पितृपक्ष: श्रीमद्भागवत का इस दौरान करें पाठ, घर में बनाएं रोज खीर का प्रसाद

जब हमारे अपने हमारा साथ छोड़कर चले जाते है तो हमें उनकी कमी हमेशा खलती है। कोई चाहकर भी इस कमी को पूरा नहीं कर पाता है। 15 दिनों के पितृपक्ष में हम खुद को अपने पूर्वजों के निकट पाते है वो दूर रहकर भी आत्मा से हमसे जुड़ जाते है।

Update:2023-05-07 12:51 IST

जयपुर: जब हमारे अपने हमारा साथ छोड़कर चले जाते है तो हमें उनकी कमी हमेशा खलती है। कोई चाहकर भी इस कमी को पूरा नहीं कर पाता है। 15 दिनों के पितृपक्ष में हम खुद को अपने पूर्वजों के निकट पाते है वो दूर रहकर भी आत्मा से हमसे जुड़ जाते है। इस दौरान श्रद्धा से श्राद्ध कार्य कर हम अपने पूर्वजों को संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं। इससे पितरों को मुक्ति मिलती हैं। उन्हें तृप्त करने की क्रिया को तर्पण कहा जाता है। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। इन 16 दिनों के लिए हमारे पितृ सूक्ष्म रूप में हमारे घर में विराजमान होते हैं। श्राद्ध में श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य व पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए। इस पाठ का फल आत्मा को समर्पित करना चाहिए।

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श्राद्धकर्म से पितृगण के साथ देवता भी तृप्त होते हैं। श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों के प्रति हमारा सम्मान है। इसी से पितृ ऋण भी चुकता होता है। श्राद्ध के 16 दिनों में अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करें। इन दिनों में घर में 16 या 21 मोर के पंख अवश्य लाकर रखें। शिवलिंग पर जल मिश्रित दुग्ध अर्पित करें। घर में प्रतिदिन खीर बनाएं।

भोजन में से सर्वप्रथम गाय, कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालें। माना जाता है कि यह सभी जीव यम के काफी निकट हैं। श्राद्ध पक्ष में व्यसनों से दूर रहें। पवित्र रहकर ही श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य भी वर्जित माने गए हैं। श्राद्ध का समय दोपहर में उपयुक्त माना गया है।

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रात्रि में श्राद्ध नहीं किया जाता। श्राद्ध के भोजन में बेसन का प्रयोग वर्जित है। श्राद्ध कर्म में लोहे या स्टील के पात्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पितृदोष जब शांत हो जाता है तो स्वास्थ्य, परिवार और धन से जुड़ी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।

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