Radha Rani Vivad: राधा-रानी कौन थी और क्यों उठाये जा रहें है उन पर सवाल, जानिए ये रहस्य
Radha Rani Vivad Mystery: राधा रानी कौन थी और उनका कृष्ण संबंध कैसा है। कहां हुआ था जन्म और क्यों हो रहा है विवाद
Radha Rani Vivad Mystery: कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जी के एक वीडियो क्लिप के बाद राधा रानी को लेकर संत समाज में विवाद गहराता जा रहा है। इस पर संत महाराज प्रेमानंद जी ने भी नाराजगी जाहिर की है। आखिर राधा रानी को लेकर पंडित प्रदीप मिश्रा ने जो सवाल खड़े किये हैं उसे लेकर आपके मन में भी कई सवाल आने लगे होंगे लेकिन आपको उससे पहले राधा जी के जीवन का रहस्य और जन्म से अवगत होना होगा।
श्री राधा रानी का जीवन रहस्य
श्री राधा रानी न सिर्फ ब्रज धाम की महारानी हैं बल्कि कृष्ण के हृदय की स्वामिनी भी हैं। मान्यता है की श्री कृष्ण को पाने या उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए राधा नाम की धुन ही काफी है। राधा नाम के जाप से व्यक्ति को श्री कृष्ण का विशेष आशीर्वाद मिलता है और श्री राधा रानी की कृपा भी उस पर बरसती रहती है।राधा श्री कृष्ण जी की प्राणाधिका हैं। श्री कृष्ण के कहे अनुसार राधा उनके पाँच प्राणो की अधिष्ठात्री देवी हैं। श्रीराधा जी श्री कृष्ण की केवल प्रेमिका ही नहीं है। वह श्रीकृष्ण के प्राण हैं, अल्हादिनी शक्ति हैं, सबके लिए मोक्षदायिनी हैं और मनुष्य क्या देवी-देवताओं के लिए भी पूजनीय हैं।
नारदजी के श्राप के कारण सहना पड़ा विरह
रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार एक बार विष्णुजी ने नारदजी के साथ छल किया था। उन्हें खुद का स्वरूप देने के बजाय वानर का स्वरूप दे दिया था। इस कारण वे लक्ष्मीजी के स्वयंवर में हंसी का पात्र बन गए और उनके मन में लक्ष्मीजी से विवाह करने की अभिलाषा दबी-की-दबी ही रह गई थी।
नारदजी को जब इस छल का पता चला तो वे क्रोधित होकर वैकुंठ पहुंचे और भगवान को बहुत भला-बुरा कहा और उन्हें 'पत्नी का वियोग सहना होगा', यह श्राप दिया। नारदजी के इस श्राप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्रजी को सीता का वियोग सहना पड़ा था और कृष्णावतार में देवी राधा का।
राधा और कृष्ण के प्रेम को अद्भुत माना जाता है। माना जाता है कि राधा और कृष्ण का कभी विवाह नहीं हुआ लेकिन दोनों का प्रेम सांसरिक बंधनों से कहीं ऊपर था। राधा और कृष्ण के प्रेम के बारे में कई धार्मिक पुस्तकों और पुराणों में उल्लेख मिलता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा-कृष्ण गोलोक में एक साथ रहते थे लेकिन गोलोक में श्रीदामा के शाप के कारण राधा कृष्ण से अलग हो गई और उन्हें भूलोक में जन्म लेना पड़ा। इसके बाद पुर्नजन्म के आधार पर श्रीकृष्ण और राधा ने पहले से तय कर लिया था कि उन्हें पृथ्वी पर जन्म लेकर कहां मिलना है। , जानते हैं धरती पर राधा-कृष्ण के मिलन की कहानी।
आखिर राधा कौन थीं
कृष्ण के नाम के साथ राधा का ही नाम जुड़ा हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि राधा जब श्रीकृष्ण के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण थीं तो उन्होंने राधा से विवाह क्यों नहीं किया? आखिर राधा कौन थीं, कैसे हुई उनकी मृत्यु? थीं भी या कि नहीं?राधा का जिक्र महाभारत में नहीं मिलता है। भागवत पुराण में भी नहीं मिलता है। राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थीं और उनका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था।
कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था। राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। बरसाना में राधा को 'लाड़ली' कहा जाता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की मामी थीं, क्योंकि उनका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायाण के साथ हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के 5वें अध्याय में श्लोक 25, 26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया गया है।
राधा का पति रायाण गोलोक में श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था। अत: गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधू हुई। माना जाता है कि गोकुल में रायाण रहते थे। मतलब यह कि राधा का श्रीकृष्ण से पिछले जन्म का भी रिश्ता है। यह भी कि उन्हें लक्ष्मी का रूप भी माना जाता है।
राधा रानी के जन्म की मान्यताएं
