Srimad Bhagavad Gita: कुल को नरक में ले जाते है वर्णसंकर, भगवद्गीता-(अध्याय-1/ श्लोक संख्या-42)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Aloka Shankya 42: कुलघाती का अर्थ होता है, जिसने अपने कुल का नाश किया हो। अर्जुन युद्ध में अपने कुल का संहार कर कुलघाती बनने जा रहा है। वर्णसंकरता कुलघातियों को नरक में ले जाता है। कुल घाती बनकर अर्जुन नर्क में जाना नहीं चाहता। वह तो जीवित - अवस्था में ही पांच वर्षों तक स्वर्ग में रहा था।

Update: 2023-04-11 17:35 GMT
Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Aloka Shankya 42 (Pic: Social Media)

Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Aloka Shankya 42:

संकरौ नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।

पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिंडोदकक्रिया:।।

सरलार्थ - वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिए ही होता है। लुप्त हुई पिंड और जल की क्रिया वाले अर्थात् श्राद्ध एवं तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं।

निहितार्थ - आज भी पुत्र - पौत्र - प्रपौत्र के द्वारा अपने कुल को अक्षुण्ण रखना इहलोक एवं परलोक के लिए परम आवश्यक माना जाता है। " अपुत्रस्य गतिर्नास्ति " में लोगों का विश्वास है। कुलघाती का अर्थ होता है, जिसने अपने कुल का नाश किया हो। अर्जुन युद्ध में अपने कुल का संहार कर कुलघाती बनने जा रहा है। वर्णसंकरता कुलघातियों को नरक में ले जाता है। कुल घाती बनकर अर्जुन नर्क में जाना नहीं चाहता। वह तो जीवित - अवस्था में ही पांच वर्षों तक स्वर्ग में रहा था। जीवित अवस्था में स्वर्ग और मर जाने के बाद नर्क जाना पड़ जाए ! - ऐसा अर्जुन हरगिज़ नहीं चाहता।

अर्जुन को इसकी भी चिंता हुई कि कहीं लोग ऐसा मत समझ लें कि वह केवल अपना ही विचार कर रहा है। अतः अर्जुन ने "कुलस्य च" भी जोड़ दिया। इसका अर्थ यह हुआ कि अर्जुन तो नरक में जाएगा ही, उसका पूरा कुल भी नरक में जाएगा। कुल के मृत लोग अर्थात् पितर ऊपरी लोक से नीचे की लोक में पतित होकर गिर पड़ेंगे।

अब हम गंभीरता से अर्जुन के विचारों पर दृष्टिपात करें। अर्जुन ने यहां तीन बातें कही हैं -

1. अर्जुन स्वयं कुलघाती होने के कारण नरक में जाने वाला है।

2. कुल के जीवित लोग संकर-संतान के कारण नरक में जाने वाले हैं तथा

3. जो मर चुके हैं वे भी नीचे गिर कर नर्क में जाने वाले हैं।

अर्जुन ने अपने कुल के किसी भी व्यक्ति को, जीवित हो या मृत, छोड़ा नहीं है। सभी को नर्क में धकेलने की कोशिश की है। यह सोचने वाली बात है कि कुल के पितरों ने कौन - सा अपराध किया कि उन्हें नरक लोक में जाने का दंड मिले ? इसका ध्यान आते ही अर्जुन ने तुरंत ही कह दिया कि पिंड - जल यानी श्राद्ध - तर्पण की क्रिया लुप्त हो जाएगी। वर्णसंकर संतानें अपने पिता अथवा पितर की श्राद्ध - तर्पण क्रिया किस प्रकार कर पाएंगी क्योंकि उनकी माता तो निश्चित रहती है, पर पिता तो अनिश्चित रहते हैं। ऐसी संतानों द्वारा की गई श्राद्ध - तर्पण क्रिया ही व्यर्थ हो जाती है।

Tags:    

Similar News