Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1: भीम ने किया था जरासंध का वध, भगवद्गीता (अध्याय-1/ श्लोक संख्या-34)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 34: अर्जुन ने 28 में तथा 21वें श्लोक में स्वजन की चर्चा अवश्य की थी, पर उसके अंतर्गत कौन-कौन आते हैं ? इसका उल्लेख नहीं किया था। संजय ने 26 वें एवं 27 वें श्लोक में स्वजन के अंतर्गत जो आते हैं, उसकी चर्चा अर्जुन के पहले ही कर दी थी।

Update:2023-04-10 03:03 IST
Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 34 (Pic: Social Media)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 34: हम सभी के लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि कौन लोग युद्ध भूमि में आए थे ? जिन्हें अर्जुन 'स्वजन' कहकर संबोधित कर रहा है। उन लोगों के बारे में अर्जुन 34 वें श्लोक में कहते हैं -

आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा:।

मातुला: श्वसुरा: पौत्रा: श्याला: सम्बन्धिस्तथा।।

अर्थ - आचार्य, ताऊ-चाचा, पुत्रगण, पितामह और उसी प्रकार मामा, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी संबंधी लोग हैं।

निहितार्थ - अर्जुन ने 28 में तथा 21वें श्लोक में स्वजन की चर्चा अवश्य की थी, पर उसके अंतर्गत कौन-कौन आते हैं ? इसका उल्लेख नहीं किया था। संजय ने 26 वें एवं 27 वें श्लोक में स्वजन के अंतर्गत जो आते हैं, उसकी चर्चा अर्जुन के पहले ही कर दी थी। उपर्युक्त 34 वें श्लोक में अर्जुन तो मात्र संजय के उस वक्तव्य को स्वीकृति प्रदान कर रहा है। संजय की दिव्य - दृष्टि से भला कौन अछूता रह सकता है।

अर्जुन के मानस - पटल पर अतीत की घटनाएं सजीव हो उठी हैं। युधिष्ठिर राजसूय-यज्ञ करना चाहते हैं। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि बिना जरासंध के वध के तथा कैद राजाओं की मुक्ति के बिना राजसूय - यज्ञ संपन्न नहीं हो सकता। जरासंध छियासी राजाओं को कैद कर चुका था। अतः अर्जुन एवं भीम को लेकर श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध भीम से करवाया था और सभी राजाओं को जरासंध की कैद से मुक्त करवाया था।

इसके पश्चात् युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन उत्तर दिशा की ओर, भीम पूर्व दिशा की ओर, सहदेव दक्षिण एवं नकुल पश्चिम दिशा की ओर विजय के लिए प्रस्थान किए थे। सभी राजाओं को अपने अधीन कर युधिष्ठिर राजसूय - यज्ञ करने की तैयारी में लग गए। लगभग सारे राजाओं को निमंत्रण दिया गया। वे सभी निमंत्रण स्वीकार कर यज्ञ-भूमि में आए।

महाभारत के "सभा पर्व" में राजसूय यज्ञ में उपस्थित होने वाले राजाओं एवं शूरवीर के नामों का इस प्रकार उल्लेख है -

पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, धृतराष्ट्र, विदुर, कृपाचार्य, दुर्योधन आदि सभी धृतराष्ट्रपुत्र, गांधार देश के राजा सुबल, शकुनी, अचल, वृषक, कर्ण, शल्य, बाह्क, सोमदत्त, भूरि, भूरिश्रवा, अश्वथामा, जयद्रथ, द्रुपद, शाल्व, धृष्टद्युम्न, भगदत्त, पर्वतीय प्रदेश के नरपति बृहद्वल, पौंड्रक, वासुदेव, कुन्तिभोज तथा कलिंग-अधिपति, बंग, आकर्ष, कुंतल, मालव, आंध्र, द्रविड़, सिंहल, काश्मीर आदि देशों के राजा, गौर वाहन, बाह्लिक देश के राजा, विराट तथा उनके पुत्र, शिशुपाल तथा उनके पुत्र। केवल शिशुपाल की मृत्यु हो चुकी है, जो इस युद्ध में नहीं हैं।

प्राय: सभी किसी - न - किसी पक्ष की ओर से युद्ध के मैदान में लड़ने को उद्यत हैं। अतः अर्जुन की दृष्टि जिस पर पड़ती है, वह स्वजन ही महसूस होता है। अर्जुन के पितृपक्ष से पितामह, चाचा, पुत्र, पौत्र तो मातृपक्ष से मामा, पत्नी-पक्ष से श्वसुर एवं साले तथा भगिनी पक्ष से बहनोई और बंधु के रूप में अनेक संबंधी उपस्थित हैं। सभी अर्जुन के परिचित ही नहीं तो किसी न किसी रूप में संबंधी भी हैं। इन संबंधियों को देखकर अर्जुन इन्हें न मारने की बात करता है। अपने पक्ष के लोगों को तो मारने का प्रश्न ही नहीं उठता, अर्जुन दूसरे पक्ष में उपस्थित लोगों को भी मारना नहीं चाहता।

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