How survived 4 years of GST: जाने कैसी रही भारत की अर्थव्यवस्था

आंकड़ों को देखें तो भारतीय अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर जा रही है क्योंकि अप्रत्यक्ष कर संग्रह में हो रही बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था के सुचारू संचालन का संकेत दे रही है। लेकिन क्या यह सच है? आइये जानते हैं-

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Pallavi Srivastava
Update:2021-06-02 12:42 IST

जीएसटी pic(social media)

GST: 1 जुलाई 2017 का दृश्य याद कीजिए। संसद दुल्हन की तरह सजी हुई थी। एक नई आर्थिक स्वतंत्रता की बात की जा रही थी। मौका था जीएसटी अर्थात वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने का। तत्कालीन मोदी सरकार इस नए कानून को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे मजबूत स्तंभ के रूप में प्रचारित एवं प्रसारित कर रही थी। वहीं देश के कुछ अर्थशास्त्री जीएसटी को जल्दबाजी में लागू किए जाने पर प्रश्न उठा रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने जीएसटी लागू होने के उद्घाटन समारोह से खुद को किनारे करते हुए इसके क्रियान्वयन पर सवाल खड़े किए थे। विद्वानों और व्यापारियों का तबका जीएसटी के फायदे और नुकसान के बीच में बंटा हुआ था। एक देश और एक कर प्रणाली जैसे वाक्य जीएसटी की सुंदरता तो बढ़ा रहे थे परंतु सामने खड़ी तमाम बाधाएं एक कठिन आर्थिक भविष्य का निर्माण कर रही थी।



जुलाई 2021 को जीएसटी अपने 4 वर्ष पूर्ण कर लेगी। यह सबसे उपयुक्त समय है जब जीएसटी की सफलता और असफलता का विश्लेषण किया जा सकता है। वर्तमान में जीएसटी को देखें तो प्रथम दृष्टया लगता है कि जीएसटी अपने मूल लक्ष्य को पाने में कामयाब हो गई है लेकिन समानांतर अगर अन्य आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि इसका प्रयाप्त सकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ा है। कोविड-19 की पहली लहर के बाद अक्टूबर 2020 से लेकर अप्रैल 2021 तक जीएसटी के जरिए कुल अप्रत्यक्ष कर संग्रह हर महीने रुपए 1 लाख करोड़ से अधिक आ रहा है। कोविड-19 की तबाही के बीच अक्टूबर महीने में पहली बार जीएसटी में एक लाख करोड़ का दायरा पार किया था। अक्टूबर महीने में कुल जीएसटी संग्रह 1,05,155 करोड रुपए का था। नवंबर महीने में 1,04,963 करोड रुपए, दिसंबर महीने में 1,15,174 करोड रुपए, जनवरी महीने में 1,20,000 करोड़ रुपए, फरवरी महीने में 1,13,143 करोड रुपए, मार्च महीने में 1,23,902 करोड रुपए और अप्रैल महीने में 1,41,384 करोड़ रुपए का रहा है। अप्रैल का आंकड़ा जीएसटी के पिछले 4 साल के इतिहास में सर्वाधिक है।



अब पिछले 7 महीनों के आंकड़ों को देखें तो प्रतीत होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक सही रास्ते पर जा रही है क्योंकि अप्रत्यक्ष कर संग्रह में हो रही बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था के सुचारू संचालन का संकेत दे रही है। लेकिन क्या यह सच है? यह सवाल इसलिए क्योंकि इसके समानांतर अन्य आर्थिक आंकड़े अर्थव्यवस्था के ढलान का संकेत दे रहे हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के आंकड़ों के अनुसार मई महीने में बेरोजगारी दर बढ़कर 12 फीसदी से अधिक हो चुकी है। यह पिछले 45 वर्षों का सर्वाधिक है। भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले चार तिमाही से लगातार नकारात्मक वृद्धि दर से आगे बढ़ रही है। ग्रामीण मांग 40 साल के न्यूनतम स्तर पर है। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि बढ़ता हुआ जीएसटी कलेक्शन भारतीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से सकारात्मक संदेश है।



असल मामला यह है कि जीएसटी के दायरे में भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा तबका शामिल नहीं है। यह वह तबका है जिसके व्यापार का कुल वार्षिक टर्नओवर 40 लाख रुपये से कम है। इसलिए जीएसटी का यह आंकड़ा उन व्यापारिक प्रतिष्ठानों का आंकड़ा है जिनका टर्नओवर 40 लाख से अधिक है और वह जीएसटी की संरचना में आते हैं। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था का 94 फीसदी तबका असंगठित क्षेत्र का है। जो इन आंकड़ों में दिखाई नहीं पड़ता है। कोविड-19 की वजह से भारत में ऑनलाइन व्यापार में तीन से चार गुना की वृद्धि देखी जा रही है। मूल बात यह है कि ऑनलाइन व्यापार में बड़ी कंपनियों की वस्तुएं और सेवाएं शामिल हैं। छोटी बाजारों और गली-चैराहों पर काम कर रही दुकानें और व्यापार ऑनलाइन बाजार में बेहद मामूली हिस्सा रखते हैं। यह वर्ग ना तो जीएसटी में पंजीकृत है और ना ही ऑनलाइन व्यापार में सुगम है। कोविड-19 के दौरान बढ़ रहे जीएसटी कलेक्शन के पीछे कुछ चंद बड़ी ऑनलाइन कंपनियां और बड़े उद्योग-धंधों का आंकड़ा है।



