Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी की कथा का श्रवण मात्र से धूल जाते हैं पाप, जीवनभर रहते हैं धनवान, जानिए विधि-विधान और उपाय

Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी के दिन व्रत पूजा और कथा का श्रवण करने से सारे पाप धूल जाते हैं, जानिए इससे जुड़ी कथा...

Update:2023-11-09 11:00 IST

Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी की कथा, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष मे दीपावली के चार दिन पहले आने वाली इस एकादशी को लक्ष्मी जी के नाम पर रमा एकादशी कहा जाता है। इसे पुण्यदायिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्रभाव से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी दूर हो जाते हैं। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। जानते हैं इससे जुड़ी कथा

 भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से बोले हे राजन! प्राचीनकाल में  कथा पौराणिक युग में मुचुकुंद नाम के प्रतापी राजा थे, उनकी एक सुंदर कन्या थी। जिसका नाम था चंद्रभागा था। राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ किया। शोभन शारीरिक रूप से दुर्बल था। वह एक समय भी बिना खाएं नहीं रह सकता था। शोभन एक बार अपनी ससुराल आया हुआ था। वह कार्तिक का महीना था। उसी मास में महापुण्यदायिनी रमा एकादशी आ गई। इस दिन सभी व्रत रखते थे। चंद्रभागा ने सोचा कि मेरे पति तो बड़े कमजोर हृदय के हैं वे एकादशी का व्रत कैसे करेंगे जबकि पिता के यहां तो सभी को व्रत करने की आज्ञा है। जिसके बाद राजा ने आदेश जारी किया कि इस समय उनका दामाद राज्य में पधारा हुआ है अतः सारी प्रजा विधानपूर्वक एकादशी का व्रत करे। यह सुनकर सोभन अपनी पत्नी के पास गया और बोला तुम मुझे कुछ उपाय बताओॆ क्योंकि मैं उपवास नहीं कर सकता।

पति की बात सुनकर चंद्रभागा ने कहा मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता। यहां तक कि जानवर भी अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं करते। यदि आप उपवास नहीं कर सकते तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहां रहेंगे तो आपको व्रत तो अवश्य ही करना पड़ेगा। पत्नी की बात सुन सोभन ने कहा तुम्हारी राय उचित है लेकिन मैं व्रत करने के डर से किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाऊंगा, अब मैं व्रत अवश्य ही करूंगा। सभी के साथ सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया और भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल होने लगा। दूसरे दिन सूर्योदय होने से पहले ही भूख-प्यास के कारण सोभन के प्राण चले गए। राजा ने सोभन के मृत शरीर को जल-प्रवाह करा दिया और अपनी पुत्री को आज्ञा दी कि वह सती न हो और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे। चंद्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी।

उधर रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को जल से निकाल लिया गया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। उसके महल में रत्न तथा स्वर्ण के खंभे लगे हुए थे। राजा सोभन स्वर्ण तथा मणियों के सिंहासन पर सुंदर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था। गंधर्व तथा अप्सराएं नृत्य कर उसकी स्तुति कर रहे थे। उस समय राजा सोभन मानो दूसरा इंद्र प्रतीत हो रहा था। उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर में रहने वाला सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था। घूमते-घूमते वह सोभन के राज्य में जा पहुंचा, उसको देखा। वह ब्राह्मण उसको राजा का जमाई जानकर उसके निकट गया। राजा सोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने ससुर तथा पत्‍नी चंद्रभागा की कुशल क्षेम पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा हे राजन हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चंद्रभागा भी कुशल है। अब आप अपना वृत्तांत बतलाइए। आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे। मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुंदर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा है, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ।

हे राजन! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है, जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, उनके ब्रह्म हत्यादि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों ही एका‍दशियां समान हैं, इनमें कोई भेदभाव नहीं है। दोनों समान फल देती हैं। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ते अथवा सुनते हैं, वे समस्त पापों से छूटकर विष्णुलोक को प्राप्त होता हैं।

रमा एकादशी पर करें विधि-विधान से उपाय

इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की साथ में पूजा की जाती है, जिससे साधक के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। रमा एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में शालिग्राम जी की स्थापना करें और उनकी विधि-विधान के साथ पूजा करें। ऐसा करने से साधक के जीवन में आ रही आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही धन लाभ के योग भी बनते हैं।

तुलसी विष्णु जी की प्रिय मानी गई है। ऐसे में रमा एकादशी के दिन तुलसी की मंजरी तोड़कर उसे अपनी तिजोरी या पर्स रख लें। इससे व्यक्ति को आर्थिक तंगी से छुटकारा मिल सकता है। वहीं, रमा एकादशी के दिन तुलसी की पत्तियां को लाल कपड़े में बांधकर उसे अपने बेडरूम की अलमारी में रखें।

इसके बाद रमा एकादशी के बाद पड़ने वाले शुक्रवार को तुलसी के पत्तों को भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित करें। इस उपाय को करने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियां दूर होती हैं।

रमा एकादशी के दिन एक सिक्का लेकर उसकी पूजा करें और उस पर रोली, अक्षत और पुष्प चढ़ाएं। इसके बाद इस सिक्के को एक लाल कपड़े में बांधकर अपने ऑफिस की दराज या डेस्क पर रख दें। ऐसा करने से कार्यक्षेत्र में तरक्की के योग बनते हैं।

रमा एकादशी का शुभ मुहूर्त और पारण

रमा एकादशी तिथि का प्रारंभ: 8 नवंबर को सुबह 8 .र 23 मिनट

रमा एकादशी तिथि का समापन :9 नवंबर सुबह 10 .41 मिनट पर होगा

अभिजीत मुहूर्त - 11:48 AM से 12:32 PM

अमृत काल - 01:58 PM से 03:44 PM

ब्रह्म मुहूर्त - 05:04 AM से 05:52 AM

रमा एकादशी पर पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 . 43 मिनट से 12. 28 मिनट तक रहेगा।

पारण का समय : 10 नवंबर की सुबह 6 .39 मिनट से लेकर 8 .50 मिनट के बीच करना शुभ रहेगा

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