Cairn Withdraws all Cases: केयर्न ने भारत के खिलाफ सभी मुकदमे वापस लिए
Cairn withdraws all cases: ये मामला एक ऐसे कानून के कारण फंसा था जिसके तहत पिछली तारीख से टैक्स लगाया गया था।
Cairn withdraws all cases: ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी (Cairn ) ने भारत सरकार (Indian Government) और उसकी संस्थाओं के खिलाफ अमेरिका से लेकर फ्रांस और सिंगापुर तक की अदालतों में सभी मुकदमों को हटा दिया (lawsuits dropped) है। अब केयर्न को 7,900 करोड़ रुपये का टैक्स रिफंड (tax refund rs 7900 crore) मिलने का रास्ता साफ़ हो गया हैं।
ये मामला एक ऐसे कानून के कारण फंसा था जिसके तहत पिछली तारीख से टैक्स लगाया गया था। सात साल पुराने विवाद में सरकार के साथ समझौते के हिस्से के रूप में कंपनी (केयर्न का नाम अब कैपरीकॉर्न एनर्जी पीएलसी हो गया है) ने उन सभी मामलों को वापस ले लिया है जो कर वापसी का आदेश देने के लिए लाए गए थे।
कंपनी ने 26 नवंबर, 2021 को एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पुरस्कार को लागू करने के लिए कई न्यायालयों में दायर मुकदमों को वापस लेने के लिए कार्यवाही शुरू की, जिसने 10,247 करोड़ रुपये के पूर्वव्यापी करों को उलट दिया था और भारत को पहले से एकत्र किए गए धन को वापस करने का आदेश दिया था।
एक एक कर मुकदमा वापस ले लिया गया
पहले मॉरीशस में मध्यस्थता पुरस्कार की मान्यता के लिए लाया गया मुकदमा वापस ले लिया गया, उसके बाद सिंगापुर (Courts in Singapore) , यूके (UK) और कनाडा (Canada)में अदालतों में इसी तरह के उपाय किए गए। 15 दिसंबर को, इसने सरकार से बकाया धन की वसूली के लिए एयर इंडिया (Air India) की संपत्ति को जब्त करने के लिए न्यूयॉर्क की एक अदालत में लाए गए मुकदमे की स्वैच्छिक बर्खास्तगी की मांग की और अपने हक़ में फैलसा प्राप्त किया। उसी दिन, उसने वाशिंगटन की एक अदालत में इसी तरह का कदम उठाया जहां वह मध्यस्थता पुरस्कार की मान्यता की मांग कर रहा था।
केयर्न एनर्जी ने आज देश के कई समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कर भारत सरकार के खिलाफ चल रहे सभी मुकदमे वापस लेने की जानकारी दी है। कंपनी ने सरकार के साथ इस बारे में सहमति पहले ही दे दी थी। ब्रिटिश कंपनी ने कहा है कि वह अमेरिका से लेकर फ्रांस और नीदरलैंड्स से लेकर सिंगापुर की अदालतों तक में भारत सरकार के खिलाफ चल रहे सभी मामले वापस ले चुकी है।
दरअसल, भारत सरकार ने गत अगस्त में पारित नए कानून में पिछली तारीख से कर वसूलने के प्रावधान को निरस्त कर दिया था। इसके साथ ही संबंधित कंपनियों से कहा गया था कि अगर वे भारत सरकार के खिलाफ विभिन्न अदालतों में दायर अपने मुकदमे वापस ले लेती है, तो उन्हें इस प्रावधान के तहत वसूली गई राशि लौटा दी जाएगी। आयकर अधिनियम में वर्ष 2012 में जोड़े गए इस प्रावधान के तहत भारत में कारोबार करने वाली विदेशी कंपनियों से विदेशी भूभाग में किए गए सौदों पर भी पिछली तारीख से कर वसूलने की व्यवस्था की गई थी। इस प्रावधान के तहत केयर्न और वोडाफोन समेत कई विदेशी कंपनियों से पिछली तारीख से कर वसूला गया था। इनमें से अकेले केयर्न से ही 7,900 करोड़ रुपये लिए गए थे।
केयर्न जैसा दूसरा मामला
कनाडा की एक अदालत ने देश के क्यूबेक प्रांत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की एयरलाइंस एयर इंडिया और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईएटीए) की संपत्तियां जब्त करने को मंजूरी दे दी है। डेवास मल्टीमीडिया कंपनी दस साल से कानूनी लड़ाई लड़ रही थी। 24 नवंबर और 21 दिसंबर को सुपीरियर कोर्ट ऑफ क्यूबेक ने दो अलग-अलग आदेश जारी किए हैं। इन आदेशों में दिखाया गया है कि भारत में हवाई अड्डों का संचालन करने वाली संस्था आईएटीए की 68 लाख डॉलर (50 करोड़ रुपये से ज्यादा) की संपत्ति जब्त कर ली गई है। इसके अलावा एयर इंडिया की संपत्ति भी जब्त की गई है, जिसकी असली कीमत अभी सार्वजनिक नहीं हुई है।
बेंगलुरु की कंपनी डेवास के विदेशी हिस्सेदारों ने भारत के खिलाफ अमेरिका, कनाडा और कई अन्य जगहों पर मुकदमा कर रखा था। उन्होंने भारत पर समझौते की शर्तें ना निभाने का आरोप लगाया था। हिस्सेदारों के लिए वकालत करने वाली कंपनी गिब्सन, डन ऐंड क्रचर के वकील मैथ्यू डी मैकगिल ने कहा है कि कनाडा में उनकी जीत उस आधारभूत कानूनी मूल्य को पुनर्स्थापित करती है कि कर्जदारों को अपना कर्ज चुकाना चाहिए।
यह आदेश तब आया है जबकि भारत सरकार एयर इंडिया के टाटा को बेचने के सौदे के अंतिम चरण में है। टाटा ने बीते नवंबर में कहा था कि कंपनी को ऐसे दावों से बचाने के लिए समझौते में समुचित प्रावधान हैं। इसका अर्थ है कि डेवास को जो भी धन मिलेगा, वह भारत सरकार को देना होगा और टाटा का उस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। डेवास के प्रतिनिधियों का कहना है कि कनाडा का मामला सिर्फ शुरुआत है और कई अन्य ऐसे ही फैसले आने वाले हैं। डेवास के प्रतिनिधि जे न्यूमन के हवाले से एक रिपोर्ट में बताया गया है कि किसी निवेशक को ऐसे देश में निवेश नहीं करना चाहिए जहां की सरकार समझौते की शर्तों को नजरअंदाज कर सकती हो और निवेशकों को प्रताड़ित करने के लिए अपनी एजेंसियों का इस्तेमाल करे।