माना जाता है कि यहीं वृषभानुजी का महल और निवास था। इसलिए इसे रावल गांव कहा जाता है। राधा रानी का जन्म बरसाना से 50 किलोमीटर दूर यहीे रावल गांव में हुआ था इस तरह की बात कही जाती है। यहां के पुजारी भी इस बात का जिक्र करते हैं। यहां राधारानीजी का एक मंदिर भी है जिसके बारे में बताया जाता है कि यहीं देवी राधा का जन्म हुआ है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर स्थापित मंदिर के ठीक सामने एक बगीचा है जहां आज भी राधा रानी और भगवान कृष्ण पेड़ के रूप में मौजूद हैं। राधा रानी के जन्म को लेकर ग्रंथों में अलग-अलग मत हैं। मान्यता के अनुसार, एक बार वृषभानु भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन जब एक सरोवर के पास से गुजरे थे तो उन्हें एक कुंज की झुकी वृक्षावलि के पास एक कन्या कमल के फूल पर तैरती हुई मिली थी। ऐसी भी कथा है कि देवी राधा की माता ने नौ महीने तक गर्भ में वायु को धारण किए रखा। फिर जब प्रसव का समय आया तब प्रसव होने पर देवी राधा वहां कन्या रूप में प्रकट हो गईं। इस तरह देवी राधा अयोनिजा हैं।
पद्म पुराण के अनुसार राधा जी वृषभानु जी और कीर्ति देवी की पुत्री थी। पद्म पुराण के अनुसार राधा को पहले वृषभानु कुमारी के नाम से जाना जाता था। राधा के पिता वृषभानु बरसाना में रहते थे। बरसाना के अलावा, राधा ने अपना अधिकतर समय वृंदावन में बिताया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार एक बार नंद बाबा, कृष्ण जी को लेकर बाजार गए थे। वहीं पर राधा और उनके पिता वृषभान जी भी आ गए। नंद बाबा और वृषभान जी पहले से एक-दूसरे को जानते थे। दोनों वरिष्ठजन एक-दूसरे से बात करने लगे। इस तरह पहली बार राधा और कृष्ण की मुलाकात हुई। उस समय दोनों उस समय बहुत छोटे थे। जब राधा ने कृष्ण को देखा, तो उन्हें पूर्वजन्म की कुछ झलकियां दिखाई दीं, जब राधा और कृष्ण गोलोक में रहा करते थे।
राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था?
पृथ्वी पर पहली मुलाकात के दौरान राधा और कृष्ण बहुत ही छोटे थे लेकिन जैसे ही राधा ने कृष्ण को देखा, उन्हें दिव्य अनुभूति हुई। राधा को कृष्ण के सांवले रंग से एक तेज प्रकाश निकलते हुए प्रतीत हो रहा था। इस प्रकाश को देखकर राधा को स्मरण हुआ कि उन्होंने पहले भी इस तरह के प्रकाश को देखा है। वास्तव में राधा ने श्रीकृष्ण के मुख से निकलती हुई दिव्यता गोलोक में देखी थी, लेकिन शाप की वजह से राधा सबकुछ भूल गई थी।
राधा और कृष्ण का प्रेम वृंदावन की गलियों में चर्चा का विषय था। दोनों यमुना के तट पर चोरी-छुपे मिला करते थे लेकिन बाद में परिस्थितियां बदलीं और कृष्ण को कंस का वध करने के लिए मथुरा जाना पड़ा। जिस कारण से राधा और कृष्ण का साथ हमेशा के लिए छूट गया। इसके बाद कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए कृष्ण फिर कभी वृंदावन नहीं लौटे।
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि द्वारा लिखित गर्ग संहिता की एक कथा के अनुसार कृष्ण और राधा का विवाह बचपन में ही हो गया था। कहते हैं कि एक बार नंदबाबा श्रीकृष्ण को लेकर बाजार घूमने निकले तभी उन्होंने एक सुंदर और अलौकिक कन्या को देखा। वह कन्या कोई और नहीं राधा ही थी।
कृष्ण और राधा ने वहां एक-दूसरे को पहली बार देखा था। दोनों एक-दूसरे को देखकर मुग्ध हो गए थे। जहां पर राधा और कृष्ण पहली बार मिले थे, उसे संकेत तीर्थ कहा जाता है, जो कि संभवत: नंदगांव और बरसाने के बीच है। इस स्थान पर आज एक मंदिर है। इसे संकेत स्थान कहा जाता है। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। यहां हर साल राधा के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है।
गर्ग संहिता के अनुसार एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने राधा और कृष्ण का गंधर्व विवाह करवाया था। श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अकसर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे। वहां उनकी मुलाकात राधा से होती थी। एक बार की बात है कि जब वे अपने पिता के साथ भंडिर गांव गए तो अचानक तेज रोशनी चमकी और मौसम बिगड़ने लगा, कुछ ही समय में आसपास सिर्फ और सिर्फ अंधेरा छा गया।
इस अंधेरे में एक पारलौकिक शख्सियत का अनुभव हुआ। वह राधारानी के अलावा और कोई नहीं थी। अपने बाल रूप को छोड़कर श्रीकृष्ण ने किशोर रूप धारण कर लिया और इसी जंगल में ब्रह्माजी ने विशाखा और ललिता की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह करवा दिया। विवाह के बाद माहौल सामान्य हो गया तथा राधा, ब्रह्मा, विशाखा और ललिता अंतर्ध्यान हो गए।