Mahashivratri : विष्णु का प्रिय शंख, भोलेबाबा की पूजा में वर्जित, आखिर क्यों

Newstrack.com महाशिवरात्रि के मौके पर भोले बाबा की पूजा में वर्जित बातों के बारे में बताने जा रहा है, जिससे बचते हुए शिव भक्त महाकाल को प्रसन्न कर सकते हैं।

Update: 2021-03-08 13:53 GMT

Shivani Awasthi

लखनऊ- महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का पावन दिन आने वाला है। इस साल 11 मार्च को शिवरात्रि मनाई जानी है। फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाये जाने वाले भोले बाबा के इस बड़े पर्व की अपनी ही कुछ मान्यताएं और आस्था है। जो हिन्दू धर्म में काफी महत्वपूर्व मानी जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव एक लोटा जल में ही प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन ऐसी भी मान्यताएं है, जिसके मुताबिक भोले बाबा जल्दी रुष्ठ भी हो जाते हैं। ऐसे में भोले बाबा के भक्तों को उनकी (Prayer of Lord Shiva) पूजा में वर्जित (Taboos) बातों के बारे में जान लेना बेहद जरुरी है।

Newstrack.com महाशिवरात्रि के मौके पर भोले बाबा की पूजा में वर्जित बातों के बारे में बताने जा रहा है, जिससे बचते हुए शिव भक्त महाकाल को प्रसन्न कर सकते हैं।

भोलेनाथ की पूजा में शंख वर्जित, भूल से भी न करें इस्तेमाल

भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता है, और न ही भोलेबाबा को शंख से जल दिया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इसका उल्लेख मिलता है।

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राधा के शाप से सुदामा का राक्षस कुल मे हुआ था जन्म

एक बार राधा गोलोक से कहीं बाहर गयी थीं, उस समय श्री कृष्ण अपनी विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। संयोगवश राधा वहां आ गई। विरजा के साथ कृष्ण को देखकर राधा क्रोधित हो गईं और कृष्ण एवं विरजा को भला बुरा कहने लगी। लज्जावश विरजा नदी बनकर बहने लगी।

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शंखचूर का राक्षस सुदामा का था रूप, भगवान शिव ने किया था वध

कृष्ण के प्रति राधा के क्रोधपूर्ण शब्दों को सुनकर कृष्ण का मित्र सुदामा आवेश में आ गए। सुदामा कृष्ण का पक्ष लेते हुए राधा से आवेशपूर्ण शब्दों में बात करने लगे। सुदामा के इस व्यवहार को देखकर राधा नाराज हो गई। राधा ने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया। क्रोध में भरे हुए सुदामा ने भी हित अहित का विचार किए बिना राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। राधा के शाप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना।

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भगवान विष्णु ने शंखचूर की हड्डियों से बनाया शंख

बाद में दंभ के पुत्र शंखचूर अपने बल के मद में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा। साधु-संतों को सताने लगा। इससे नाराज होकर भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया। शंखचूर विष्णु और देवी लक्ष्मी का भक्त था। इसी कारण भगवान विष्णु ने इसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया। इसलिए विष्णु एवं अन्य देवी देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है। लेकिन शिव जी ने शंखचूर का वध किया था। इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया।

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