Narak Chaturdashi 2023: आज है नरक चतुर्दशी, जानिए पूजन विधान; ये अनुष्ठान करने से प्रसन्न होती हैं मां लक्ष्मी

Narak Chaturdashi 2023: कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है और दीपावली के एक दिन पहले कार्तिक चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या नरक चौदस कहते हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2023-11-11 09:03 IST

Narak Chaturdashi 2023  (photo: social media )

Narak Chaturdashi 2023: हिंदू धर्म में दीपावली सबसे बड़ा और मुख्य त्योहार है। दीपावली का पर्व धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलता है। कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है और दीपावली के एक दिन पहले कार्तिक चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या नरक चौदस या कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन यमराज और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है।

नरक चतुर्दशी

मुख्य रूप से दीपावली का त्योहार देवी लक्ष्मी और महाकाली को समर्पित है। नरक चतुर्दशी को दिवाली से एक दिन पहले मनाने के कारण से छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन शाम के समय दीये जलाए जाते हैं और अकाल मृत्यु से मुक्ति व उत्तम स्वास्थ्य की कामना करते हैं।


Narak Chaturdashi 2023: क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी, इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने पर मिलता बड़ा फल

इस बार का शुभ समय

नरक चतुर्दशी 12 नवम्बर को मनाई जायेगी और इसकी तिथि 11 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से शुरू होकर 12 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 44 मिनट तक है। नरक चतुर्दशी 12 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन अभंग स्नान का मुहूर्त सुबह 5 बजकर 28 मिनट से सुबह के 6 बजकर 41 मिनट तक है।


पूजन विधि

नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल की सफाई करें फिर ईशान कोण में भगवान गणेश, मां दुर्गा, शिवजी और भगवान विष्णु की पूजा करें। इस दिन षोडशोपचार पूजा का विधान है। ऐसे में इस दिन सभी देवी-देवताओं का षोडशोपचार पूजन करें। देवी-देवताओं के सामने घी का दीपक जलाएं। साथ ही इस दिन प्रदोष काल के समय घर के मुख्य दरवाजे पर दीपक जलाएं। इस दिन यमदेव के नाम से दीप जरूर जलाएं।

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मान्यताएं

ऐसा माना जाता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (एक तरह की औषधि) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी के दिन विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। अपामार्ग का वैज्ञानिक नाम ‘अचिरांथिस अस्पेरा’ है। हिन्दी में इसे चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा आदि नामों से जाना जाता है। इसे लहचिचरा भी कहा जाता है। कहीं-कहीं इसे कुकुरघास कंटीली घास कहा जाता है। इसे वज्र दन्ती भी कहते हैं।


तर्पण विधि

स्नान के पश्चात् यम के चौदह नामों का तीन-तीन बार उच्चारण करके तर्पण (जल-दान) करना चाहिये। साथ ही श्री भीष्म को तीन अञ्जलियाँ जल-दान देकर तर्पण करना चाहिये, यहां तक की जिनके पिता जीवित है, उन्हें भी यह जल-अञ्जलियाँ देनी चाहिये।

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