Sankashti Chaturthi Vrat Katha: कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी के व्रत से कट जाते सब कष्ट
Sankashti Chaturthi Vrat Katha: आषाढ़ माह का प्रारंभ 5 जून दिन सोमवार से हो रहा है. आषाढ़ की संकष्टी चतुर्थी का व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाएगा। आषाढ़ माह की संकष्टी चतुर्थी को कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। यह जून की भी संकष्टी चतुर्थी है।
Sankashti Chaturthi Vrat Katha: आषाढ़ माह का प्रारंभ 5 जून दिन सोमवार से हो रहा है. आषाढ़ की संकष्टी चतुर्थी का व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाएगा। आषाढ़ माह की संकष्टी चतुर्थी को कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। यह जून की भी संकष्टी चतुर्थी है। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर गणेश जी की पूजा करते हैं। गणपति बप्पा अपने आशीर्वाद से भक्तों के संकटों को दूर कर देते हैं। संकष्टी चतुर्थी व्रत संकटों से मुक्ति के लिए रखा जाता है। आगे जानते हैं कि कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी कब है? गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है? इस दिन कौन से योग बन रहा है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी का व्रत रात में चंद्रमा की पूजा के बिना अधूरा रहता है. इसके बिना आपका व्रत सफल नहीं होगा. गणेश जी ने चंद्रमा को वरदान दिया था।
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
संकष्टी चतुर्थी के नाम से ही स्पष्ट होता है कि वह व्रत, जिसको करने से संकटों का नाश हो। यदि आप घोर संकट में हैं या फिर आपका कोई काम फंस गया है, जिसमें सफलता नहीं मिल रही है तो आपको संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखकर गणेश आराधना करनी चाहिए। गणेश जी मंगलमूर्ति हैं। उनके आशीर्वाद से सब संकट मिट जाता है और कार्य सफल होता है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकट को हरने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। संस्कृत भाषा में संकष्टी शब्द का अर्थ होता है- कठिन समय से मुक्ति पाना। यदि किसी भी प्रकार का दु:ख है तो उससे छुटकारा पाने के लिए विधिवत रूप से इस चतुर्थी का व्रत रखकर गौरी पुत्र भगवान गणेशजी की पूजा करना चाहिए। इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
चतुर्थी तिथि यह "खला तिथि व रिक्ता संज्ञक" है। तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। यदि चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है। चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
प्राचीनकाल में प्रतापी राजा रंतिदेव के राज्य में एक ब्राह्मण धर्मकेतु की दो पत्नियां सुशीला एवं चंचला थीं. सुशीला नियमित पूजा-अनुष्ठान करती थी, लेकिन चंचला कोई व्रत-उपवास नहीं करती थी. सुशीला को सुन्दर कन्या हुई और चंचला को पुत्र पैदा हुआ. चंचला सुशीला को ताना देने लगी, व्रत-पूजा करके भी कन्या को जन्म दिया. चंचला के व्यंग्य से सुशीला ने दुखी होकर गणेशजी की उपासना की.
एक रात गणेशजी ने उसे दर्शन देते हुए कहा, -तुम्हारी साधना से खुश हूं, तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारी कन्या के मुख से निरंतर मोती-मूंगा प्रवाहित होंगी. तुम्हें विद्वान पुत्र भी प्राप्त होगा. कुछ दिनों बाद उसने पुत्र को जन्म दिया. धर्मकेतु के स्वर्गवास के बाद चंचला सारे धन के साथ दूसरे घर में रहने लगी, लेकिन सुशीला पति-गृह में रहते हुए पुत्र-पुत्री की परवरिश करने लगी.
सुशीला खूब धनवान हो गई. चंचला ने ईर्ष्यावश सुशीला की कन्या को कुएं में ढकेल दिया, लेकिन गणेशजी ने उसकी रक्षा की. वह अपनी माता के पास आ गई. कन्या को जीवित देख चंचला को अपने किए पर दुख हुआ. उसने सुशीला से छमा याचना की, इसके बाद चंचला ने भी संकटमोचक गणेशजी का व्रत किया, उसके सारे दुख खत्म हो गये।
संकष्टी चतुर्थी 2023 की तारीखें
गुरुवार, 06 जुलाई- संकष्टी चतुर्थी- 10-14
शुक्रवार, 04 अगस्त- संकष्टी चतुर्थी- 09-32
रविवार, 03 सितंबर- संकष्टी चतुर्थी- 10-37
मंगलवार, 19 सितंबर- गणेश चतुर्थी- 09-20
गुरुवार 28 सितंबर- अनंत चतुर्दशी- 00-00
सोमवार, 02 अक्टूबर- संकष्टी चतुर्थी- 08-39
बुधवार, 01 नवंबर- संकष्टी चतुर्थी- 08-57
गुरुवार, 30 नवंबर- संकष्टी चतुर्थी- 08-35
शनिवार, 30 दिसंबर संकष्टी चतुर्थी- 09-09