Shri Ram Story: इन महिलाओं के बिना अधूरे हैं श्रीराम, उनके जीवन में रहा है खास स्थान, जानिए उनके बारें में
Shri Ram Story: श्रीराम का जीवन मर्यादित था वो धैर्य और संयम की मूर्ति थे, लेकिन उनको यहां तक पहुंचाने इन लोगों का खास स्थान था, जानते हैं उनके बारे में
Shri Ram Story: सोमवार 22 जनवरी को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा होगी। श्रीराम की कथा और महिमा का वर्णन रामायण में है। श्रीराम एक मर्यादित पुरुष थे।और वो दूसरों के सुख के लिए अपना जीवन न्योच्छावर कर दिया था। वो एक अच्छे पुत्र , पति , पिता और राजा थे। आज उन्ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर पूरे देश में उत्साह है।
कहते हैं हर सफल पुरुष के पीछे एक औरत का योगदान और बलिदान छिपा होता है। तो जानते हैं कि श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम कैसे बने । क्या माता कौशल्या या फिर मां सीता की वजह से वह सम्मानित हुए। अगर इस पर गौर करेंगे तो जानेंगे किन महिलाओं का योगदान भगवान श्रीराम को मर्यादित बनाने में रहा है। यह तो सभी जानते है कि प्रभु श्रीराम की लीला थी। होई है सोई जो राम रचि राखा।। भगवान राम विष्णु के अवतार है। और रामावतार लेकर वो देवताओँ के मनोरथ सिद्ध करने आए थे।
श्रीराम के जीवन में इन महिलाओं का था अहम स्थान
मंथरा : महाराजा दशरथ ने जब ज्येष्ठ पुत्र राम के राज्याभिषेक की बात की तो देवप्रेरित कुबड़ी मन्थरा ने आकर कैकयी को यह समाचार सुनाया। यह सुनकर कैकयी आनंद में डूब गयीं और इस समाचार के एवज में मंथरा को एक गहना भेंट किया। मंथरा ने वह गहना फेंककर कैकयी के कान भरने का काम किया, लेकिन कैकयी मंथरा की बात नहीं मानकर कहती है कि यह तो रघुकुल की रीत है कि ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य संभालता है और मैं कैसे अपने पुत्र के बारे में सोचूं? राम तो सभी के प्रिय हैं। तब मंथरा के बहकाने पर कैकयी को अपने दो वरदानों की याद आई और कैकयी के मन में कपट आ जाता है। मंथरा तो कैकयी की दासी थी। लोमश ऋषि के अनुसार मंथरा पूर्वजन्म में प्रह्लाद के पुत्र विरोचन की कन्या थी।अगर मंथरा ऐसा ना करती तो श्रीराम वनवास जाने का मार्ग नहीं बनता।इस बात के लिए आज तक मंथरा की जग हसाई होती है।
कैकयी : पुत्र कुपत होई माता ना सुनी कुमाता। कैकय नरेश अश्वपति सम्राट की पुत्री कैकयी राजा दशरथ की तीसरे नंबर की पत्नी थीं। बहुत ही सुंदर होने के साथ ही वीरांगना भी थी। इसीलिए वह राजा दशरथ को प्रिय थी। एक बार राजा दशरथ ने देवासुर संग्राम में इंद्र के कहने पर भाग लिया था। इस युद्ध में उनकी पत्नी कैकयी ने उनका साथ दिया था। युद्ध में दशरथ अचेत हो गए थे। राजा के अचेत होने पर कैकेयी उन्हें रणक्षेत्र से बाहर ले आयी थी, अत: प्रसन्न होकर दशरथ ने दो वरदान देने का वादा किया था। तब कैकेयी ने कहा था कि वक्त आने पर मांगूगी। बाद में मंथरा के कहने पर कैकयी ने राम का वनवास और भरत के लिए राज्य मांग लिया था। अगर मां कैकयी रामचंद्रजी के लिए वनवास ना मांगती तो वो वन नही जाते। ऐसा करके मां कैकयी नें अपने प्रिय पुत्र को जन्म कार्य को सिद्ध करने में मदद की थी, लेकिन इसके लिए मां कैकयी लांछित हुई
शूर्पणखा : शूर्पणखा का वन में आकर प्रभु श्रीराम से विवाह का निवेदन करना और लक्ष्मण द्वारा उनकी नाक काटना राम कथा का एक अहम मोड़ था। जब सूर्पणखा की लक्ष्मणजी नाक-कान काट दिए तो शूर्पणखा के ज्ञान-चक्षु खुल गए और उसे भान हो गया कि वह कौन है। तब उसने प्रभु के कार्य को पूरा करने के लिए उनकी सहायिका बनकर प्रभु के हाथ से खर व दूषण, रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद आदि निशाचरों को मरवा दिया। कहते हैं कि पूर्व जन्म में शूर्पणखा इन्द्रलोक की 'नयनतारा' नामक अप्सरा थीं।
सीता : श्री राम की अर्धांग्नि माता सीता का नाम भी लेना होगा, क्योंकि वाल्मिकी रामायण के अनुसार राम जब वनवास खत्म करके अयोध्या लौटकर आए तो राज्याभिषेक के बाद नगर के वासियों ने माता सीता के चरित्र पर उंगली उठाई। वह तो रावण के यहां रहकर आई है तो कैसे वह पवित्र हो सकती है? यही कारण था कि माता सीता को राजमहल छोड़कर फिर से वन में जाना पड़ा। एक जगह राजसभा में वाल्मीकि बोले, 'श्रीराम! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि सीता पवित्र और सती है। कुश और लव आपके ही पुत्र हैं। मैं कभी मिथ्याभाषण नहीं करता। यदि मेरा कथन मिथ्या हो तो मेरी सम्पूर्ण तपस्या निष्फल हो जाय। मेरी इस साक्षी के बाद सीता स्वयं शपथपूर्वक आपको अपनी निर्दोषिता का आश्वासन देंगीं।'अगर मां सीता वन नहीं जाती तो श्रीराम पत्नि भक्त र ना जाने किन नामों की उपमा के शिकार होते, लेकिन मां सीता ने वन जाकर राजा राम के हर कार्य में मदद की।
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