Srimad Bhagavad Gita: दुर्योधन के जन्म के समय ही पंडितों ने बताया था उसे कुलनाशक, भगवद्गीता- (अध्याय-1/ श्लोक संख्या-40)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 40: अतीत के झरोखे से मुझे दिखाई दे रहा है कि हस्तिनापुर में दुर्योधन का जन्म हुआ है और जन्म लेते ही वह गधे की भांति रेकने लगा है। उसके जन्म के साथ ही आंधियां चलने लगीं , गीदड़ - कौवे चिल्लाने लगे एवं कई स्थानों पर आग भी लग गई।

Update:2023-04-11 21:41 IST
Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 40 (Pic: Social Media)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 40:

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना:।

धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत:।।

सरलार्थ - कुल के नाश से सनातन कुल - धर्म नष्ट हो जाते हैं। धर्म के नाश होने पर संपूर्ण कुल में अधर्म ( पाप) फैल जाता है।

निहितार्थ - अतीत के झरोखे से मुझे दिखाई दे रहा है कि हस्तिनापुर में दुर्योधन का जन्म हुआ है और जन्म लेते ही वह गधे की भांति रेकने लगा है। उसके जन्म के साथ ही आंधियां चलने लगीं , गीदड़ - कौवे चिल्लाने लगे एवं कई स्थानों पर आग भी लग गई।

इन उपद्रवों से भयभीत होकर धृतराष्ट्र ने ब्राह्मणों, भीष्म-विदुर आदि सगे संबंधियों तथा कुरुकुल के श्रेष्ठ पुरुषों को बुलवाकर कहा - "युधिष्ठिर के बाद मेरे इस पुत्र को राज्य मिलेगा या नहीं। यह बात आप लोग बताइए।" ( विदित हो कि युधिष्ठिर का जन्म दुर्योधन के जन्म के पहले ही हो गया था। उपर्युक्त प्रसंग महाभारत से लिया गया है। )

इन अमंगलसूचक अपशकुनों को देखकर ब्राह्मणों के साथ विदुर जी ने कहा - "राजन ! आपके इस ज्येष्ठ पुत्र के जन्म के समय जैसे अशुभ लक्षण प्रकट हो रहे हैं, उनसे तो मालूम होता है कि आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसलिए इसे त्याग देने में ही शांति है। इसका लालन - पालन करने पर दु:ख उठाना पड़ेगा। यदि आप अपने कुल का कल्याण चाहते हैं, तो सौ में से एक कम ही सही, ऐसा समझकर इसे त्याग दीजिए और अपने कुल तथा सारे जगत का मंगल कीजिए।

शास्त्र कहते हैं कि कुल के लिए एक मनुष्य का, ग्राम के लिए एक कुल का, देश के लिए ग्राम का तथा आत्म - कल्याण के लिए सारी पृथ्वी का ही परित्याग कर दें।" सब के समझाने - बुझाने पर भी पुत्र - मोहवश राजा धृतराष्ट्र दुर्योधन को त्याग नहीं सके। परिणामस्वरूप महासंग्राम होने जा रहा है। कुल का नाश दुर्योधन के कारण होने जा रहा है - यह स्वीकार न कर अर्जुन इस बात को स्वीकार कर रहा है कि कुल का नाश उसके द्वारा होने जा रहा है । कुल के ऊपर देश एवं उसके प्रजा का कल्याण होना चाहिए - इस बात की विस्मृति अर्जुन को हो चुकी है। अवसाद की अवस्था में भी मन अर्जुन की बुद्धि पर हावी है।

अर्जुन कहता है कि कुल के क्षय होने से कुल-धर्म का विनाश हो जाएगा। इतनी बात कहता, तब तो ठीक था। पर, अर्जुन यह भी कह डालता है कि कुल-धर्म तो सनातन है। सनातन कुल-धर्म कैसे नष्ट हो सकता है ? यह गौर करने लायक वक्तव्य है। सनातन का मतलब ही होता है - जो था, जो अभी है और जो भविष्य में भी रहेगा।

इसके बाद अर्जुन कहता है कि कुल में धर्म के नष्ट हो जाने पर अधर्म कुल को दबा लेता है अर्थात् कुल में अधर्म फैल जाता है। यहां अर्जुन ने धर्म के साथ नष्ट शब्द का प्रयोग किया है। आज सभी जानते हैं कि न तो किसी पदार्थ / ऊर्जा का जन्म होता है और न ही नाश। यहां तक कि विचार भी किसी न किसी रूप में रहता है, पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होता। इसलिए चतुर्थ अध्याय के सातवें श्लोक में धर्म के साथ "ग्लानि" शब्द का प्रयोग भगवान श्री कृष्ण ने किया है।

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