Bhagavad Gita: भगवद्गीता - (अध्याय-1 / श्लोक संख्या - 27-28 पूर्वार्ध)
Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 27 and 28: विषाद-योग की शुरुआत की अवस्था में चित्त के भीतर सभी दबी हुई प्रवृतियां एवं दूषित भावनाएं किसी भी साधक की बुद्धि पर तीव्र व तीक्ष्ण आक्रमण करती हैं, जिससे साधक अपने पथ से विचलित हो जाता है और शोक- विह्वल हो उठता है।
Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 27 and 28:
श्वशुरान सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोऽपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बंधूनवस्थितान।।
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।
सरलार्थ - उन दोनों सेनाओं में स्थित हुए ससुरों, सुहृदों आदि सभी बंधुओं को देखकर 'वह कुंतीपुत्र अर्जुन' अत्यंत करुणा भाव युक्त होकर विषाद ( शोक ) करता हुआ बोला।
निहितार्थ - विषाद-योग की शुरुआत की अवस्था में चित्त के भीतर सभी दबी हुई प्रवृतियां एवं दूषित भावनाएं किसी भी साधक की बुद्धि पर तीव्र व तीक्ष्ण आक्रमण करती हैं, जिससे साधक अपने पथ से विचलित हो जाता है और शोक- विह्वल हो उठता है। अंतर्यामी प्रभु इन वृत्तियों को साधक पर फेंकते हैं, जिससे साधक की चित्त - शुद्धि हो सके।
अतः भगवान श्रीकृष्ण ने “ पश्य एतान् समवेतान कुरुन् इति" लघु वाणी के माध्यम से अपनी अव्यक्त एवं सूक्ष्म भावों को एक साथ बड़े वेग से अर्जुन पर आवेशित किया था। प्रभु की योगमाया की शक्ति का तत्काल प्रभाव पड़ा। जिस प्रकार विद्युत - धारा प्रवाहित करने पर तांबे ( धातु ) के तार के गुण-धर्म बदल जाते हैं तथा वह विद्युत - आविष्ट हो जाता है, ठीक उसी प्रकार श्रीकृष्ण के लघु कथन से अर्जुन का मानस विकार से आविष्ट हो गया।
अब "कौन्तेय" इस पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहा हूं। यहां संजय अर्जुन को कौन्तेय अर्थात् कुंती - पुत्र कह कर संबोधित कर रहे हैं। संजय को अर्जुन के जन्म की घटना ज्ञात है। अर्जुन के पिता पांडु को ऋषि किन्दम द्वारा श्राप मिला था कि वे जब भी स्त्री-समागम करेंगे, तब उनकी मृत्यु हो जाएगी। पांडु नि:संतान होकर मरना नहीं चाहते थे। अतः उन्होंने अपनी पत्नी कुंती को संतान उत्पन्न करने के लिए प्रेरित किया। कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र बता कर वर दिया था कि इस मंत्र से तुम जिस देवता का आवाहन करोगी, वह चाहे या ना चाहे, तुम्हारे अधीन हो जाएगा। इसी वर के कारण कुंती को देवराज इंद्र से अर्जुन जैसे पुत्ररत्न प्राप्त हुए थे। अर्जुन की माता कुंती थी, यह सर्वविदित था। अतः संजय ने अर्जुन को कुंतीपुत्र यानी कौन्तेय कहा।
संजय कौन्तेय के आगे "स:" विशेषण लगाकर यह बताना चाह रहे हैं कि जो अर्जुन अभी कुछ देर पहले तक युद्ध करने को तत्पर था, वही अर्जुन अब अत्यंत करुणा भाव से युक्त हो विषाद से भर गया। "वह अर्जुन" पर संजय का जोर है। इसका विशेष अर्थ है। अर्जुन को विषाद होने के पहले कुरुक्षेत्र में युधिष्ठिर को विषाद हुआ था।