Shri Bhagavad Gita Chapter First: भगवद्गीता अध्याय -१ श्लोक (संजय उवाच)
Shri Bhagavad Gita Chapter First: हम सभी जानते हैं कि भरत वंश के प्रवर्तक का नाम संवरण था। संवरण के ही पुत्र थे - कुरू। राजा दुष्यंत की भार्या शकुंतला से भरत का जन्म हुआ था। भरत से भूमन्यु , भूमन्यु से सुहोत्र और सुहोत्र से हस्ती का जन्म हुआ था। इन्हीं हस्ती ने हस्तिनापुर बसाया था।
एवमुक्तो ऋषिकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयेमध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्।।
सरलार्थ - संजय ने कहा - हे भारत ( धृतराष्ट्र ) ! गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा इस प्रकार कहने पर हृषिकेश (श्रीकृष्ण) ने दोनों सेनाओं के मध्य में उत्तम रथ को खड़ा करके ( स्थापित किया )। इस श्लोक का वाक्यार्थ अगले श्लोक में पूरा हुआ है।
निहितार्थ - पहले के श्लोकों में संजय ने धृतराष्ट्र को राजसत्ता के प्रमुख होने के कारण ' पृथ्वीपति ' एवं ' महीपति ' कह कर संबोधित किया था। अब संजय उन्हें " भारत " कहकर उनके श्रेष्ठ भरत वंश का स्मरण दिला रहे हैं। संजय धृतराष्ट्र को याद दिला रहे हैं कि आप के पूर्व पुरुष भरत थे। एक ही वंशावली में भरत और कुरु दोनों आते हैं।
हम सभी जानते हैं कि भरत वंश के प्रवर्तक का नाम संवरण था। संवरण के ही पुत्र थे - कुरू। राजा दुष्यंत की भार्या शकुंतला से भरत का जन्म हुआ था। भरत से भूमन्यु , भूमन्यु से सुहोत्र और सुहोत्र से हस्ती का जन्म हुआ था। इन्हीं हस्ती ने हस्तिनापुर बसाया था।
रामधारी सिंह दिनकर " किसको नमन करूं मैं " कविता में लिखा है -
भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है।
एक देश का नहीं शील, यह भू - मंडल भर का है ।।
जिस प्रकार भरत ने ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, वितृष्णा को मिटाकर प्रेम, सौहार्द सहिष्णुता आदि सद्गुणों को अपने कुल में समाज में भर दिया था, उसी प्रकार धृतराष्ट्र भी कलह,कटुता, वैमनस्य आदि दुर्गुणों को हटाकर अपने कुल में शांति प्रस्थापित करें। संजय इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर धृतराष्ट्र को " भारत " कहकर संबोधित कर रहे हैं। भरत वंश का नाम कलंकित न होने पाए एवं धृतराष्ट्र भरत वंश के कपूत वंशधर के नाम से न जाने जाएं - ऐसा आग्रह भी संजय धृतराष्ट्र से अपने संबोधन के माध्यम से कर रहे हैं।
२४ वें श्लोक में संजय ने श्री कृष्ण को हृषिकेश तथा अर्जुन को गुडाकेश कहा है। इसके पहले संजय ने अर्जुन के लिए धनंजय एवं पांडव शब्द का प्रयोग किया था। हृषिकेश = हृषीक + ईश तथा गुडाकेश = गुडाका + ईश कह कर दोनों के नामों में ईश प्रत्यय लगाकर एक तरह से दोनों को ईश्वर का अंश घोषित कर रहे हैं। हृषीकेश शब्द की चर्चा पहले हो चुकी है।
अतः अब गुडाकेश शब्द पर विचार करें। अर्जुन ने गुडाका अर्थात् निद्रा पर विजय पाई थी। अतः उसे गुडाकेश कहा जाता था। गुडाकेश का अर्थ होता है - अत्यंत सजग। जितेंद्रिय पुरुष जब चाहे सो सकते हैं या जब चाहे जग सकते हैं अर्थात् ऐसे लोग निद्रा पर नियंत्रण रखते हैं। घुंघराले केश के कारण भी अर्जुन गुडाकेश कहलाते थे। अर्जुन ने जब श्री कृष्ण को कहा, तो श्रीकृष्ण ने एक सारथी की हैसियत से अर्जुन के आदेश का पालन किया। श्री कृष्ण ने उत्तम रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कर जो कहा , वह अगला श्लोक है। सभी भक्तों को नमन एवं वंदन।
(मिथिलेश ओझा की फेसबुक वाल से साभार)