दत्तात्रेय जयंती 2020: त्रिदेव करते हैं इनमें वास, 24 गुरुओं का मिला ज्ञान, हर लेते हैं कष्ट

दक्षिण भारत में दत्तात्रेय जयंती भगवान शिव के उस स्वरूप को दर्शाता है जो कि देवाधिदेव शिव का संघारक स्वरूप है। इसके साथ ही इनकी गणना भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान पर की जाती है।

Update: 2020-12-29 03:24 GMT
दत्तात्रेय जयंती :इनमें बसे है त्रिदेव, लेते है हरदम भक्तों की सुध, जानिए कौन है इनके 24 गुरु Published by suman

जयपुर:दत्तात्रेय जयंती 29 दिसंबर (मंगलवार) को मनाई जा रही है। दक्षिण भारत में भगवान दत्तात्रेय को दत्त के नाम से पुकारते है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार दत्तात्रेय को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का अंश स्वरूप माना जाता है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा दत्तात्रेय का प्रदोष काल में जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को दत्त जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय के नाम पर कालांतर में दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में दत्तात्रेय जयंती भगवान शिव के उस स्वरूप को दर्शाता है जो कि देवाधिदेव शिव का संघारक स्वरूप है। इसके साथ ही इनकी गणना भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान पर की जाती है।

 

24 गुरुओं से ज्ञान

 

मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी और इन्हीं के नाम पर ही दत्त समुदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में इनका प्रसिद्ध मंदिर भी है। भगवान दत्त ने जिन 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की वो हैं: 1. पृथ्वी 2. जल 3. वायु 4. अग्नि 5. आकाश 6. सूर्य 7. चन्द्रमा 8. समुद्र 9. अजगर 10. कपोत 11. पतंगा 12. मछली 13. हिरण 14. हाथी 15. मधुमक्खी 16. शहद निकालने वाला 17. कुरर पक्षी 18. कुमारी कन्या 19. सर्प 20. बालक 21. पिंगला वैश्या 22. बाण बनाने वाला 23. मकड़ी 24. भृंगी कीटभगवान।

 

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दत्तात्रेय के स्वरूप के बारे में

“आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः

मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।

ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले

प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।”

 

 

भगवान दत्तात्रेय की पूजा विधि

मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय की विधि-विधान से पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके अलावा भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं।

भगवान दत्तात्रेय की पूजा के लिए घर के मंदिर या फिर किसी पवित्र स्थान पर इनकी प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें पीले फूल और पीली चीजें अर्पित करें। इसके बाद मन्त्रों का जाप करें। मंत्र इस प्रकार हैं ‘;ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहादूसरा मंत्र ॐ महानाथाय नमः मंत्रों के जाप के बाद भगवान से कामना की पूर्ति की प्रार्थना करें। इस दिनभर का उपवास रखना चाहिए।

कथा

कथा के अनुसार, एक बार तीन देवियों को अपने सतीत्व यानी पतिव्रता धर्म पर अभिमान हो गया। तब भगवान विष्णु ने लीला रची। तब नारद जी ने तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी के समक्ष अनसूया के पतिव्रता धर्म की प्रशंसा कर दी। इस पर तीनों देवियों ने अपने पतियों से अनसूया के पतिधर्म की परीक्षा लेने का हठ किया।

 

 

तपोबल से त्रिदेवों को शिशु बना

 

तब त्रिदेव ब्राह्मण के वेश में महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे, तब महर्षि अत्रि घर पर नहीं थे। तीन ब्राह्मणों को देखकर अनसूया उनके पास गईं। वे उन ब्राह्मणों का आदरसत्कार करने के लिए आगे बढ़ी तब उन ब्राह्मणों ने कहा कि जब तक वे उनको अपनी गोद में बैठाकर भोजन नहीं कराएंगी, तब तक वे उनकी आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे। उनके इस शर्त से अनसूया चिंतित हो गईं। फिर उन्होंने अपने तपोबल से उन ब्राह्मणों की सत्यता जान गईं। भगवान विष्णु और अपने पति अत्रि को स्मरण करने के बाद उन्होंने कहा कि यदि उनका पतिव्रता धर्म सत्य है तो से तीनों ब्राह्मण 6 माह के शिशु बन जाएं। अनसूया ने अपने तपोबल से त्रिदेवों को शिशु बना दिया। शिशु बनते ही तीनों रोने लगे।

 

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तीनों देवियों ने अनसूया से क्षमा मांगी

तब अनसूया ने उनको अपनी गोद में लेकर दुग्धपान कराया और उन तीनों को पालने में रख दिया। उधर तीनों देवियां अपने पतियों के वापस न आने से चिंतित हो गईं। तब नारद जी ने उनको सारा घटनाक्रम बताया। इसके पश्चात तीनों देवियों को अपने किए पर बहुत ही पश्चाताप हुआ। उन तीनों देवियों ने अनसूया से क्षमा मांगी और अपने पतियों को मूल स्वरूप में लाने का निवेदन किया।

महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे। वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं, अगर मानसिक, या कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जाये तो भक्त किसी भी कठिनाई से शीघ्र दूर हो जाते हैं।

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