Shiv Mahapuran Mahatmya Adhyay 1, 2,3: पहला अध्याय, पापनाशक साधनों के विषय में प्रश्न

Shiv Mahapuran Mahatmya Adhyay 1,2,3: व्यास जी कहते हैं- धर्म का महान क्षेत्र, जहां गंगा-यमुना का संगम है, उस पुण्यमय प्रयाग, जो ब्रह्मलोक का मार्ग है, वहां एक बार महातेजस्वी, महाभाग, महात्मा मुनियों ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस ज्ञान यज्ञ का समाचार सुनकर पौराणिक-शिरोमणि व्यास जी के शिष्य सूत जी वहां मुनियों के दर्शन के लिए आए।

Update:2023-04-20 01:09 IST
Shiv Mahapuran Mahatmya Adhyay 1, 2,3 (Pic: Newstrack)

Shiv Mahapuran Mahatmya Adhyay 1, 2 and 3: जो आदि से लेकर अंत में हैं, नित्य मंगलमय हैं, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले हैं, जिनके पांच मुख हैं और जो खेल-खेल में जगत की रचना, पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पांच प्रबल कर्म करते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर उमापति भगवान शंकर का मैं मन ही मन चिंतन करता हूं। व्यास जी कहते हैं- धर्म का महान क्षेत्र, जहां गंगा-यमुना का संगम है, उस पुण्यमय प्रयाग, जो ब्रह्मलोक का मार्ग है, वहां एक बार महातेजस्वी, महाभाग, महात्मा मुनियों ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस ज्ञान यज्ञ का समाचार सुनकर पौराणिक-शिरोमणि व्यास जी के शिष्य सूत जी वहां मुनियों के दर्शन के लिए आए।

सूत जी का सभी मुनियों ने विधिवत स्वागत व सत्कार किया तथा उनकी स्तुति करते हुए हाथ जोड़कर उनसे कहा- हे सर्वज्ञ विद्वान रोमहर्षण जी आप बड़े भाग्यशाली हैं। आपने स्वयं व्यास जी के मुख से पुराण विद्या प्राप्त की है। आप आश्चर्यस्वरूप कथाओं का भंडार हैं। आप भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता हैं। हमारा सौभाग्य है कि आपके दर्शन हुए। आपका यहां आना निरर्थक नहीं हो सकता। आप कल्याणकारी हैं।

उत्तम बुद्धि वाले सूत जी ! यदि आपका अनुग्रह हो तो गोपनीय होने पर भी आप शुभाशुभ तत्व का वर्णन करें, जिससे हमारी तृप्ति नहीं होती और उसे सुनने की हमारी इच्छा ऐसे ही रहती है। कृपा कर उस विषय का वर्णन करें। घोर कलियुग आने पर मनुष्य पुण्यकर्म से दूर होकर दुराचार में फंस जाएंगे। दूसरों की बुराई करेंगे, पराई स्त्रियों के प्रति आसक्त होंगे। हिंसा करेंगे, मूर्ख, नास्तिक और पशुबुद्धि हो जाएंगे। सूत जी ! कलियुग में वेद प्रतिपादित वर्ण आश्रम व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। प्रत्येक वर्ण और आश्रम में रहने वाले अपने-अपने धर्मों के आचरण का परित्याग कर विपरीत आचरण करने में सुख प्राप्त करेंगे! इस सामाजिक वर्ण संकरता से लोगों का पतन होगा। परिवार टूट जाएंगे, समाज बिखर जाएगा। प्राकृतिक आपदाओं से जगह-जगह लोगों की मृत्यु होगी। धन का क्षय होगा। स्वार्थ और लोभ की प्रवृत्ति बढ़ जाएगी। ब्राह्मण लोभी हो जाएंगे और वेद बेचकर धन प्राप्त करेंगे। मद से मोहित होकर दूसरों को ठगेंगे, पूजा-पाठ नहीं करेंगे और ब्रह्मज्ञान से शून्य होंगे।

