Srimad Bhagavad Gita: विषाद में अर्जुन, भगवद्गीता-(अध्याय-1/ श्लोक संख्या- 43-44)
Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 43 44: साधारणत: हम सभी अपने कुल के व्यक्ति के महान पाप को भी छुपा लेना या दबा देना चाहते हैं। वर्णसंकरता के कारण कुल-धर्म नष्ट हो जाता है। एक ही जाति में कई कुल होते हैं। जाति-धर्म के नष्ट होने का मतलब है कि कई कुलों का नाश होने वाला है।
Srimad Bhagavad Gita Adhyay 1 Sloka Shankya 43 44:
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दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै:।
उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता:॥
उत्सन्नकुल धर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।।
सरलार्थ - इन वर्णसंकर कारक दोषों से कुलघातियों के शाश्वत कुल-धर्म तथा जाति-धर्म नष्ट हो जाते हैं। हे जनार्दन ! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया हो, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चित काल तक नर्क में वास होता है - ऐसा हम सुनते आए हैं।
निहितार्थ - अर्जुन का ध्यान इस पर नहीं जा रहा है कि कुलघाती दुर्योधनादि तो स्वयं कुल-परंपरा, कुल-मर्यादा और कुल-धर्म को नष्ट कर चुके हैं। अर्जुन कर्तव्य-बुद्धि छोड़ चुका है और कुल के मोह में फंस गया है। अर्जुन को कुल-रक्षा का मोह सता रहा है और वह कुलक्षय के दुष्परिणामों की व्याख्या कर रहा है।
साधारणत: हम सभी अपने कुल के व्यक्ति के महान पाप को भी छुपा लेना या दबा देना चाहते हैं। वर्णसंकरता के कारण कुल-धर्म नष्ट हो जाता है। एक ही जाति में कई कुल होते हैं। जाति-धर्म के नष्ट होने का मतलब है कि कई कुलों का नाश होने वाला है। कुल-प्रकरण के अंतर्गत सात श्लोकों में प्रकट किए गए विचारों से अर्जुन की छवि बिगड़ने वाली ही है, अतः अपने "कुल - सप्तक" ( ३८वें से ४४वें श्लोक ) के अंतिम श्लोक ने अर्जुन ने यह कह दिया कि ऐसा हम सुनते आए हैं।
सारी बातों को कहकर अर्जुन साफ बच निकलने का उपाय भी ढूंढ निकाला कि ऐसा हम अपने संबंधियों - बंधुओं से सुनते आए हैं। यह केवल मेरा वक्तव्य नहीं है, बल्कि जनसाधारण की भी ऐसी ही मान्यता है।अर्जुन श्रीकृष्ण को स्पष्ट संकेत कर रहे हैं कि मेरी बात को तो अस्वीकार किया जा सकता है, पर जन-सामान्य की धारणा को तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अर्जुन जानता है कि इतना सुनने के बाद श्रीकृष्ण यह अवश्य कहेंगे कि अर्जुन ! तुमने इन सब बातों को कैसे कह दिया ? तो श्रीकृष्ण के कहने के पहले ही अर्जुन ने अपना बचाव भी प्रस्तुत कर दिया। यदि उपर्युक्त तथ्य सत्य हैं, तो अर्जुन इसे स्वीकार करने को तैयार है और यदि असत्य एवं आधारहीन है तो इसके लिए अर्जुन दोषी नहीं बल्कि जन-गण ही दोषी है क्योंकि उन लोगों के माध्यम से ही अर्जुन ने ये सब जाना है।
उपर्युक्त तथ्यों के माध्यम से अर्जुन ने युद्ध के भावी परिणाम पर प्रकाश डाला तथा यह बताने की चेष्टा की कि इससे कुल के किसी भी घटक का भला होने वाला नहीं है। कुल के सभी लोग अनिश्चित काल तक नरक में रहने को विवश होंगे। हम सभी यह जान गए होंगे कि उक्त विचार अर्जुन के नहीं बल्कि जन -सामान्य के हैं। हमें सर्वदा यह स्मरण रखना चाहिए कि अर्जुन ने प्रथम अध्याय में जो कुछ भी कहा है, वह भ्रम की स्थिति में तथा विषादमय - अवस्था में कहा है।