किससे मिलती है कितनी उर्जा
उर्जा, यह एक ऐसी शक्ति है जो जीव जगत के लिए आवश्यक है। इसके बिना व्यक्ति शक्तिहीन हो जाता है। यह हमें कई स्रोतों से प्राप्त होती है। चाहे वह अपनो से बड़ों का चरण स्पर्श करना हो या एक दूसरे का अभिवादन या फिर हाथ मिलनाना ही क्यों न हो।
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर: उर्जा, यह एक ऐसी शक्ति है जो जीव जगत के लिए आवश्यक है। इसके बिना व्यक्ति शक्तिहीन हो जाता है। यह हमें कई स्रोतों से प्राप्त होती है। चाहे वह अपनो से बड़ों का चरण स्पर्श करना हो या एक दूसरे का अभिवादन या फिर हाथ मिलाना ही क्यों न हो। इन सभी स्रोतों से हमें किसी न किसी रूपा में उर्जा मिलती रहती है। यही नहीं हम मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे या चर्च। कहीं भी किसी भी धार्मिक स्थल पर जाते हैं या आर्धिक चिन्हों को देखते हैं तो उनसे हमें सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती है।
यदि हम वैज्ञानिक आधार पर देखें तो धार्मिक स्थलों व चिन्हों में उर्जा का स्तर काफी ऊंचा मापा गया है, जिसके चलते वहां जाने वालों को शांति और सकून की अनुभुति होती है। यही नहीं हमारे धरों में प्रयोग में लाए जाने वाले मांगलिक चिन्हों में भी इसी तरह की ऊर्जा समाई होती है। इस उर्जा का लाभ हमें जाने अंजाने में मिलता रहता है।
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वंदनवार
आम तौर पर घरों में कांगलिक कार्य या कथा-पूजन होने पर दरवाजे पर आश्रम पल्लव का वंदनवार लगाया जाता है। साधार तौर तो हम इसे धार्मिक कर्मकांड का एक अंग मानते हैं। लेकिनर, देखा जाय तो इससे में अदृश्य उर्जा समाई होती है, जिसे देखते ही हमारे मन में नव'स्फूर्ति का संचार होता है।
स्वास्कित चिन्ह
हमारे देश में सदियों से स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों आदि में किया जाता है रहा है। इसमें भी 1000000 बोविस उर्जा मिलती है। यहद इसे उल्टा बना दिया जाए तो यह इसी अनुपात में प्रतिकूल उर्जा को बढ़ा देता है। इसी स्वास्तिक को यदि थोड़ा टेढ़ा बना दें तो इसकी उर्जा मात्र 1000 बोविस रह जाती है।
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ऊं से उर्जा
ऊं को पंचाक्षर मंत्र माना जाता है। सिख धर्म में भी ऊं को एक ओंकार के रूप में माना जाता है। यहीं नहीं हाजिफज मोहम्मद असलम कहते हैं कि नमाज अता करते वक्त नमाजी की मुद्रा हिंदू धर्म के ऊं की तरह बन जाती है। यह भी ऊं का दूसरा रूप है। यानि किसी न किसी रूप में हर धर्म में बीज मंत्र ऊं को स्वीकार किया गया है। इस बीज मंत्र में उर्जा क्षेत्र में 70000 बाऐविस की उर्जा मिलती है।
मंदिर, गुरुद्वारे
इसमें भी स्वास्तिक चिन्ह की भांति ही उर्जा की मात्रा होती है। इन स्थानों पर जाने वाले व्यक्ति को सकारात्मक उर्जा का जो भंडार मिलता है वह अन्य किसी स्थान पर शायद ही मिलता हो।
चर्च
इसके क्रास में 1100 बोविस उर्जा समाहित होती है। चर्च में बजने वाली घंटियों में 11000 बोविस की उर्जा पाइ्र जाती है जो हमें किसी न किसी रूप में मिलती है।
मस्जिद:
इसमें भी 12000 बोविस की उर्जा होती है। वहीं तिब्बत के मंदिरों में उर्जा का स्तर 14000 बोविस रहता है। जबकि स्तूप में 12000 बोविस उर्जा मापी गई है। इसी तरह लाल रंग के फूलों में भी उर्जा का स्तर 6500 से 7200 बोविस मापा गया है।
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