ने राजा सुबल को बताया कि उनकी पुत्रि गांधारी की कुंडली में एक दोष है और वो ये है कि जैसे ही गांधारी का विवाह होगा उसके पति की मृत्यु हो जाएगी।

अब इस बात से चिंतित राजा सुबल ने एक उपाय निकाला। राजा सुबल ने अपनी पुत्री गांधारी का विवाह एक बकरे से करा दिया और विवाह के पश्चात उस बकरे को मार दिया गया। ऐसे में गांधारी की कुंडली से वो दोष हट गया।

जब गांधारी की शादी के लिए धृतराष्ट्र का रिश्ता आया तो शकुनि को यह जरा भी पसंद नहीं आया। शकुनि का मत था कि धृतराष्ट्र जन्मांध है और उनका सारा राजपाट तो उनके भाई पांडु ही देखते हैं। शकुनि ने अपना मत दिया पर होनी को कौन टाल सकता ह। गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ और वो हस्तिनापुर आ गयीं। मगर किस्मत का खेल, न जाने कहाँ से धृतराष्ट्र और पांडु को गांधारी की कुंडली और प्रथम विवाह का पता चल गया।

धृतराष्ट्र ने शकुनि समेत गांधार के राज परिवार को बनाया बंदी

दरअसल ध्रितराष्ट्र को ये ज्ञात हो चला था कि उसकी पत्नि गांधारी का उससे पहले भी एक बार विवाह हो चुका है। ध्रितराष्ट्र को इस विश्वासघात से इतना क्रोध आया कि उसने गांधार के सम्पूर्ण राज परिवार को बंदी बना डाला और उन्हें एक दिन का खाना केवल एक मुठ्ठी अनाज ही दिया जाता जो कि एक व्यक्ति के लिए भी पूरा न था, हां मगर उस एक मुठ्ठी अनाज से किसी एक व्यक्ति की जान ज़रूर बच सकती थी।

अब राजा सुबल ने ये तय किया कि जो एक दिन का अनाज आ रहा है उसे किसी एक व्यक्ति को ही खाने को दिया जाएगा ताकी उसके वंश से कोई एक तो जीवित बच सके। मगर वो इस अनाज को देने के लिए किसे चुने। इसके लिए राजा सुबल ने बंदीगृह में मौजूद उसके पूरे परिवार को एक कार्य सौंपा। राजा सुबल ने अपने परिवार को एक हड्डी दी और एक धागा दिया और एक एक कर सभी को बोला की इस धागे को बिना छुए एक छोर से दूसरे छोर तक लेकर जाओ। इस कार्य में सभी विफल रहे मगर शकुनि ने ये कर दिखाया।

शकुनि मामा के पासे का रहस्य क्या था

शकुनि के पिता ने मरने से पहले उससे कहा कि – मेरे मरने के बाद मेरी हड्डियों से पासा बनाना, ये पांसे हमेशा तुम्हारी आज्ञा मानेंगे, तुमको जुए में कोई हरा नहीं सकेगा।

शकुनि ने अपने आँखों के सामने अपने भाइयों, पिता को मरते देखा था। शकुनि के मन में धृतराष्ट्र के प्रति गहरी बदले की भावना थी।बोलने और व्यवहार में चतुर शकुनि अपनी चालाकी से बाद में जेल से छूट गया और दुर्योधन का प्रिय मामा बन गया।

– आगे चलकर इन्हीं पांसों का प्रयोग करके शकुनि ने अपने 100 भाइयों की मौत का बदला दुर्योधन और उसके 100 भाइयों के विनाश की वृहत योजना बनाकर लिया.बहुत से विद्वानों का मत है कि शकुनि के पासे तो असल में हाथीदांत के बने हुए थे, लेकिन शकुनि मायाजाल और सम्मोहन में महारथी था।जब पांसे फेंके जाते थे तो कई बार उनके निर्णय पांडवों के पक्ष में होते थे, लेकिन शकुनि की भ्रमविद्या से उन्हें लगता कि वो हार गये हैं।

शकुनि मामा का वध कैसे हुआ

महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था। युद्ध के आखिरी 18वें दिन शकुनि मामा का वध हुआ था। सहदेव ने शकुनि का वध किया और उनके जुड़वा भाई नकुल ने शकुनि के पुत्र उलूक को मौत के घाट उतारा।

शुरू के 10 दिन भीष्म पितामह ने कौरवों की तरफ से युद्ध का नेतृत्व किया। भीष्म पितामह को अर्जुन ने शिखंडी की आड़ से मार गिराया। इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य कौरवों के नायक बने।

गुरु द्रोण ने अगले 5 दिनों तक कमान संभाली। द्रोणाचार्य ने ही 13वें दिन चक्रव्यूह की रचना की जिसमें अर्जुन के बेटे अभिमन्यु को फँसाकर कौरवों ने का वध कर डाला।

14वें दिन अर्जुन जयद्रथ को मार गिराया क्योंकि उसने ही पांडवों को अभिमन्यु की मदद के लिए जाने वाले रास्ते को रोक रखा था। 15वें दिन युधिष्ठिर व भीम ने अश्वत्थामा की मृत्यु का भ्रम फैलाया और धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का सर धड़ से अलग कर दिया।

अगले 2 दिनों तक युद्ध में कर्ण कौरवों के मुखिया बने। 17वें दिन अर्जुन ने कर्ण को खत्म किया। युद्ध के आखिरी 18वें दिन शल्य ने कौरवों की तरफ से मोर्चा संभाला। 18वें दिन ही सहदेव ने शकुनि का सिर काटकर वध किया था।

शकुनी को मौत के बाद स्वर्ग क्यों मिला

शकुनी ने अपनी ही बहन के परिवार को तबाह कर डाला तो फिर क्यों और कैसे उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई। दरअसल शकुनी ने जो कुछ भी किया वो उसने अपने परिवार का बदला लेने के लिए किया।

उसने ये बुरे कर्म अपने परिवार के साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध लेने के लिए किए और इसी कारण मृत्यु के पश्चात शकुनी को स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई।



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Suman Mishra। Astrologer

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