अब जीएसटी की सफलता और असफलता पर ष्भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग)ष् की रिपोर्ट संख्या 11 कई पैमानों की परत खोलती है। इस रिपोर्ट का जिक्र मैंने श्द इकोनामिक टाइम्स हिंदीश् के लिए लिखे गए अपने लेख में भी किया है। कैग की यह रिपोर्ट वस्तु एवं सेवा कर को एक श्रद्धांजलि देती प्रतीत होती है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा था कि श्जीएसटी अपने वादे और दावे के अनुसार प्रदर्शन करने में नाकाम रही हैश्। रिपोर्ट के पैराग्राफ 1.6.3 में कैग लिखता है कि जीएसटी लागू और बनाने वालों के बीच समन्वय ही नहीं है। लागू होने के 2 वर्ष बाद भी जीएसटी की व्यवस्था में श्इनवॉइस मैचिंगश् नहीं हो रही है। जीएसटी रिटर्न की पूरी प्रक्रिया इतनी जटिल और तकनीकी खामियों से भरी है कि पारदर्शिता को लेकर कहीं से भी स्पष्टता नहीं दिखती है। रिपोर्ट के पैराग्राफ 2.1.1 में कैग ने कर संग्रह के संदर्भ में आंकड़े प्रस्तुत किए थे। इसके अनुसार जीएसटी लागू होने से पहले अप्रत्यक्ष कर संग्रह की वृद्धि दर 21.33ः थी जो लागू होने के बाद 2017-18 में घटकर 5.80 ही रह गई थी। वित्त वर्ष 2018-19 के बाद के आंकड़े कैग की रिपोर्ट में सम्मिलित नहीं है। परंतु वर्तमान में अप्रत्यक्ष कर संग्रह की वृद्धि दर बढ़कर 12 फीसदी हो गई है।



जब जीएसटी लागू हुआ तो उम्मीद की गई थी कि प्रति महीने 1.5 लाख करोड़ रुपए का जीएसटी कलेक्शन होगा। अभी भी यह स्तर पाया जाना बाकी है। जीएसटी ढांचे की एक बड़ी बाधा इसमें तेजी से हो रहे बदलाव है। इसके लागू होने के बाद से महज 2 वर्षों में ही इस कानून में 300 से अधिक बदलाव किए गए और इन्हीं बदलावों ने जीएसटी को एक सुधार के बजाय संकट के रूप में साबित कर दिया। अगर जीएसटी काउंसिल के जरिए जारी होने वाले नोटिफिकेशन, ऑर्डर, सर्कुलर आदि को शामिल कर लें तो इन बदलावों की संख्या 4000 से अधिक हो सकती है। आगे इस रिपोर्ट में कैग ने जिक्र किया है कि जीएसटी सिस्टम टैक्सपेयर के जरिए टैक्स जमा करने के बाद भी सही समय पर श्इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजरश् अपडेट करने में काफी देरी करता है, जिससे व्यापार प्रभावित होता है। वर्ष 2017-18 में 2,11,688 करोड़ रुपए का आईजीएसटी बैलेंस का निस्तारण सिर्फ आईजीएसटी के अपरिपूर्ण लेजर की वजह से नहीं हो पाया था। जीएसटी की सेटलमेंट प्रक्रिया पर लिखते हुए कैग का कहना था कि आईजीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा एक करदाता के जरिए इस हद तक हुआ कि जीएसटी से भरोसा ही उठ गया है। एक इकलौते करदाता ने इनपुट टैक्स क्रेडिट के दावे के रूप में पूरे आईटीसी दावे का 79 प्रतिशत हिस्सा मांग लिया है। यह राशि तकरीबन छह लाख करोड रुपए थी ।



अगर गौर करें तो पाते हैं कि जीएसटी के लागू होने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट बढ़ती गई। अब यही लगता है कि इतने बड़े सुधार को लागू करने से पहले सभी संभावित खामियों का ध्यान रखा जाना चाहिए था। जीएसटी एक बड़ा सुधार तो था लेकिन इसका क्रियान्वयन एक बड़े सुधार की हार भी था। उस दौरान भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी से लेकर वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित और भारत के पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि जल्दबाजी में जीएसटी लागू करने से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा। आगे चलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को नकारात्मक परिणाम भी देखने पड़े थे। इसके उपरांत ऑटोमोबाइल सेक्टर और रियल एस्टेट सेक्टर में आई गिरावट का एक कारण जीएसटी को असमय बिना किसी शुरुआती पायलट प्रोजेक्ट के लागू करना भी माना गया था।

वर्तमान में जीएसटी के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन अभी भी अपने निर्धारित लक्ष्य से पीछे है। 4 वर्ष बाद भी अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल न कर पाना जीएसटी की एक हार के रूप में देखा जाएगा। जरूरत है कि सरकार जीएसटी के ढांचे को और सुगम करते हुए कुछ कर कटौती का भी प्रावधान करें। क्योंकि वर्तमान अर्थव्यवस्था एक बड़ी संकट की तरफ बढ़ चुकी है, जिसको ठीक करने का एक दायित्व जीएसटी के ऊपर भी है। जीएसटी एक देश, एक कर के बजाय एक देश, एकरूपता कर के रूप में दिखाई पड़ती है।

Tags:    

Similar News