मां दुर्गा का ये रूप है चमत्कारी, दुष्टों के विनाश के लिए, लिया था ये अवतार
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
जयपुर: दुर्गा जी का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है।
मान्यता है कि मां का स्वरूप जितना विकराल है, उतना ही मां का स्वभाव दयालु है। मान्यता है कि मां कारात्रि भक्तों पर हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखती हैं और शुभ फल देती हैं। यही वजह है कि देवी मां का एक नाम शुभकरी भी पड़ा।मां की ये शक्ति अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली और काल से भी रक्षा करने वाली है। देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है मतलब भक्तों को हमेशा निडर और निर्भय रहना चाहिए। इस मंत्र से देवी की जप करना चाहिए।
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मंत्र...
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं और इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने डर नहीं है।ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल देने वाली होती है। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
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सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है। कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
मान्यताएं
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बहुत बड़ा दानव रक्तबीज था। दैत्य रक्तबीज ने जनमानस के साथ देवताओं को भी परेशान कर रखा था। रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जब उसके खून की बूंद (रक्त) धरती पर गिरती थी तो हूबहू उसके जैसा एक और दानव बन जाता था। एक दिन इस दैत्य की शिकायत लेकर सभी भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव यह बात जानते थे कि रक्तबीज का अंत माता पार्वती कर सकती हैं।
भगवान शिव ने माता पार्वती से दैत्य के विनाश करने का अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति संधान किया। इस तेज ने माता पार्वती ने मां कालरात्रि का रूप लिया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाली रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह से देवी मां ने सबका गला काटते हुए दानव रक्तबीज का अंत किया। रक्तबीज का वध करने वाला माता पार्वती का यह रूप कालरात्रि कहलाया।