क्षत्रिय अपने धर्म को त्यागकर कुसंगी, पापी और व्यभिचारी हो जाएंगे। शौर्य से रहित हो वे शूद्रों जैसा व्यवहार करेंगे और काम के अधीन हो जाएंगे। वैश्य धर्म से विमुख हो संस्कारभ्रष्ट होकर कुमार्गी, धनोपार्जन-परायण होकर नाप-तौल में ध्यान लगाएंगे। शूद्र अपना धर्म-कर्म छोड़कर अच्छी वेशभूषा से सुशोभित हो व्यर्थ घूमेंगे। वे कुटिल और ईर्ष्यालु होकर अपने धर्म के प्रतिकूल हो जाएंगे, कुकर्मी और वाद-विवाद करने वाले होंगे। वे स्वयं को कुलीन मानकर सभी धर्मों और वर्णों में विवाह करेंगे। स्त्रियां सदाचार से विमुख हो जाएंगी। वे अपने पति का अपमान करेंगी और सास-ससुर से लड़ेंगी। मलिन भोजन करेंगी। उनका शील स्वभाव बहुत बुरा होगा।

सूत जी ! इस तरह जिनकी बुद्धि नष्ट हो गई है और जिन्होंने अपने धर्म का त्याग कर दिया है, ऐसे लोग लोक-परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त करेंगे? इस चिंता से हम सभी व्याकुल हैं। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। इस धर्म का पालन करने वाला दूसरों को सुखी करता हुआ, स्वयं भी प्रसन्नता अनुभव करता है। यह भावना यदि निष्काम हो, तो कर्ता का हृदय शुद्ध करते हुए उसे परमगति प्रदान करती है। हे महामुने! आप समस्त सिद्धांतों के ज्ञाता हैं। कृपा कर कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे इन सबके पापों का तत्काल नाश हो जाए।

दूसरा अध्याय- देवराज को शिवलोक की प्राप्ति चंचुला का संसार से वैराग्य

श्री शौनक जी ने कहा- आप धन्य हैं। सूत जी ! आप परमार्थ तत्व के ज्ञाता हैं। आपने हम पर कृपा करके हमें यह अद्भुत और दिव्य कथा सुनाई है। भूतल पर इस कथा के समान कल्याण का और कोई साधन नहीं है। आपकी कृपा से यह बात हमने समझ ली है। सूत जी ! इस कथा के द्वारा कौन से पापी शुद्ध होते हैं? उन्हें कृपापूर्वक बताकर इस जगत को कृतार्थ कीजिए।

सूत जी बोले- मुने, जो मनुष्य पाप, दुराचार तथा काम-क्रोध, मद, लोभ में निरंतर डूबे रहते हैं, वे भी शिव पुराण पढ़ने अथवा सुनने से शुद्ध हो जाते हैं तथा उनके पापों का पूर्णतया नाश हो जाता है। इस विषय में मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं।

देवराज ब्राह्मण की कथा

बहुत पहले की बात है-किरातों के नगर में देवराज नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह ज्ञान में दुर्बल, गरीब, रस बेचने वाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था। वह स्नान-संध्या नहीं करता था तथा उसमें वैश्य वृत्ति बढ़ती ही जा रही थी। वह भक्तों को ठगता था। उसने अनेक मनुष्यों को मारकर उन सबका धन हड़प लिया था। उस पापी ने थोड़ा-सा भी धन धर्म के काम में नहीं लगाया था। वह वेश्यागामी तथा आचार भ्रष्ट था।

