पितरों को तुलसी दल है प्रिय, लेकिन ब्राह्मणों के भोजन में डालने से होते हैं नाराज, जानिए क्यों?

श्राद्ध पक्ष में पितरों के तर्पण के लिए यूं तो लोग अनेकों कार्य करते हैं। अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए उनके द्वारा अनेकों प्रकार के उपाय भी किए जाते हैं, लेकिन हम आपको बताते हैं कि यदि आप अपने पितरों को जल्द प्रसन्न करना चाहते हैं तो तुलसी पत्र का प्रयोग अवश्य करें। 

Update:2019-09-18 07:15 IST

जयपुर: श्राद्ध पक्ष में पितरों के तर्पण के लिए यूं तो लोग अनेकों कार्य करते हैं। अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए उनके द्वारा अनेकों प्रकार के उपाय भी किए जाते हैं, लेकिन हम आपको बताते हैं कि यदि आप अपने पितरों को जल्द प्रसन्न करना चाहते हैं तो तुलसी पत्र का प्रयोग अवश्य करें। श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल का होना महत्वपूर्ण हैं। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

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तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

1- नित्य 2- नैमित्तिक 3- काम्य 4- वृद्धि 5- सपिण्डन 6- पार्वण 7- गोष्ठी 8- शुद्धर्थ 9- कर्मांग 10- दैविक 11- यात्रार्थ 12- पुष्टयर्थ

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श्राद्ध के प्रमुख प्रकार-

तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है। भोजन व पिण्डदान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्डदान भी किए जाते हैं। वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।

दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा ।

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एक बात का रखें ध्यान

पिंड पूजा तुलसी पत्र से करने पर पितृ प्रसन्न होते हैं, लेकिन ब्राह्मणों को परोसे हुए भोजन पात्र में तुलसी पत्र निषिद्ध है। अगर भोजन पात्र में तुलसी पत्र पडा हो तो पितृ निराश होकर बिना भोजन किये चले जाते हैं। वो इसलिए कि पितृ ऐसा मानते हैं कि जिस पर तुलसी पत्र रखा वो भोजन देवताओं के लिए ही है, हमारे लिए नहीं है।

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