Sharad Purnima 2023: शरद पूर्णिमा, कोजागरी व स्नान दान पूर्णिमा 28 अक्टूबर को, जानें ग्रहण में कैसे बनायें खीर

Sharad Purnima 2023: शनिवार को खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण लगने के कारण सूतक 9 घण्टे पहले ही लग जाएगा यानि साय: 04:05 मिनट से सूतक काल प्रारम्भ हो जायेगा अतः सूतक के पूर्व ही खीर बनाकर उसमें तुलसी पत्र या कुश डालकर रख देवें जिससे ग्रहण का दुष्प्रभाव उस बनीं हुई खीर के ऊपर नहीं पड़ेगा।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2023-10-28 11:15 IST

Sharad Purnima 2023 (Image credit:social media)

Sharad Purnima 2023: 28 अक्टूबर दिन शनिवार को पूरे दिन पूर्णिमा तिथि रहेगी जो मध्य रात्रि 2:02 तक रहेगी। इसके साथ ही शनिवार को खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण भी लगेगा। निर्णय सिन्धु के मतानुसार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा जिस दिन पूरे दिन पूर्णिमा तिथि दिन व रात्रि में मिलती है उसी दिन रात्रि में कोजागरी व शरद पूर्णिमा का पूजन व खुले आसमान में खीर बनाकर रखना चाहिए। अतः शनिवार को ही शरद पूर्णिमा व स्नान दान पूर्णिमा है।


महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय के अनुसार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को यह व्रत व पूजन करना चाहिए। शनिवार को खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण लगने के कारण सूतक 9 घण्टे पहले ही लग जाएगा यानि साय: 04:05 मिनट से सूतक काल प्रारम्भ हो जायेगा अतः सूतक के पूर्व ही खीर बनाकर उसमें तुलसी पत्र या कुश डालकर रख देवें जिससे ग्रहण का दुष्प्रभाव उस बनीं हुई खीर के ऊपर नहीं पड़ेगा।


                                                                       ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय

शरद पूर्णिमा के दिन पूजन विधि

ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय बताते है की आकाश के तरफ भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए आवाहन कर उनका षोडशोपचार पूजन करके गोदूग्ध में मेवा आदि डालकर पायस (खीर) का निर्माण करें उसमे भगवान का भोग लगावें उस पात्र को किसी जालीदार कपडे से ढक कर रख देवें क्यों कि शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा के शीतल रश्मियों से अमृत की वर्षा होती है,जो उस पायस (खीर) में समाहित हो जाती है।

रविवार को प्रातः काल सूर्योदय के पश्चात स्नानादि क्रिया से निवृति होकर भगवान विष्णु का ध्यान कर उस पायस रूपी प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें व अपने इष्ट मित्रों को वितरण कर उन्हें भी अमृत रूपी प्रसाद से लाभान्वित करें। धर्म शास्त्र के अनुसार उस अमृत रूपी प्रसाद को ग्रहण करने वाला व्यक्ति सदा चिरन्जीवी होता है । इसे कोजागरी व कौमुदी व्रत से भी जाना जाता है ।

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