एक दिन वह घूमता हुआ दैवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूसी-प्रयाग) जा पहुंचा। वहां उसने एक शिवालय देखा, जहां बहुत से साधु-महात्मा एकत्र हुए थे। देवराज वहीं ठहर गया। वहां रात में उसे ज्वर आ गया और उसे बड़ी पीड़ा होने लगी। वहीं पर एक ब्राह्मण देवता शिव पुराण की कथा सुना रहे थे। ज्वर में पड़ा देवराज भी ब्राह्मण के मुख से शिवकथा को निरंतर सुनता रहता था। एक मास बाद देवराज ज्वर से पीड़ित अवस्था में चल बसा। यमराज के दूत उसे बांधकर यमपुरी ले गए। तभी वहां शिवलोक से भगवान शिव के पार्षदगण आ गए। वे कर्पूर के समान उज्ज्वल थे। उनके हाथ में त्रिशूल, संपूर्ण शरीर पर भस्म और गले में रुद्राक्ष की माला उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी।

उन्होंने यमराज के दूतों को मार-पीटकर देवराज को यमदूतों के चंगुल से छुड़ा लिया और वे उसे अपने अद्भुत विमान में बिठाकर जब कैलाश पर्वत पर ले जाने लगे तो यमपुरी में कोलाहल मच गया, जिसे सुनकर यमराज अपने भवन से बाहर आए। साक्षात रुद्रों के समान प्रतीत होने वाले इन दूतों का धर्मराज ने विधिपूर्वक पूजन कर ज्ञान दृष्टि से सारा मामला जान लिया। उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के दूतों से कोई बात नहीं पूछी। तत्पश्चात शिवदूत देवराज को लेकर कैलाश चले गए और वहां पहुंचकर उन्होंने ब्राह्मण को करुणावतार भगवान शिव के हाथों में सौंप दिया। शौनक जी ने कहा- महाभाग सूत जी ! आप सर्वज्ञ हैं। आपके कृपाप्रसाद से मैं कृतार्थ हुआ। इस इतिहास को सुनकर मेरा मन आनंदित हो गया है। अतः भगवान शिव में प्रेम बढ़ाने वाली दूसरी कथा भी कहिए।

तीसरा अध्याय, देवराज को शिवलोक की प्राप्ति चंचुला का संसार से वैराग्य

बिंदुग ब्राह्मण की कथा

श्री सूत जी बोले- शौनक ! सुनो, मैं तुम्हारे सामने एक अन्य गोपनीय कथा का वर्णन करूंगा, क्योंकि तुम शिव भक्तों में अग्रगण्य व वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ हो। समुद्र के निकटवर्ती प्रदेश में वाष्कल नामक गांव है, जहां वैदिक धर्म से विमुख महापापी मनुष्य रहते हैं। वे सभी दुष्ट हैं एवं उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता है। वे देवताओं एवं भाग्य पर विश्वास नहीं करते। वे सभी कुटिल वृत्ति वाले हैं। किसानी करते हैं और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र रखते हैं। वे व्यभिचारी हैं। वे इस बात से पूर्णतः अनजान हैं कि ज्ञान, वैराग्य तथा सधर्म ही मनुष्य के लिए परम पुरुषार्थ हैं। वे सभी पशुबुद्धि हैं। अन्य समुदाय के लोग भी उन्हीं की तरह बुरे विचार रखने वाले, धर्म से विमुख हैं। वे नित्य कुकर्म में लगे रहते हैं एवं सदा विषयभोगों में डूबे रहते हैं। वहां की स्त्रियां भी बुरे स्वभाव की, स्वेच्छाचारिणी, पाप में डूबी, कुटिल सोच वाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सभी सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य हैं। वहां सिर्फ दुष्टों का निवास है।

वाष्कल नामक गांव में बिंदुग नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह अधर्मी, दुरात्मा एवं महापापी था। उसकी स्त्री बहुत सुंदर थी। उसका नाम चंचुला था। वह सदा उत्तम धर्म का पालन करती थी परंतु बिंदुग वेश्यागामी था। इस तरह कुकर्म करते हुए बहुत समय व्यतीत हो गया। उसकी स्त्री काम से पीड़ित होने पर भी स्वधर्मनाश के भय से क्लेश सहकर भी काफी समय तक धर्म भ्रष्ट नहीं हुई। परंतु आगे चलकर वह भी अपने दुराचारी पति के आचरण से प्रभावित होकर, दुराचारिणी और अपने धर्म से विमुख हो गई।

इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन पति-पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ बीत गया। वेश्यागामी, दूषित बुद्धि वाला वह दुष्ट ब्राह्मण बिंदुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो, नरक में चला गया। बहुत दिनों तक नरक के दुखों को भोगकर वह मूढ़ बुद्धि पापी विंध्यपर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ। इधर, उस दुराचारी बिंदुग के मर जाने पर वह चंचुला नामक स्त्री बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर में रहती रही। पति की मृत्यु के बाद वह भी अपने धर्म से गिरकर पर पुरुषों का संग करने लगी थी। सतियां विपत्ति में भी अपने धर्म का पालन करना नहीं छोड़तीं। यही तो तप है। तप कठिन तो होता है, लेकिन इसका फल मीठा होता है। विषयी इस सत्य को नहीं जानता इसीलिए वह विषयों के विषफल का स्वाद लेते हुए भोग करता है।

एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह अपने भाई-बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में गई। उसने तीर्थ के जल में स्नान किया एवं बंधुजनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी। घूमते-घूमते वह एक देव मंदिर में गई। वहां उसने एक ब्राह्मण के मुख से भगवान शिव की परम पवित्र एवं मंगलकारी कथा सुनी। कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे कि 'जो स्त्रियां व्यभिचार करती हैं, वे मरने के बाद जब यमलोक जाती हैं, तब यमराज के दूत उन्हें तरह- तरह से यंत्रणा देते हैं। वे उसके कामांगों को तप्त लौह दण्डों से दागते हैं। तप्त लौह के पुरुष से उसका संसर्ग कराते हैं। ये सारे दण्ड इतनी वेदना देने वाले होते हैं कि जीव पुकार पुकार कर कहता है कि अब वह ऐसा नहीं करेगा। लेकिन यमदूत उसे छोड़ते नहीं। कर्मों का फल तो सभी को भोगना पड़ता है। देव, ऋषि, मनुष्य सभी इससे बंधे हुए हैं।' ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढ़ाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो गई। कथा समाप्त होने पर सभी लोग वहां से चले गए, तब कथा बांचने वाले ब्राह्मण देवता से चंचुला ने कहा- हे ब्राह्मण! धर्म को न जानने के कारण मेरे द्वारा बहुत बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामी! मेरे ऊपर कृपा कर मेरा उद्धार कीजिए। आपके प्रवचन को सुनकर मुझे इस संसार से वैराग्य हो गया है।

मुझ मूढ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है। मैं निंदा के योग्य हूं। मैं बुरे विषयों में फंसकर अपने धर्म से विमुख हो गई थी। कौन मुझ जैसी कुमार्ग में मन लगाने वाली पापिनी का साथ देगा? जब यमदूत मेरे गले में फंदा डालकर मुझे बांधकर ले जाएंगे और नरक में मेरे शरीर के टुकड़े करेंगे, तब मैं कैसे उन महायातनाओं को सहन कर पाऊंगी? मैं सब प्रकार से नष्ट हो गई हूं, क्योंकि अभी तक मैं हर तरह से पाप में डूबी रही हूं। हे ब्राह्मण! आप मेरे गुरु हैं, आप ही मेरे माता-पिता हैं। मैं आपकी शरण में आई हूं। मुझ अबला का अब आप ही उद्धार कीजिए। सूत जी कहते हैं - शौनक, इस प्रकार विलाप करती हुई चंचुला ब्राह्मण देवता के चरणों में गिर पड़ी। तब ब्राह्मण ने उसे कृपापूर्वक उठाया।

(कंचन सिंह)

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